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Rubita Arora

Abstract

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Rubita Arora

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अनमोल पल अब कभी लोटकर न आएंगे

अनमोल पल अब कभी लोटकर न आएंगे

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पिछला साल हम सबके लिए चुनौतियोंपूर्ण रहा। सब कुछ भूल हम खुद को और अपनों को सुरक्षित रख पाने के लिए अग्रसर रहे। बहुत कुछ सिखाया भी इस साल ने लेकिन न जाने कितने अनमोल पलों को भीहमेशा के लिए अपने साथ चुरा ले गया जो अब जिंदगी में कभी लोटकर न आ पायेंगे। मै पूनम गुप्ता एक रिटायर हिन्दी स्कूल अध्यापिका। पैतिंस साल लगातार एक ही स्कूल में काम करते हुए न जाने कितने खट्टे मीठे पलों को झोली में समेटती आगे बढती गई। सफर आसान नही था मेरे लिए। पता नहीं कितनी बार परेशानियों का सामना करते हुए दिल हतोत्साहित हुआ। मन में विचार भी आया नहीं काम करना मुझे यहां फिर दूसरे ही पल साथियों से इतना प्यार मिलता तो लगता सचमुच जिंदगी हैं तो बस यही है,यहां से दूर होकर भला कैसे जी पाऊंगी। एक अलग पहचान, नए तजुर्बे बटोरते हुए आगे बढते हुए उम्र के उस पडाव के नजदीक पँहुच गई जब दूसरों को सम्मान सहित विदा होते देख मै भी उसी दिन के सपने बुनने लगी। दिल से उन पलों से जुड़े अनुभव बटोरना लगी।

समय मानो पंख लगा उडता गया और मैं अपनी रिटायरमेंट के नजदीक पंहुच गई। अब मेरे पास स्कूल में काम करने को ज्यादा वक्त नहीं था। खुश थी एक इंस्टीट्यूट में इतना वक्त बिता पूरे मान सम्मान से विदा होने के पल नजदीक आ रहे हैं परन्तु दूसरी ओर अपनी कर्मभूमि जो मेरे लिए पूजनीय थी, से दूर जाने का गम आँखें भिगो जाता। अब मैं अपने आखिरी पल जीभर के जीना चाहती हैं। न जाने कितनी यादें बटोरना चाहती थी लेकिन इससे पहले मुझे एक महीने के लिए सैमीनार पर भेज दिया गया जहां मै सहयोगियों से कुछ नया सीखते हुए और कुछ सिखाते हुए महीना बिता वापस लोटी। अब मेरे पास गिनती के सिर्फ दस दिन थे। उसके बाद मेरी रिटायरमेंट पार्टी और फिर मेरा स्कूल से यह रोज का संबंध टूटने वाला था।

आज भी याद है वह दिन जब ट्रेनिंग से लोटने पर थकान की वजह से उठने को बिल्कुल भी मन नहीं था। परिवार में सभी ने छुट्टी लेने को कहा लेकिन अब मैं एक भी दिन गंवाना नहीं चाहती थी। एक मां जैसे हर दिन अपनी संतान को बडा होते हुए देख खुश होती हैं ठीक वैसे ही तो मैने भी एक छोटे से संस्थान को शहर का नामी संस्थान बनते हुए देख हर पल खुशी अनुभव की थी और अब जीभर के बलाएं लेने को मन कर रहा था। हर कोने को निहारते हुए उसकी तस्वीर दिल में उतारना चाहती थी। जिन साथियों के साथ न जाने कितने पल बिताए।

कभी एक दूसरे को हंसाया तो कभी कभी रूलाया भी, कितनी बार एक दूसरे के सुख दुख को दिल से अनुभव किया, एक साथ हंसने और रोने वाले अपने उस परिवार से विदा लेने से पहले मै जीभर कर समय बिताना चाहती थी। आज भी याद थे मुझे वे पल जब मैं पहली बार डरी सहमी सी इंटरव्यू देने यहां आई थी। मन को अनेकों उलझनों ने घेर रखा था। पता नहीं इतने लोगों मे मेरा सिलैक्शन होगा या नहीं और फिर सिलैक्ट होने की खबर सुनते ही आँखों से खुशी के आंसुओं का टपकना, एक अहसास अपनी मंजिल को पा लेने का आदि आदि न जाने कितनी यादें तरोताजा करना चाहती थी अब मैं। खुशी से फूली नहीं समाती थी जब अपने पढाये किसी विद्यार्थी को ऊंचा मुकाम हासिल करते हुए देखती, उनकी हर कामयाबी मुझे अपनी कामयाबी महसूस होती। बस अब रिकार्डरूम से रिकॉर्ड खंगालते हुए अपनी कामयाबियों की याद करते हुए दिल से खुशी मनाना चाहती थी इन दस दिनों में। बस यही सोच न जाने मेरी थकान कहाँ भाग गई और मैं एक पल की भी देरी किए बिना नए उत्साह के साथ स्कूल पंहुची। आज मेरी हालत उस छोटे से बच्चे जैसी थी जो पहली बार मेले में जाकर रंग बिरंगी दुनिया को बडे उत्साह से देखता है।

 स्कूल शुरू हुए अभी कुछ ही देर हुई थी। मैं अपनी सहेली के साथ स्टाफ रूम में समय बिता रही थी जब एक और अध्यापिका किरण जी ने आकर कहा, मैम आज तो आपका आखिरी दिन हैं यहां। मैने बोला ,नही!! नही!! ऐसे मत कहो मेरे तो अभी पूरे दस दिन पडे हैं। किरण मैम बोली, क्या आपको नहीं पता कोरोना के चलते कल से सभी स्कूल कालेज बंद करने का ऐलान हो चुका है। क्या???? इससे आगे मेरे मुँह से शब्द न निकले। यूं लगा पैरों के नीचे की जमीन खिसक गई हो। मैं स्तब्ध खडी अपने आपको गिरने से बचाने की कोशिश करने लगी। बडी मुश्किल से होश संभालते हुए भारी मन से सबसे विदा लेकर लडखडाते कदमों से घर की ओर रवाना हुई। कोरोना ने मुझसे मेरे वो दस दिन और वो रिटायरमेंट पार्टी के अनमोल पल हमेशा के लिए छीन लिए जो अब कभी लोट कर न आ पायेंगे। अफसोस ! उन पलों को कभी जी न पाई जिनकी यादों को मै हमेशा के लिए दिल में संजोकर रखना चाहती थी।


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