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Seema Verma

Abstract

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Seema Verma

Abstract

अंक ३)

अंक ३)

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       " डार्लिंग! कब मिलोगी" अंक ...३


उस दिन दीदी से अपने संभावित दूल्हे का वर्णन सुनकर नैना का दिल कांप गया था।  शोभित से फिर कभी दोबारा नहीं मिलने की शर्त पर उसे घर बुलाने वाली बात घर में सबसे छिपा ली थी।  

पर उनके साथ नैना भी जानती है। कि वो अधिक दिनों तक शर्त निभा नहीं पाएगी।

नैना को आज ही यह खयाल‌ आया है,

" आख़िर वह इतना डरती क्यों है शोभित से मिलने से ?

" मैं क्यों रूकी रही इतने दिनों तक न जाने वह यहां होगा भी या नहीं कहीं चला ना गया हो ? "

यह ख्याल दिमाग में आते ही जितनी तेज उसकी चाल है उससे भी अधिक तेज चाल से चल कर शोभित के ठिकाने पर जा पहुंची है।

उसे शोभित से मिले हुए एक हफ्ते से उपर बीत चुके हैं। ‌‌‌‌

 उसके दरवाजे पर खड़ी नैना ने फिर से पिछले दिनों देखी फिल्म को याद किया ,

" फिल्म के नायक की तरह शोभित में ऐसा क्या है ?

 जिससे मेरा दिल उसपर आ जाए। 

क्या मेरा यहां आना उसके प्रति प्रेम भाव से है?  

या फिर बस ऐसे ही मात्र लगाव ? "

उसने एक आनंद जैसा महसूस किया। 

 इससे पहले की उसका विवेक जग जाता और वह उल्टे पांव वापस हो लेती। 

 नैना ने शोभित को खुद के सामने खड़े पाया ।

वह उसके काफी करीब खड़ा है।

शोभित गंभीर किस्म का है। उसने नैना की ओर झुक कर ,

" तुम आ गई ! अंदर आओ नैना "

" मैं पहले ही आने वाली थी। दरअसल इन दिनों मैं पशोपेश में पड़ी हूं "

" क्यों ? आजकल कुछ खास ?"

" कोई ऐसी भी चिंता नहीं असल में मैं खुद ही नहीं समझ पा रही हूं बात क्या है ? "

कहती हुई सहजता से दीदी से लगी शर्त वाली बात छिपा ली और वहां रखे सोफे पर बैठ गई।

जल्दी - जल्दी चल कर आने की वजह से उसकी सांसें तेज चल रही थीं।

जिसे महसूस कर शोभित ने पंखे को औन कर ,

" पहले तुम रिलैक्स हो लो फिर हम बातें करें ?"

  तुम्हारे जीवन का कोई महत्व पूर्ण अध्याय शुरू होने वाला है "

कुछ चौंक कर नैना ने पूछा --

" क्यों ? ऐसा किस तरह कह सकते हो तुम ? "

" यों ही तुम्हें मालूम नहीं मैं बहुत अच्छा ज्योतिष भी हूं "

" ओह , समझी ! " कह कर हल्के से मुस्कुराई और अपने नर्म हथेलियों को शोभित के सामने फैला कर बोली,

" अच्छा तो यह बताओ , निकट भविष्य में मेरे जीवन में क्या - क्या चेंजेज आने वाले हैं "

फिर बच्चों की तरह मचलती हुई,

" जरा अच्छी तरह देखना "

चकित शोभित ने महज बात को टालने के लिए कही थी।

जिसे नैना उसकी सहज इच्छा जान कर सोफे पर पांव चढ़ा कर बैठ गई ,

" सच में जानते हो तुम "

" नहीं मैं तो यों ही बस।

 अच्छा चलो आज मुझे अपनी पिछली सारी बातें बताओ "

 शोभित फ्रिज खोल कर खड़ा हो गया 

" कुछ लेना चाहोगी ? "

" क्या है ? "

" वाइन, शैम्पेन,लाइम जूस "

" मैं लाइमजूस ले लूंगी "

कुछ देर फिर सन्नाटा छाया रहा।


--' नैना' ने अपनी जिंदगी के पन्ने पलटने शुरू किए।  

सबसे पहले अपने बचपन के दिन।  

नैना के पिता जिला सचिवालय में तृतीय श्रेणी के कर्मचारी थे।

कानपुर की संकरी , उबड़खाबड़ और खुली नालियों वाली गली में उनका पुश्तैनी पक्के का मकान था।

उनकी अपनी दो बेटियां हैं जिनमें बड़ी बेटी  

१) ‌‌' जया '  

थोड़ी सांवली और तीखे नाक नक्शे वाली वह घर के कामकाज में मां की सहायता कर दिया करती ।

२) ' नैना ' , लंबी - छरहरी बड़ी -बड़ी आंखों वाली जिसके बचपन में सब उसे  'चकरी ' कह कर बुलाते थे। वो इसलिए कि वह जब दो- तीन हफ्तों की ही थी तभी से पूरे बिस्तर पर घूम - घूम कर सोया करती।

चलते समय उसकी चड्डी फिसलती रहती थी , 

और जिसे अपनी बहती हुई नाक फ्राक से पोछने में कोई परहेज नहीं रहता।

वो शुरू से बड़ी बहन जया की अपेक्षा चंचल और चिंतनशील थी।

मां उसे बचपन से ही भली भांति समझती हैं।

वह यह कि,

" नैना के सन्दर्भ में कुछ भी… उनके अधिकार क्षेत्र से बाहर है "

एवं जिसकी बारीक सोच और तर्कशीलता के लिए उनके मन में कौतुक भरा स्नेह भरा हुआ है।

३) जबकि पिता उसे लेकर हरदम विचलित रहा करते हैं।

४ ) ‌‌ भाई विनोद, यों तो ताऊ जी के बेटे हैं पर मां- बाबा ने कभी फर्क नहीं जाना। उनकी व्यवहार बुद्धि अति चौकन्नी है।

 वो सहज बातचीत के दौरान बहनों की मानसिक अवस्था से परिचित होते हुए उनपर प्रौपर निगरानी रखने का प्रयास करता है।

इस समय परिवार में जया की शादी का मुद्दा मुखर है। 

दान- दहेज के लिए परिवार के पास विशेष पैसे हैं नहीं, पिता साधारण नौकरी में हैं।

जया शुरू से ही मां के साथ घर के कामों में मदद करने में जुटी रहने के कारण ज्यादा तो नहीं पर सेकेंड डिवीजन से बी.ए पास कर किसी तरह बी. एड की डिग्री भी ले ली है।

लेकिन पैसों के अभाव में जहां भी उसके शादी की बात चलती है। वहीं असफलता हाथ आती देख घर के माहौल में तनाव ‌घुलने लगा है।

 पिता ने मंगल का व्रत रखना शुरू कर दिया है और मां ने शुक्रवार का व्रत।

जिस सब को देख जया भी एक अदद दूल्हे के लिए बेताव हो उठी है। 

उसे अपने चेहरे को चमकदार बनाने की कोशिश  एवं किसी के द्वारा खुद को पसंद किए जाने वास्ते रोज शाम को मंदिर में जा शिवलिंग पकड़ घंटों बैठी रहना, नैना को उसके और करीब ला दिया है।

वो अक्सर दीदी को टोक देती है ,

 " दीदी दूल्हे पाने की इतनी बेताबी ? "

" नहीं रे , मां- बाबा की परेशानी दूर करना ही इसकी वजह है " 

जया मायूस सी हंसी हंस कर कर उसे टालने की कोशिश करती है।

तब नैना के बेइंतहा गुस्से का ठीकरा बाबा के सिर फूटता दबी जुबान से,

" जब निभाने की औकात नहीं थी, तो पैदा क्यों किया जरूरत क्या थी ? 

" क्या कहती है नैना ? "

" हां ठीक ही तो कह रही हूं परिवार नियोजन भी कर सकते थे जिसके इतने सारे तरीके हैं कोई भी अपना लेते। "

जया घबरा कर में उसके मुंह पर हाथ रख देती।

" चुप- चुप , नैना तुम भी ना ! 

कुछ भी कहती चली जाती हो ऐसा नहीं कहते, कुछ भी हो आखिर वे हमारे पिता है ंं "

" हुंह ... लानत है "

 नैना जया की अच्छाई पर और चिढ़ जाती "

इसी तरह चिढ़ती-चिढ़ाती जया, नैना और विनोद भाई उम्र की सीढ़ियां दर सीढ़ियां चढ़ते चले जा रहे थे।

नैना की किशोरावस्था शुरू हो गई है।

यह उसके जीवन के सबसे संकट के दिन थे। जब उसके शरीर के अंग और कटाव मुखर और मांसल हो रहे थे। 

उसकी ब्रा का साइज़ दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा था।

और नन्हा सा दिल बात - बात पर बल्लियों उछलने लगता था। जब वह स्कूल में थी…

टीन एजर नैना ... 

अचानक उसकी सहज बाल सुलभ दिनचर्या में एक तीखा मोड़ आने लगा था। 

उन दोनों बहनों के स्वभाव में जमीन आसमान का फर्क है।

नैना सयानी होने को आई है यों तो उसका रवैया बड़ा ही उलझा रहता है,

लेकिन उसके स्वभाव में कुछ खूबियां भी हैं जो उस उम्र की लड़कियों में थोड़ी कम ही होती हैं। 

बिना कुछ बोले खुद को सिर्फ भाव के जरिए जाहिर किया जा सकता है। किस तरह शब्दों के जादू से मन की किताब पर ढ़ेरों किस्से कहानियां लिखीं जा सकती हैं यह उसे बखूबी पता है।

उसकी मन की उड़ान को छू पाना इतना आसान नहीं है किसी के लिए भी नहीं। ना मां- बाबा के और ना ही दीदी- भाई के लिए।

उनके घर से थोड़ी ही दूर पर एक सिनेमा हाॅल पड़ता था। 

वे दोनों बहनें घर और विनोद भाई से छुपते - छिपाते उसमें चल रहे रोमांटिक सिनेमा के शो देख आती हैं।

जिसके असर से , इसके पहले जहां नैना के जीवन में अभूतपूर्व शांति थी वहीं अब प्यार - मुहब्बत -इश्क आदि-आदि जैसे नये शब्दों के इजाद हुए थे। 

फिल्में देखना और उसके तद्नुसार शीशे के सामने खड़े होकर तरह- तरह के फिल्मी लटके- झटके वाले हाव- भाव वाले व्यवहार की नकल करना नैना का नया और प्रिय शौक बन चुका था।

जिसमें अक्सर तो नहीं पर कभी-कभी जिद कर के वो जया को भी शामिल होने को मजबूर कर देती।

खुद हीरोइन बन जाती और जया को बना देती है चाॅकलेटी हीरो।

 फिर एक से बढ़ कर एक रसीले अंदाज में आंखें मटकाती, अंग हिलाती कूल्हे मटकाती नृत्य करती है कि मत पूछिए ?

 उसकी इन जान लेने वाली अदाओं के सामने जया को फिल्म की हीरोइन भी फीकी लगती। 

वह बढ़- बढ़ कर उसकी बलाएं लेती हुई बांहों में भर लेती।


इन सबमें जून महीना निकल गया है । बरसात की फुहारों ने सब तरफ हरियाली ला दी है। लंबी गर्मी छुट्टी के बाद स्कूल खुल गये थे।

 चारों ओर हल्ला-गुल्ला , शोर -शराबा नैना को फिल्मों का नया खुमार चढ़ा हुआ।

उन्हीं दिनों उसका सामना एक नये आशिक से जो बीस से पच्चीस बरस के बीच का बेहतरीन छवि , कांपती हुई आवाज वाला नवजवान।

उसके पास एक नीले रंग की साइकिल थी। जिस पर सवार हो कर वो रोज सुबह और शाम को छुट्टी के समय उस स्कूल के सामने खड़ा रहता जहां नैना पढ़ती थी ।

जब वो पहले से खड़ी बस की तरफ अपनी झूमती हुई चाल से चल कर बढ़ती तो वह आशिक भी उसके पीछे हो लिया करता और बस के साथ- साथ कभी आगे तो कभी पीछे उसकी खिड़की वाली सीट के बगल में साइकल पर चलता।

कभी मुस्कुराता, कभी होंठ गोल करता तो कभी आहें भरता उसे बुरा तो नहीं लगता पर साफ- साफ कहें तो अच्छा भी नहीं लगता।

एक दिन उसने जब दीदी को यह समस्या बताई तो जया ने कहा ,

" कितना सुंदर है ? "

 जया ने उसके लिए स्मार्ट शब्द का प्रयोग नहीं किया था । 

इसकी वजह शायद उसका साइकिल पर सवार होना था। क्योंकि उन्हें शायद तब उसका साइकिल पर सवार होना बेहद स्वाभाविक लगा है।

बहरहाल,

नैना उसके इर्द गिर्द होने और मीठी फ़ब्तियो से लुभा जाती असमंजस वाली स्थिति में भी पड़ जाया करती।

 उसकी दीवानगी में नैना प्रेम जैसा कोई आकर्षण नहीं पाती।

तो क्या अगर वह साइकिल छोड़ किसी और तरह से आता तो नैना के चेहरे पर मुस्कराहट ला पाता ?

और नैना के मन में अपने प्रति राजकुमार वाली फीलिंग दे पाता ?

आह! यह टीन एज और हमारी नायिका नैना सरीखी टीन एजर्स की अल्हड़ सोच।

आगे ...


क्रमशः


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