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Sonia Chetan kanoongo

Abstract

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Sonia Chetan kanoongo

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अनकही बातें

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आज ना जाने क्यों नींद नही थी आँखों में, घड़ी की सुइयां टिक टिक की आवाज सुना रही थी, ऐसा नही था कि आज ही मुझे नींद ने अपनी अघोश में नही लिया हो, कई बार ऐसे ही राते सताती थी, पर आज चिंता सता रही थी।

शादी के 8 साल हो गए थे , मेरा राहुल ऐसा तो नही था , हमारा रिश्ता बहुत ही प्यारा था, एक दूसरे के लिए जान छिड़कते थे, हाँ थोड़ी बहुत अनबन होती थी पर वो तुरंत ठीक हो जाती थी। पर वो अनबन भी अच्छी लगती थी, एक दूसरे का खाने के लिए इंतजार करना, एक दूसरे की मदद करना, जिंदगी कब करवट बदल रही थी पता ही नही चला, कब परवाह परेशानी का रूप लेली पता ही नही चला, कब एक दूसरे का इंतजार खत्म हो गया पता ही नही चला,

ऐसा हो रहा था हमे महसूस भी नही हो रहा था, कल जाकर मेरी नींद टूटी। मेरा बर्थडे था,

याद है मुझे किस तरह का बर्थडे हम मिलकर बनाते थे, एक दूसरे के लिए सरप्राइज का सिलसिला रुकता ही नही था,

पर आज रात के 12 बजे जब मेरा बर्थडे खत्म होने वाला था, पर राहुल का इंतजार मैं कर रही थी, शायद वो बहुत बढ़ गया था, आज सुबह से जैसे मुझे बस उसी का इंतजार था, लगा था सबसे राहुल मुझे गले लगा कर विश करेगा, मेरे लिए फूलों का गुलदस्ता लाएगा, आज कोई तो सरप्राइज होगा, पर राहुल सुबह ऑफिस का बोलकर निकल गया कि आज लेट हो जाएगा। मुझे लगा शायद कोई सरप्राइज होगा पर पिछले 3 सालों में ना मैंने उसे कोई सरप्राइज दिया था और ना उसने मुझे।

पर ना जाने क्यों आज इंतजार होने लगा था, कभी कभी सोचती थी कि क्या मैंने अपनेआप को रीवा की परवरिश में इतना व्यस्त कर बैठी थी मेरा प्यार मुझसे दूर जाने लगा था, और मैं अहसास भी नही कर पाई थी।

बस यही सोच रही थी कि कब सुबह हो और मैं अपनी भड़ास निकालूँ, पर क्या ये सही होगा

एक पल को यही रोक मैंने सोचा नही कल का सवेरा फिर एक सवाल या दरार नही प्यार लेकर आएगा।

शायद मैं ही अपने आप को भुला बैठी।

सुबह की चाय इंतज़ार कर रही है राहुल, आ जाओ आज साथ मे बैठ कर चाय पियेंगे।

अरे आज सुबह का सूरज कहाँ से निकला है रीना , आज मेरे साथ चाय दिन बन गया मेरा।

एक मुस्कुराहट मेरे चेहरे पर बिखर गई, की गई पहली कोशिश मेरे अतीत को साँसे दे पा रही थी।

कुछ बीती बातों के साथ दिन की शुरुआत हुई।

मुझे माफ़ करदो राहुल, शायद मैं खुद में इतनी उलझ गए थी कि अपने प्यार को नजरअंदाज करने लगी।

तभी राहुल की नजर आज की तारीख जो अखबार पर लिखी थी और पड़ी,

ओह मय गॉड, कल तुम्हारा बर्थडे था,और मैं भूल गया, कैसे यार और तुमने मुझसे कुछ नही कहा, यहाँ तक नाराज भी नही हुई।

नाराज कहाँ से होती राहुल ये गलती सिर्फ तुम्हारी नहीं मेरी भी थी, हम दोनों शायद इतने व्यस्त हो गए कि अपनी छोटी छोटी खुशियों को सहेजना ही भूल गए,

पर अब मैं वादा करती हूँ हमारी हर एक खुशी का ख़्याल मैं ठीक वैसे ही रखूँगी जैसे मैं अपनी रीवा का रखती हूँ।

मैं भी वादा करता हूँ रीना अबसे तुम्हे शिकायत का मौका नही दूँगा, और कल बीत गया तो क्या हम आज तुम्हारा जन्मदिन मनाएंगे, बाहर चलेंगे, आज का दिन सिर्फ तुम्हारा,

शायद ये मेरी जीत ही थी जिसे मैंने खुद एक कदम बढ़ाकर पाया, वरना शिकायतें तो जिंदगी भर पीछा नही छोड़ती।

दोस्तों हम जिम्मेदारियों के भवर में अपने आप को इस तरह फंसा लेते है कि उसके सिवा हमें कुछ दिखाई ही नही देता लेकिन जो वक़्त निकल जाता है वो कभी लौट कर नही आता, ये हम लर निर्भर करता है कि हम उस समय मे कितनी यादों को सँजो सकते हैं।


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