Saroj Prajapati

Horror

2.7  

Saroj Prajapati

Horror

अनोखा दीवाना

अनोखा दीवाना

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“नहीं रेनू अब तुम्हें हल्दी लग चुकी है।शादी तक तुम्हारा बाहर आना जाना बंद", दादी ने कहा।


"क्या, दादी मेरी हल्दी से बाहर आने जाने का क्या संबंध।"


“तुम आज कल के बच्चे कुछ नहीं समझते। शादी-ब्याह में हमारे ग्रह, गण कुछ कमजोर हो जाते है और इस समय का फायदा उठा बुरी आत्माएं हमे नुकसान पहुंचा सकती है समझी।"


दादी की बात पर रेणु ज़ोर ज़ोर से हंसने लगी। तब उसकी मम्मी ने चुप रहने का इशारा किया। अपनी हंसी पर काबू पाते हुए वह बोली, "क्या दादी, आप भी किस ज़माने में जी रही हो। ये भूत-प्रेत सब वहम है आपका। आज दुनिया चांद पर घर बसाने की सोच रही हैं और आप अभी तक इन भूत-प्रेत के चक्कर में पड़ी हो।"


“चुपकर रेणु, हर बात में बहस करना ज़रूरी नहीं। सब कुछ है इस संसार में। मुझे तो अपनी शादी तक छत पर जाने की व बाल खोलने की भी मनाई थी। दो दिन की बात है, उसके बाद जहां चाहो वहां चली जाना।" रेणु की मां ने कहा।


"मां, आप भी शुरू हो गई। अरे आपने तो हमारा हॉस्टल देखा था ना, कैसे जंगल में था। हमने तो कभी भी इतने सालो में वहा कोई भूत-वूत नहीं देखा।"


"अरे पगली, वो तो कोई बुरी घड़ी होती है जो प्रेत आत्माएं किसी के पीछे पड़ती है।" दादी ने कहा।


"अच्छा अब तू ज़्यादा बहस ना कर।जो कुछ तुझे चाहिए या तो ऑनलाइन ऑर्डर कर या मुझे बता दे। मैं किसी से मंगवा दूंगी।"


रेनू मां की बात सुन पैर पटकती हुई अपने कमरे में चली गई। तभी मोबाइल पर उसके मंगेतर की कॉल अाई। फोन पर रेणु को उदास देख उसने उदासी का कारण पूछा।


"अरे इतनी नाराज़गी। मै तो अपनी सास व दादी को दकियानूसी नहीं कहूंगा। अगर वो ऐसी होती तो हम दोनों कि लव मैरिज के लिए इतनी जल्दी रजामंद ना होती। वो तो सिर्फ तुम्हारे लिए फिकर मंद है और कुछ नहीं। अच्छा सुनो, जिस काम के लिए मैने तुम्हे फोन किया था वो तो इन बातों के चक्कर में रह ही गई।"


"कौन सी बात?"


“यही की हम शादी के बाद हनीमून के लिए चोपता जाएंगे। एक छोटा सा हिल स्टेशन है, बहुत ही अच्छी जगह है। सही है ना।"


"जैसे तुम ठीक समझो।" रेनू ने शरमाते हुए कहा।


खूब धूम-धाम से रेनू व रवि की शादी हुई। शादी की सारी रस्मों से निपटकर उन्होंने अपने जाने कि तैयारी कर ली। जाते हुए

रास्ते में रवि ने कार रेनू के घर की और मोड़ ली।


“अरे रवि, ये रास्ता तो मेरी घर कि ओर...।”


“हां मेमसाब, देख रहा हूं तुम अपने घरवालों को मिस कर रही हो और दस दिन तुम इस तरह मुंह लटकाए रही तो अपने हनीमून का तो...” कहते हुए रवि ने रेनू की ओर आंख मार दी।


दोनों को अचानक आया देख सभी बहुत खुश हुए। दादी ने दोनों की नजर उतार, ढेरों आशीर्वाद दिए। चलते हुए उन्हें फिर से नसीहत देते हुए बोली, "देर रात पहाड़ों पर मत घूमना क्योंकि तुम्हारी हल्दी और मेंहदी का रंग अभी फीका नहीं पड़ा है।"


"क्या दादी, आप अभी तक वहीं अटकी हुई हैं।" रेनू ने हंसते हुए कहा।


"दादी आप फिक्र न करें। मैं आपकी पोती का पूरा ध्यान रखूंगा।" ये कह उन्होंने विदा ली।


अपने भावी जीवन के हसीन सपने आंखों में संजोए ओर एक दूसरे के प्यार में डूबे, दोनों कब चोपता पहुंच गए, पता ही ना चला। प्रकृति की गोद में बसा ये यह एक छोटा सा पहाड़ी क्षेत्र था। जो अभी सैलानियों की नज़रों से बचा था। इसलिए यहां भीड़भाड़ कम थी। यहां के नैसर्गिक सौंदर्य को देख दोनों के चेहरे खिल उठे। उस दिन दोनों गेस्ट हाउस में ही रुके।


अगली सुबह रेनू ने तैयार होने के बाद रवि को उठाया तो वह बस उसे देखता ही रह गया। लाल सलवार कमीज़ व लंबे खुले बालों में वह बला की खूबसूरत लग रही थी।


रवि को इस तरह एकटक अपनी ओर निहारते देख वह शर्माते हुए बोली, “इस तरह क्या देख रहे हो! चलो उठो तैयार हो जाओ।"


रवि ने उसे अपनी बाहों में भरते हुए कहा, “घूमते तो सारी उम्र रहेंगे जानेमन, पहले जी भर कर तुम्हे प्यार तो कर ले।"


रेनू ने हंसते हुए कहा, “ज्यादा आशिक न बनो, उठो और तैयार हो जाओ।”


रवि को ना चाहते हुए भी उठना पड़ा। मई के महीने में भी वहां का मौसम बहुत सुहाना था। हल्की फुल्की ठंड में गुनगुनी धूप अच्छी लग रही थी। दोपहर को धूप थोड़ी तेज हुई तो दोनों एक पहाड़ी पर पेड़ के नीचे बैठ प्राकृतिक छटा का आनंद लेने लगे। बातें करते करते रवि ने अपना सिर जैसे ही रेनू के कंधे पर रखा, उसने जोर से उसे परे धकेलते हुए कहा, "दूर रहो मुझसे।"


रवि उसकी इस हरकत से स्तब्ध रह गया। उसने रेनू का चेहरा अपनी ओर करते हुए कहा। "ये कैसा मजाक है रेनू ?"


उसके छू ते ही वह फिर चिल्लाई, “मैंने कहा ना दूर रहो मुझसे। समझ नहीं आता तुम्हें।"


रेनू के यूं चिल्लाने से कुछ लोग वहां एकत्र हो गए थे। अपना तमाशा बनता देख वह किसी तरह उसे साथ ले गेस्ट हाउस आया। गेस्ट हाउस पहुंचते पहुंचते ही रेनू का शरीर तपने लगा था और वह बेहोश हो गई। उसकी ऐसी हालत देख रवि ने डॉक्टर को बुलाया। डॉक्टर ने उसकी जांच के बाद कहा कि, “घबराने की कोई बात नही है, ठंड और थकावट की वजह से इन्हें तेज बुखार चढ़ गया है और उसी की वजह से ये ऐसा बिहेव कर रही है। मैने इन्हें इंजेक्शन दे दिया है, सुबह तक ये ठीक हो जाएगी।"


रवि अभी उधेड़बुन में ही था कि रेनू की मां का फोन आ गया। ना चाहते हुए भी उसे सब कुछ बताना पड़ा। ये सब सुन वह भी थोड़ी परेशान हो गई। किन्तु उन्होंने इसे जाहिर नहीं होने दिया और रवि को तसल्ली देते हुए बोली कि, "सुबह तक सब ठीक हो जाएगा। तुम घबराना नहीं। मैं सुबह फोन करुंगी।"


दादी ने जब ये सब सुना तो रोने लगी।"मुझे जिस का डर था बहू वहीं हुआ। ये कोई बुखार नहीं है, मेरी बच्ची पर किसी बुरी आत्मा का साया पड़ गया है। हे प्रभु, उसकी रक्षा करना।” ये सब सुन रेनू की मां की चिंता और बढ़ गई। वह मन ही मन भगवान से प्रार्थना कर रही थी कि ये सब सिर्फ एक वहम हो और सुबह होने का इंतजार करने लगी।


सुबह रेनू का बुखार कुछ कम तो हुए लेकिन शरीर एकदम पीला पड़ गया। उसे कुछ होश आया तो रवि उसके लिए चाय लेकर आया। उसने मुस्कुराते हुए कहा, “कैसी हो अब।"

रेनू ने अजीब नज़रों से उसे ऐसे देखा कि एक बार तो रवि डर ही गया। फिर हिम्मत कर उसके पास बैठने लगा तो रेनू ने उसे जोर से धक्का दे दिया और चिल्लाने लगी और फिर बेहोश हो गई।


उसके चिल्लाने की आवाजें सुन गेस्ट हाउस में काम करने वाले लोग वहां आ गए। रेनू की हालत देख एक दो ने दबी जुबान में कह भी दिया कि इस पर किसी प्रेतात्मा ने कब्ज़ा कर लिया है। आप जितनी जल्दी हो सके इसका इलाज करवाएं, नहीं तो वो इसे धीरे धीरे मार डालेगी।


रवि को इन बातों पर विश्वास तो नही हो रहा था। उधर डॉक्टर ने भी हाथ खड़े कर दिए थे। डॉक्टर ने उसे नींद का इंजेक्शन दे जल्द से जल्द दिल्ली ले जाने की सलाह दी।

रवि ने सारी बातें अपनी सास को बताई। उन्होंने भी जल्द से जल्द उसे वापिस घर लाने के लिए कहा।


वह रेनू को लेकर उसकी मम्मी के घर पहुंचा रेनू अब भी बेहोश थी। दादी ने पहले ही अपने पुरोहित को बुला लिया था। रेनू की हालत देख उन्होंने कह दिया कि इस पर किसी बुरी आत्मा का साया है। इसके लिए अनुष्ठान करना होगा।


पूजा शुरू होते ही रेनू छटपटाने लगी। पुरोहित जी ने उसके बाल बांधने के लिए कहा। रवि ने जैसे ही उसके बालों को पकड़ा रेनू ने उसे इतनी जोर से धक्का दिया कि उसका माथा दीवार से लगा और खून बहने लगा। वह ज़ोर से मर्दानी आवाज़ में दहाड़ी, “क्यों बांध रहे हो इसके बालों को। इसके इन लंबे लहराते बालों ने ही तो मुझे दिवाना बना दिया था।"


सब अचंभित हो रेनू की ओर देखने लगे। पुरोहित जी ने अग्नि में आहुति डाल जोर जोर से मंत्र बोले और रेनू पर गंगाजल छिडकते हुए बोले, “बता कौन है तू और क्यों इस बालिका को तंग कर रहा है।"


कुछ जवाब ना पाकर उन्होंने फिर ज़ोर ज़ोर से मंत्रो का उच्चारण शुरू कर दिया, “जवाब दे नही तो तुझे अभी भस्म कर दूंगा।”


रेनू गुस्से से फिर दहाड़ी, “मैं तो उस पेड़ पर वर्षों से आराम कर रहा था। उस दिन जब यह लाल सूट और लंबे खुले बालों में वहां अाई तो इसके शरीर से आती मेंहदी, हल्दी व इत्र की खुशबू ने मुझे इसका दिवाना बना दिया। इसी खूबसूरती का तो मैं वर्षों से इंतजार कर रहा था। अब ये मेरी है। अपने सिवा मैं इसे किसी और की नही होने दूंगा।" ये सब कह वह जोर से उछली और बेहोश हो गई।


पुरोहित जी ने अनुष्ठान तेज़ कर दिया। वह जैसे ही अग्नि में आहुति डालते रेनू मछली की तरह छटपटाती। उसकी ऐसी हालत देख सब की आंखों में आंसू आ गए। पूर्ण आहुति के साथ सबने देखा एक लौ सी रेनू के शरीर से निकल अग्नि में भस्म हो गई और इसके साथ ही रेनू का शरीर भी शांत हो गया। पुरोहित जी ने सारे घर में गंगाजल छिड़का और सबके हाथों में रक्षासूत्र बांधे।


कुछ घंटों बाद जब रेनू को होश आया तो खुद को अपनी मम्मी के घर देख उसे अचंभा हो रहा था। रवि के माथे पर चोट का निशान देख वह बोली, “रवि ये तुम्हारे माथे पर चोट कैसे लगी?"


"कुछ नहीं, जानेमन ये तो तुम्हारे एक अनोखे दीवाने की देन है।" कह ज़ोर ज़ोर से हंसने लगा।


रवि को इस तरह हंसते देख दादी और मां के उदास व संशकित चेहरो पर एक तसल्ली भरी मुस्कान तैर गई।


उधर रेनू विस्मित सी सबके चेहरे देखे जा रही थी।


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