Sarita Kumar

Romance

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Sarita Kumar

Romance

अनकंडिशनल लव

अनकंडिशनल लव

8 mins
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शोभा जी को सभी ने खूब समझाया की तुम्हारे साथ धोखा किया है बेवफा है वो जो जल्दी ही आने को बोला था मगर नहीं आया। दिन महीने और साल बीत गया उसके बाद उसकी शादी की खबर ....अब और क्या बचा है उसके यादों को सहेजे रखने के लिए ? दफा करो उसे और उसके तमाम खतों को जला डालो मिटा दो अपने दिलों दिमाग से उसकी स्मृति और आगे बढ़ो,अपने सुखद भविष्य की ओर अग्रसर हो। शोभा चुपचाप सुनती रही सभी की बातें लेकिन उसका मन विचलित नहीं हुआ क्योंकि उसे तो मालूम था उसके साथ बेवफाई नहीं हुई है ना ही उसे धोखा दिया है। प्रेम बहुत सुलझे विचारों वाले गंभीर स्वभाव के विवेकशील इंसान हैं। उनसे जो कहा गया था उसके बाद उन्होंने फैसला लिया था अपनी शादी का। उनकी कोई गलती है ही नहीं। इनकार तो शोभा जी ने ही किया था। मगर वजह किसी को बताना नहीं चाहती थी इसलिए सभी की बातें सुनती रहती थी लेकिन जब उसके पापा ने कहा तब उसके सब्र का बांध टूट गया बहुत रोई, किसी सही इंसान को गलत समझा जाना सही नहीं लगा उसे। वह खुद को अपराधी समझने लगी। बहुत हिम्मत जुटा कर उसने परिवार वालों के सामने कहा कि दूर जाने वाले हमेशा बेवफा नहीं होते। 

दूर जाना कभी कभी मजबूरी भी होती है और दूर जाने वाले लौटकर भी आते हैं। प्रेम जी ने धोखा नहीं दिया है मुझे। इस तरह उसने प्रेम पर थोपे जा रहे है बेबुनियादी इल्ज़ाम से बरी तो करवा दिया लेकिन असली बात अभी भी राज ही बना रहा। शोभा के मन में अभी भी वही सूरत वही मूरत विराजमान रहा। एक दूसरी बात जरूर हुई कि उसने परिवार, रिश्तेदार और समाज की बातों का परवाह करना छोड़ दिया। कुछ दिनों बाद एक एक्सिडेंट में माता-पिता का देहांत हो गया। अपनी धार्मिक और नैतिक कर्तव्यों का निर्वाह करने के पश्चात शोभा जी ने शांति कुंज में बसेरा डाल दिया और समाज सेविका बनकर अपना जीवन समर्पित कर दिया। 

समाजिक काम काज में इतना अधिक व्यस्त हो गई कि समय का पता ही नहीं चला। 40 वर्ष गुजर चुके थे खुली आंखों से प्रेम जी को देखे हुए यद्धपि बंद आंखों से पल भर को ओझल नहीं हुए थे। शोभा जी की सुबह सूरज निकलने से नहीं होती थी बल्कि प्रेम की तस्वीर देखने से होती था। रात को सपनों में भी वही होते थे। ईश्वर से उनकी सलामती की दुआ मांगते मांगते आज उनका 80 वा जन्मदिन भी आ गया। शोभा जी ने शांति कुंज में दावत दी थी। बहुत जोर-शोर से तैयारियां की गई। पूरा शांति कुंज दुल्हन की तरह सजाया गया था। लगभग दो हजार लोगों का विशाल परिवार है। अधिकांशतः महिलाएं हैं। सभी के साथ शोभा जी का बहुत स्नेहिल और आत्मिक संबंध रहा है। छोटे उम्र के अलावा बड़े उम्र दराज लोग भी शोभा का बहुत सम्मान करते थे। शोभा का गौरवशाली गंभीर व्यक्तित्व किसी को सवाल करने का साहस नहीं दे सका। खुसुर फुसुर हो रही थी कि आखिर किस बात की खुशी में इतने बड़े जलसा का आयोजन किया जा रहा है ? आज से पहले कभी किसी तरह का कोई व्यक्तिगत आयोजन नहीं किया था शोभा ने। उसने तो आश्रम में लिखवाया था कि वो अनाथ है दुनिया में उसका कोई नहीं है फिर इतने सालों बाद कौन और कहां से पैदा हो गया ? शोभा जी नहीं तो कभी बाहर निकली है पिछले 35/36 सालों में और ना ही कोई मिलने ही कभी आया है ? जो कुछ हैं वह आश्रम के लोग ही हैं शोभा के दोस्त, रिश्तेदार, अपने सगे। हां एक भैया का खत आता है दो चार छः महीने पर और वह खत इतनी ऊर्जा भर देता है कि अगला छ महीने तक उसकी बैटरी फूल चार्ज हो जाती है। पूरे मन, आत्मा, श्रद्धा और लगन के साथ आश्रम का सभी कार्यों को संपादित करती रहती थी। दर्जन भर बच्चें भी थे जो पढ़ने के लिए आते थे। गुरु मां कहते थे। शोभा को बेहद प्रसन्नता होती थी ‌। बिना प्रसव पीड़ा के दर्जन भर बच्चों की मां बनने का गौरव प्राप्त था। 

शाम ढलते ही जगमगा उठा शांति कुंज का कोना-कोना। शोभा ने अपने हाथों से रंगोली बनाई थी उनके लिए जो कभी नहीं आने वाले हैं। आरती की थाली सजाई। ढेरों व्यंजन बनाए गए। देश भर से प्रतिष्ठित साहित्यकार, संगीतकार, गायक, नृत्यांगना आमंत्रित थे। ठीक सात बजते-बजते शांति कुंज में चार पांच हजार लोग इकट्ठे हो गए। ऐसे मौकों पर मिडिया वाले और पत्रकारों की मौजूदगी लाजमी है। जलसा का शुभारंभ सरस्वती वंदना से हुआ फिर एक नये कलाकार ने सुनाई वो ग़ज़ल जो शोभा जी को बेहद पसंद है - "साथ छूटेगा कैसे मेरा आपका जब मेरा दिल ही घर, बन गया आपका साथ छूटेगा कैसे, मेरा आपका .....!" कार्यक्रम चलता रहा लोग आते रहें रूक रूक कर फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी होती रही। जब मंच पर एक बड़ा सा केक लाया गया तब एक बात स्पष्ट हुई कि यह आयोजन किसी खास के जन्मदिन के शुभ अवसर पर किया गया है जिनके 80 साल पूरे हुए हैं। यूं तो हर दिन लाखों लोग पैदा होते हैं और लाखों लोगों का जन्मदिन एक ही दिन मनाया जाता है इसलिए अनुमान लगाना मुश्किल था और सवाल करने का तो सवाल ही नहीं उठता है शोभा जी से इसलिए सभी बस इंतजार कर रहे थे कि केक काटने कोई तो मंच पर आएगा तब तक के लिए सब्र रखा जाए। ठीक 9 बजे शोभा जी अपने नये रूप में मंच पर पहुंच कर सभी को स्तब्ध कर दिया। हमेशा से हल्के रंग की साड़ी में सौम्य शालिन और शीतलता का आभा बिखरे हुए माथे पर छोटी सी बिंदी लगाकर रहने वाली शोभा ने आज सुर्ख लाल रंग की साड़ी, बड़ी सी बिंदी, लिपिस्टिक, काजल, आई शैडो सब कुछ लगाकर बहुत अच्छी तो नहीं दिखाई दे रही थी लेकिन उनकी आंखों की चमक बता रही थी कि आज वो कितना उत्साहित हैं। केक उन्होंने ही काटा जबकि उनका जन्मदिन तो छः फरवरी को है और बड़े धूमधाम से मनाया जाता रहा है आश्रम में ख़ैर जो भी हो अभी जो कुछ चल रहा है उसका मूक दर्शक बने रहने में ही इस जलसे की मर्यादा को कायम रखना और इस आयोजन की सार्थकता है। सभी दर्शक खड़े होकर शुभकामनाएं दी तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा पूरा का पूरा हरिद्वार। कुछ सम्मानित कवि भी मौजूद थे जिन्होंने अपने अंदाज में शुभकामनाएं दी। केक के बाद खाना - पिना भी हुआ और आखिरी में एक वरिष्ठ पत्रकार के विशेष आग्रह पर शोभा जी ने दो पंक्तियां सुनाई - झुर्रियों से सुसज्जित मुखड़ा, दूधिया बाल, पानीदार आंखें और वही जानलेवा मुस्कान ....... आज भी लोगों को बहकाने में कामयाब हो गई है बहुत बहुत शुक्रिया, धन्यवाद और आभार आपका जो आप यहां उपस्थित होकर मेरे अटूट विश्वास को अमर कर दिया।

"आज का दिन बहुत खास है, एक उपहार है, बड़ा त्योहार है,आपका अवतरण हमारे लिए वरदान है। आपसे मिलकर जीवन खुशहाल है। आपको, आपकी जरूरत हो के न हो मगर हम तलबगार है आपके। आपकी सलामती की दुआ करते है। मुबारक हो आपको आपका यह विशेष दिन। " 

एक ही सांस में इतना कुछ बोलने के बाद शोभा जी बैठ गई और तभी कोई उठा और उठकर सन्नाटे को तोड़ता हुआ बाहर चला गया। अगले तीन सेकेंड पर स्पीकर से आवाज़ सुनाई दी। बेहद गंभीर संयमित और संतुलित शब्दों में " शोभा तुम्हें, मेरा जन्मदिन बहुत बहुत मुबारक हो ‌‌। मुझे जीवित देखने की चाह में तुमने अपनी हत्या कर ली थी और देखो ना मैं जिंदा हूं और सही सलामत अपने पैरों पर चल कर आया हूं। " तुम्हारे एक अंधविश्वास ने मुझे तुमसे कितना दूर कर दिया है कि चाह कर भी मैं तुम्हारे साथ खड़ा नहीं हो सका वैसे अच्छा ही हुआ कि मेरे जन्मदिन पर तुमने केक काटा यह जुर्रत तो मेरी पत्नी ने भी कभी नहीं किया है। तुम विशेष हो इसीलिए अभी तक शेष हो। इस जन्म में हम साथ नहीं हो सके अगले जन्म तक तुम्हें यह समझ आ जाएगी कि तुम विष कन्या नहीं हो, जो तुम्हारे अपने लोगों की मृत्यु हुई थी उनमें किसी की भी मौत का कारण तुम्हारा उनके प्रति प्रेम नहीं था बल्कि ईश्वर की मर्जी थी। उन लोगों की उतने ही दिनों की आयु थी मगर तुमने यह बात अपने मन में बैठा ली थी कि तुम जिससे भी प्रेम करोगी उसकी मृत्यु निश्चित है इसलिए तुमने मुझसे दूरी बना ली ताकि मैं जीवित रह सकूं, हैं न ? मगर क्या यह फैसला प्रेम से वशीभूत होकर नहीं लिया था ? तुमने प्रेम करना कहां छोड़ा ? तुमने मुझे छोड़ा, अपना सुख छोड़ा, अपनी खुशियां छोड़ी यहां तक की अपना जीवन भी त्याग दिया और तपस्या करती रही मेरे जीवन के लिए ....! यह प्रेम नहीं तो क्या है ? तुमने हमेशा-हमेशा प्रेम किया है तुम प्रेम पूंज हो। एक बार फिर तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा शांति कुंज। सभी अचंभित थे इस प्रणय संवाद से।

पत्रकारों और मिडिया वालों को एक बेशकीमती धरोहर मिल गया था जिसे बटोरने और संभालने में व्यस्त हो गए और छा गया फिर सन्नाटा। दूधिया बालों वाला मेहमान जा चुका था और शोभा जी बड़े इत्मीनान से केक खा रही थी उन्होंने जाते हुए मेहमान को रोकने की कोई कोशिश नहीं की और चले जाने पर कोई विलाप भी नहीं किया। 40/42 वर्षों बाद जिन्हें देखा था उनके पास आने की जरूरत महसूस नहीं हुई उन्हें और ना कुछ पूछा ना कुछ बोला। उनके चेहरे पर संतुष्टि और तृप्ति के भाव जो परिलक्षित हो रहा था वह बता रहा था शोभा जी वास्तव में एक असाधारण और अद्भुत व्यक्तित्व की मालकिन हैं।


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