अनंत आकाश
अनंत आकाश
दीपक धीरे धीरे अक्षरों को जोड़ कर पढ़ने लगा था। वह एक किताब लिए चुपचाप अकेले में बैठा पढ़ रहा था। कई शब्द थे जिन्हें वह पढ़ तो ले रहा था किंतु मतलब नहीं समझ पा रहा था। फिर भी पढ़ने में उसे अच्छा लग रहा था।
किताब में जो पाठ था वह किताबों के अनोखे संसार के बारे में बता रहा था। दीपक महसूस कर रहा था कि जो भी लिखा है वह सच है। उसका प्रमाण तो हाथ में पकड़ी हुई किताब ही है।
यह किताब उसे राजेश भइया ने दी थी। उन्होंने ही उसकी पहचान अक्षरों से करवाई थी। फिर अक्षरों को मिला कर उसने शब्द लिखने सीखे थे। जब वह ठीक ठाक तरह से हिंदी पढ़ने लगा था, तब राजेश भइया उसे ये किताब देते हुए बोले थे।
"मैं तो अब कॉलेज की पढ़ाई करने बाहर जा रहा हूँ। तुम इसे पढ़ते रहना। इसमें बहुत कुछ है।"
उसके बाद जब भी दीपक अपने काम से छुट्टी पाता किताब खोल कर बैठ जाता। कोई पाठ खोल लेता और उसे अंत तक पढ़ने का प्रयास करता। उसमें दिए गए संदेश को समझने की कोशिश करता था।
अक्षर अक्षर जोड़ कर पढ़ना दीपक की एक छोटी सी शुरुआत थी पर इसने उसके लिए अनंत आकाश की राह खोल दी थी।