अनाम रिश्ता
अनाम रिश्ता
अमौसी एयर पोर्ट के अंदर जाने से पहले बकुल ने मां मानसी जी के पैर छुये तो वह भावुक हो उठीं, उन्होंने बेटे को आशीर्वाद देते हुये उनकी आंखें भर आईं ...
‘बाय मॉम ‘ उन्होंने देखा ही नहीं था कि अपनी बाइक से पीछे पीछे नीरज भी बकुल को सी ऑफ करने के लिये आये हैं वह उन्हें देख कर चौंक पड़ी थी ....जब उसने नीरज के भी पैर छुये और बोला, ’सर मॉम का ख्याल रखियेगा ...’
‘नीरज तुम ‘.... वह आश्चर्य से बोलीं थी।
‘बकुल जा रहा था, तो मुझे उसे छोड़ने तो आना ही था ....’
‘आ जाओ मेरे साथ गाड़ी में चलना ‘
‘नहीं, मैं अपनी बाइक से आया हूँ ‘
उनकी निगाहें काफी देर तक बकुल का पीछा करती रहीं फिर जब वह अंदर चला गया तो अपने युवा बेटे की सफलता की खुशी के साथ साथ उसके बिछोह कासोच छलछला उठीं थीं . वह गाड़ी के अंदर गुमसुम होकर बैठ गईं ... सूनी आंखों से खिड़की के बाहर देखने लगीं ...
वह घर पहुंची तो रूपा से कॉफी कह कर बॉलकनी में खड़ी हो गई थीं . वह अपने में ही खोई हुई सी थीं तभी रूपा बोली, ‘मैडम कॉफी’
वह भूल गई थीं कि उन्होंने रूपा से कॉफी के लिये कहा था ... वह कप उठा ही रही थीं कि डोर बेल बज उठी, वह समझ गईं थीं कि नीरज के सिवा इस समय भला कौन हो सकता है....
रूपा एक कॉफी और बना दो ...
नीरज जिसने उनके अकेलेपन में, उनके कठिन समय में, कहा जाये तो हर कदम पर उनका साथ दिया था .
‘अकेले अकेले कॉफी पी जा रही है ‘ एयर पोर्ट पर आपका उदास चेहरा देख कर अपने को नहीं रोक पाया और बाइक अपने आप इधर को मुड़ गई .... ‘
‘आज स्कूल नहीं गये ....
कहां खोई हुई हैं आप, आज तो संडे है ... कह कर आदत के अनुसार हो हो कर हंस पड़ा ....
‘ओह ‘
‘आज बकुल गया है तो मन भर आया .... ‘
‘चलो, तुम्हारी इतने दिनों की तपस्या सफल हो गई ... तुम्हारा बेटा पढ लिख कर लायक बन गया, अब कुछ दिनों में अपनी किसी गर्ल फ्रेंड के साथ शादी करने को बोलेगा, फिर अपनी दुनिया में रम जायेगा ... यही तो दुनिया की रीति है ....’
‘हां वह तो तुम ठीक कह रहे हो लेकिन जो मेरे जीवन का ध्येय था कि बेटे को कामयाब बनाऊं, वह तो तुम्हारी मदद से पूरा कर ही लिया ....’
‘मानसी कभी अपनी खुशी के बारे में भी तो सोचा करो ....’
तुम मेरे दोस्त हो तो, जो हर समय मेरी खुशी के बारे में ही सोचते रहते हो .... अभी देखो बकुल गया इसलिये मन उदास हो रहा था, तो मुझे सहारा देने के लिये आ गये ...
‘हां दोस्ती की है तो जिंदगी भर निभाऊंगा कह कर वह जोर से हंस पड़ा .... ‘
नीरज की हंसी उन्हें बहुत मोहक लगती थी ... वह भी हंस पड़ी थीं ...
‘फिर पकड़ो मेरा हाथ ... कहते हुये उसने अपनी हथेली उनकी तरफ बढ़ा दी ....’
मानसी ने झिझकते हुये उसकी हथेली पर अपनी हथेली रख दी थी ... यद्यपि कि पुरुष के स्पर्श से उनका सर्वांग कंपकंपा उठा और वह उठ कर खड़ी हो गईं थीं ….
‘मानसी, चलो आज हम दोनों लंच के लिये कहीं बाहर चलते हैं ....’
‘अभी 10 बजे हैं मैं 1 बजे तक आऊंगा .... ‘
‘क्यों ... बैठो ... क्यों जा रहे हो .... ‘
‘अरे यार समझा करो ….अभी नहाया भी नहीं हूँ फिर आपके साथ लंच पर जाना है तो जरा ढंग से कपड़े वगैरह पहन कर आऊंगा .. अभी तो बस बाइक उठाई और आ गया था ....’
नीरज चले गये थे .... रूपा गाने की शौकीन थी, उसके मोबाइल पर गाना बज रहा था ..
‘महलों का राजा मिला .... कि रानी बेटी राज करे .... ‘
इस गीत के शब्दों ने उन्हें उनके अतीत में पहुंचा दिया और उनके अतीत के एक एक पन्ने खुलते चले गये ...
कितने सुनहरे सपनों को अपने मन में संजो कर वह अपने घर की देहरी से बाहर निकली थी ... 19 वर्ष की मानसी करोड़पति पिता की लाडली थी ... उन्होंने बी.ए. में एडमिशन लिया ही था कि पिता मनोहर लाल ने उनकी शादी तय कर दी थी . पैसे को मुट्ठी में पकड़ने वाले पापा ने बेटी की खुशियों के लिये अपनी तिजोरी का मुंह खोल दिया था . वह भी राजकुमार से स्वप्निल के सपनों में खो गई थी ....जब हाथी पर सवार होकर स्वप्निल दूल्हे के वेष में आये तो बांके से सलोने युवक की तिरछी सी मुस्कान पर वह मर मिटी थी ....
‘बड़ी किस्मत वाली है मानसी .... जीजू तो बिल्कल फिल्मी हीरो हैं ....
जब उसकी सहेलियों ने बोला तो वह शर्मा उठी थी तभी शीला मौसी आ गईं और कहने लगी थीं, ‘ कुंअर जी को नजर मत लगा देना छोरियों .... ‘
‘जीजा जी ने दामाद तो हीरा जैसा ढूंढा है, राज करेगी मेरी मानसी ‘
सिर से पैर तक जेवरों से लदी हुई, भारी लंहगें में सजी धजी जब उन्होंने ससुराल में कदम रखा था, तो वहां पर उनका भव्य स्वागत हुआ था . सास मालती जी ऒर नंदों ने मिल कर उनके सपने साकार कर दिये थे ...उन लोगों का लाड़ प्यार पाकर वह अभिभूत हो उठी थी ..
स्वप्निल की बाहों में उन्हें जीवन की सारी खुशियां मिल गईं थीं। काश्मीर में गुलमर्ग और पहलगाम की वादियों मे बर्फ के गोले से खेलती हुई वहां के सौंदर्य में खो गई थी । स्वप्निल को घूमने का शौक था, कभी मुंबई की जुहू चौपाटी तो कभी महाबलीपुरम् का बीच ... कितने खुशनुमा दिन और रातें थीं .....
फिर जब उनकी जिंदगी में जुड़ुआं गोलू मोलू आ गये तो उनकी जिम्मेदारियां बढ गईं और स्वप्निल भी पापा के साथ बिजनेस में बिजी हो गये थे ....
गोलू मोलू 3 साल के थे तब एक दिन स्वप्निल घबराये हुये आये और बोले, ‘मानसी अपना बैग पैक कर लेना, सुबह हम लोगों को आगरा पहुंचना है ... वन्या दी हॉस्पिटल में एडमिट हैं, उनकी हालत खराब है ...’
‘स्वप्निल, प्लीज सुबह चलियेगा, रात में यदि ड्राइवर को नींद का झोंका आ गया तो .... ‘
‘फालतू बात मत करो ..... रात में 11- 12 बजे निकलेंगे सुबह पहुंच जायेंगे .... रात में रोड खाली मिलती है .’
वह सहम कर चुप हो गईं थीं … उन्होंने जल्दी जल्दी कुछ कपड़े बच्चों के रखे और अपने और स्वप्निल के रखे और निकल पड़ी थी .... स्वप्निल की आंखें थकान के मारे नींद से बोझिल हो रही थीं वह बार बार आंखों पर पानी डाल रहे थे .... नियति को दोष देकर हम सब अपने को दोष मुक्त कर लेते हैं परंतु दुर्घटना के लिये दोषी तो हम भी होते ही हैं ....
जीवन में सुख और दुःख उसी तरह से सुनिश्चित और संभाव्य है जैसे दिन और रात .... खुशियों के झूले में झूलने वाली मानसी नहीं जानती थी कि भवितव्य उन्हें जीवन के दुखद क्षणों की ओर खींच कर ले जा रहा है .....गाड़ी में बैठते ही दोनों बच्चे और वह गहरी नींद में सो गये थे ….वह भी बैठते ही सो गई ....शायद थके हुये स्वप्निल को भी नींद आ गई थी कुछ ही देर में जोर का धमाका हुआ और उन्हें लगा कि कोई पिघला शीशा उनके ऊपर उंडेल रहा है फिर कुछ पलों में ही वह मूर्छित हो गईं थीं ...
अफरातफरी का माहौल, रात का गहरे अंधेरे में एक ट्रक ने जोर की टक्कर मार दी थी ... सारे सपने तहस नहस हो गये ....उस दिन स्वप्निल उन्हें अकेला छोड़ गये, मोलू भी उनके साथ विदा हो गया था ... गोलू को खरोंच भी नहीं आई थी लेकिन उनका एक हाथ और एक पैर बुरी तरह से कुचल गया था इसलिये वह दो महीने तक जीवन ज्योति नर्सिंग होम में एडमिट रहीं .... पापा जी आया करते और जरूरी कागजों पर साइन करवाते .... न ही वह कहते कि कागज पढ लो और न ही वह कोई रुचि दिखाती ... अब तो यही लोग उनके जीवन दाता थे ... कभी ईशा दी कभी मम्मी जी गोलू को लेकर आया करतीं लेकिन वह उन्हें बेड पर लेटे देख कर मम्मी जी की गोद में छिप जाता ... उनकी आंखों से अविरल अश्रुधारा प्रवाहित होती रहती ...उनके दिमाग ने काम करना ही बंद कर दिया था .
गोलू का नाम स्वप्निल ने बकुल रखा था इसलिये अब सब लोग उसे बकुल ही पुकारा करते थे .
उनके मम्मी पापा उन्हें अपने साथ आगरा ले जाना चाहते थे लेकिन यहां पापा जी का कहना था कि जब तक ऑफिशियल काम न पूरे हों, तब तक यहीं रहो .... बार बार कौन जायेगा साइन करवाने .....
उनकी अपनी मां दिन रात उनके साथ बनी रहती और पापा डॉक्टरों से संपर्क में रहते ... उनकी कई बार प्लास्टिक सर्जरी भी होती रही .. जब तक ये सब चलता रहा मम्मीजी खूब प्यार से बोलतीं और उनका ध्यान रखा करतीं।
छः महीने के बाद उन्हें पापा अपने साथ आगरा ले आये .. यहां पर सब उनकी किस्मत को कोसते ...
मां के घर में तो बिल्कुल भी चैन नहीं था ... दादी, ताई, चाची, बुआ आदि का जमावड़ा और बस एक ही बात, ‘हाय -हाय 25 साल की छोरी ... कैसे काटेगी पूरी जिंदगी’ और फिर जबरदस्ती रोने का नाटक करते हुये बातों में मशगूल हो जाना .... पिछले जनम के पाप हैं, वह तो भुगतने ही पड़ेंगें .... ताई बोलीं, ’मानसी तुम एकादशी का व्रत किया करो, मेरे साथ कल से मंदिर दर्शन करने चला करो .... वहां गुरू जी बहुत बढ़िया सत्संग करवाते हैं ....’ मम्मी पापा को यह विश्वास था कि पूजा पाठ से कष्ट दूर हो जायेंगें ....
‘ये क्या ...तुमने लाल चूड़ियां पहन लीं ...’ बुआ ने घर में हंगामा मचा कर रख दिया था ... मम्मी उनके सामने जुबान नहीं हिला सकतीं थीं .....
‘मानसी अभी तक सो रही हो ... उठो आज अमावस्या है .. स्वप्निल की आत्मा की शांति के लिये ब्राह्मण भोजन और हवन है ... ‘ताई ने उसे जताते हुये जोर से बोला ....
वह उठी और भुनभना कर बोली, ‘स्वप्निल ने तो मुझे जिंदा ही मरण तुल्य कर दिया है ....ऐसी जिंदगी से तो उसी दिन मर जाती तो यह सब न देखना पड़ता ... उसका चेहरा गुस्से से लाल हो रहा था ... ‘
उनकी बड़बड़ाहट को बुआ ने सुन लिया था , ‘वाह रे छोकरी, मरे आदमी को कोस रही है ... जाने कौन से पाप किये थे जो भरी जवानी में विधवा हो गई ... अब तो चेत जाओ कम से कम अगला जनम तो सुधार लो ... वह अपने को अनाथ सा महसूस कर रही थी,....
तभी पापा आ गये और जोर से बोले, ‘मेरी लाडो को मत परेशान किया करो ...’ वह पापा से लिपट कर सिसक पड़ी थी …
अगले दिन सुबह विमला नहीं आई थी ... बकुल भूखा था वह किचन में बगैर नहाये चली गई थी .... मम्मी आ गईं और उन्हें किचन में देखते ही चिल्ला कर बोलीं, मानसी तुम्हें जरा सा सबर नहीं था .... ‘मैं नहा कर आ तो रही थी ...’
‘बकुल इतनी जोर से रो रहा था ....’
‘आज पूर्णिमा है तुमने बगैर नहाये सब छू लिया अब फिर से किचेन धोना पड़ेगा ...’
‘उफ.... मां, कब तक इन कर्मकांड भरे ढकोसलों में पड़ी रहोगी... आपने तो मेरा जीना हराम कर दिया है ...’
वह पैर पटकते हुये अपने कमरे में जाकर सिसक पड़ी थी .... यहां से अच्छा तो मेरे ससुराल वाले मुझे रखते हैं ... आगरा रहते हुये छः महीने हो चुके थे ... मालती मम्मी जी का फोन लगभग रोज आ जाता और वह बकुल को याद करती रहतीं ....
उन्होंने नाराज होकर लखनऊ जाने का निश्चय कर लिया था ...शायद मम्मी भी उनसे परेशान हो चुकी थीं.
उन्होंने बकुल से फोन पर कहला दिया, ’दादी मुझे आना है ‘
अगली सुबह मम्मी जी ने गाड़ी भेज दी और वह लखनऊ पहुंच गई थी।
इस बीच पापा जी ने ईशा दी को अपने घर में बुला लिया था, वह लोग सब अब यहीं रहने वाले थे, ये बात तो उन्हें बहुत बाद में पता चली थी ....
उनका जीवन तो बोझ बन चुका था क्योंकि मम्मी जी का झुकाव बेटियों की तरफ ज्यादा हो गया था, वह अब एक फालतू चीज बन कर रह गई थी, जिसकी कहीं कोई उपयोगिता नहीं थी ....
उनके पापा और ससुर जी के बीच जेवर, इंस्योरेंस के पैसे, बैंक लॉकर के जेवर, और एफ डी आदि के लिये मनमुटाव शुरू हो गया था ... पापा का कहना था कि उनकी बेटी के नाम सब होना चाहिये .... अक्सर मीटिंग होती , दोनों तरफ के कुछ लोग बैठते... बहसा बहसी होती ... लेकिन कुछ तय नहीं हो पाता क्यों कि पापा जी कुछ भी देना ही नहीं चाहते थे .... लॉकर के गहने, और इंस्योरेंस के रुपये, उनका स्त्री धन और कुछ प्रॉपर्टी कुछ भी उनके नाम करने को तैयार नहीं हो रहे थे . दो साल तक वह कभी ससुराल तो कभी मायके अपने दिन गुजारती रही थी .
वन्या दी, ईशा दी और मम्मी जी का एक ग्रुप बन गया था .... वह उन्हें अपनी बातों में कम शामिल करतीं ... खूब शॉपिंग पर जातीं ... लेकिन अपना सामान बहुत कम ही उन्हें दिखाया करतीं ... वह अपने कमरे में टी.वी. और मोबाइल से सिर फोड़ती रहती ...
ईशा दी की बेटी लवी और बकुल में दिन भर लड़ाई झगड़ा तो रोज की बात थी ... लवी बड़ी थी, वह चुपचाप उसके चुटकी काट लिया करती ... कभी बकुल रोते हुये उनके पास आता .. लवी ने मेरा खिलौना छीन लिया ....दिन भर यही सब चलता रहता .. वह लवी को कुछ नहीं कह सकती थीं बकुल ही दिन भर डांट खाता ... कभी वह नन्हे से बकुल को थप्पड़ लगा कर रो पड़ती थी ...मम्मी जी उसको अपनी गोद में बिठा कर प्यार तो करतीं लेकिन लवी को कुछ न कहतीं ...
एक दिन दोनों बच्चे लड़ रहे थे तो बकुल नेंलवी को धक्का दे दिया ... वह गिर गई और होंठ में दांत चुभ गया था ... दी ने आव देखा न ताव बकुल के गाल पर जोर का थप्पड़ लगा दिया और जोर जोर चीखने लगी तो वह सह नहीं सकीं थीं .. वह गुस्से में बोलीं, ‘दी आपने नन्हें से बकुल को इतनी जोर से मारा कि देखिये उसके गालों पर आपकी सारी अंगुलियां छप गईं हैं ...’
‘ ये नहीं दिखता कि बकुल ने लवी को कितनी जोर से धक्का दिया है ..कभी अपने बेटे को भी समझाया करो ..अब तुम बहुत बोलने लगी हो ... भइया तो है नहीं ..जो तुम्हें कंट्रोल करें ... अब तो बिना लगाम की घोड़ी बन गई हो .... वह बहुत देर तक बक बक करती रहीं थीं ... मम्मी जी मूक दर्शक बनी सब सुनती रहीं थीं’ ....
वह घंटों तक अपने कमरे में सिसकती रही थी, मासूम बकुल उनके आंसू पोंछता था ...
वन्या दी भी आती रहतीं, ईशा दी तो रहतीं ही थीं... घर कभी खाली न रहता ... वह बहू का फर्ज निभाते निभाते दुखी हो जाती थी .... इसके बावजूद रोज की चीख चीख ...खाना कैसा बना है ... सलाद नहीं कटा, सब्जी बेकार है ... दाल पतली है ....
‘मानसी, तुम क्या करती रहती हो ? रसोइये से ढंग से खाना भी नहीं बनवा सकतीं ? जब खाने बैठो, तो इतना बेकार खाना .... कहते हुये पापा जी डाइनिंग टेबिल से उठ गये थे फिर तो हंगामा होना स्वाभाविक ही था . ईशा दी के पति विनय जी उनके कमरे में आकर उन्हें ज्ञान देने लगे ...
‘भाभी, आप अकेली हो ... भइया तो है नहीं ... छोटा सा बच्चा भी साथ में है ... इसलिये आप चुप रहा करिये और घर के कामों पर अपना ध्यान दिया करिये ...’
अब तो जब तब जीजू मौका देख कर उनसे बात करते और उनके नजदीक भी आने की कोशिश करने लगे थे .
अब वह उनके सामने जाने से कतराया करती थीं.. वह उनकी ललचाई निगाहों से झुलस कर रह जाया करती थी ...एक दिन तो हद हो गई जब अकेला पाते ही उन्होंने उन्हें अपने आगोश में जकड़ लिया था ...
उन्होंने गुस्से में आव देखा न ताव एक झन्नाटेदार थप्पड़ उनके गाल पर रख दिया था लेकिन सच तो यह है कि ‘समऱथ को नहीं दोष गुसाईं ‘ वह चीख चीख कर कहने लगे कि यह तो उन्हें कब से परेशान कर रही थी ...आज मौका लगते ही मेरे गले ही पड़ गई ... मैं इसे धक्का न देता तो यह जाने क्या करती ....
सब लोग सब कुछ जान समझ रहे थे लेकिन वहां पर उसकी तरफ से बोलने वाला तो कोई था ही नहीं .... क्यों कि उनका पति तो उन्हें मझधार में छोड़ कर जा चुका था .उनका जीवन तो बिना नाविक की नाव की तरह हो गया था जो भंवर में डूब उतरा रही थी ... काश पापा ने उन्हें पढ़ा लिखा कर अपने पैरों पर खड़ा किया होता तो वह इस तरह से मायके और ससुराल की ठोकरें न खातीं।
अपनी बेबसी पर वह रो पड़ी थी ... अब उन्होंने निश्चय कर लिया था कि वह अब यहां एक दिन भी नहीं रहेगी ..उन्होंने पापा को फोन कर दिया था वह सुबह आ गये फिर तो जोर का झगड़ा शुरू हो गया ... बकुल के लिये खींचा तानी .... बकुल स्वप्निल की निशानी है, इसलिये वह यहां पर उन लोगों के साथ ही रहेगा ...
5 साल का अबोध बकुल भला क्या निर्णय लेता .... पापा 6 – 8 लोगों को लेकर आये और लंबी मेराथन बैठक होती रही.... जिसके भविष्य का फैसला होना था, उनकी इच्छा अनिच्छा से किसी को कोई मतलब नहीं था ... वह सब आपस में बुरी तरह से उलझे हुये थे ..... जोर जोर से कहा सुनी हो रही थी .... पापा का कहना था कि उन्होंने मानसी को एक किलो सोने के जेवर दिये थे, वह तो उसका स्त्री धन है .. आपको देना पड़ेगा ... शादी में 4 करोड़ रुपये खर्च हुये थे, उसकी भरपाई कैसे होगी ....
अखिल पापाजी कह रहे थे, ‘यहां पर हम लोग उसे बेटी को तरह रख रहे हैं और इसे कोई बिजनेस करवा देंगे आखिर में वह मेरे वारिस की मां है इसलिये इन लोगों को यहीं रहना होगा’ ..
‘जैसे पहले रहती थी वैसे रहे ...जैसे मेरी ईशा वैसे यह मेरी तीसरी बेटी है ....’
नौबत यहां तक आ गई थी कि गाली गलौज और हाथापाई की स्थिति बन गई थी और मेरे पापा घमंड में बोले, ’ अखिल, कमीने ,तेरा पाला मुझ जैसे रईस से पड़ा है, तेरे मुंह पर मै मारता हूँ…. सारा पैसा,… सोना ... तू पहले भी भिखमंगा था ... शादी के नाम पर कहता रहा... मुझे गाड़ी दो, सोना दो, कैश दो ....नीच कहीं का ...’
पापा को अपने पैसे का गुरूर था और उनका अपना बचपना ...बकुल को पापा ने अपनी गोद में उठाया और उनकी अंगुलि पकड़ कर बाहर गाड़ी में बैठ कर आगरा आ गयी ....
फिर वही रोज का सिलसिला शुरू हो गया ....
आगरा रहते भी दो साल बीत गये थे .... पापा ने एक साधारण परिवार के लड़के को पैसे का लालच देकर उनके साथ शादी करने को राजी कर लिया था .... उसका नाम पियूष था... वह भरतपुर में रहता था , वह इंस्योरेंस का काम करता था इसी सिलसिले में वह पापा के पास आया करता और अपने को बैंक में कैशियर हूँ, ऐसा बताया करता .... , बकुल के लिये कभी चाकलेट तो कभी गेम वगैरह देकर जाता .... फिर धीरे धीरे उनके साथ भी मिलना जुलना होने लगा ... वह उनको भी कभी लंच पर ले जाते .... भविष्य को लेकर बातें करता ...प्यार भरी बातें फोन पर भी होतीं ...उसकी आकर्षक पर्सनैलिटी की वह दीवानी होती जा रही थी ..... उसके प्यार में वह अंधी हो चुकी थी ....
पियूष ने कहा कि उनकी मां बेड पर हैं, इसलिये वह चाहती हैं कि जल्दी से शादी कर लो, तो वह बहू को देख लें और उन्हें तो साथ में पोता भी मिल रहा है ....,पियूष और बकुल के बीच जो ट्यूनिंग थी उससे वह आश्वस्त हो गई थी कि बकुल को पापा और उनके जीवन में फिर से खुशियां दस्तक दे देंगी ... और उनके जीवन का अधूरापन भी समाप्त हो जायेगा.... वह सादे ढंग से मंदिर शादी करना चाहती थीं परंतु पियूष की मां अपने बेटे को दूल्हे के वेष में देखने का सपना पूरा करना चाहती थीं ...
फिर से वही धूमधाम हुई और वह पियूष की दुल्हनिया बन कर उसके घर पहुंच गई थी.... कुछ महीनों तक तो सब कुछ ठीक ठाक रहा लेकिन वह समझ गई थी कि वह ठगी जा चुकी है .... उन्हें बाद में मालूम हुआ कि पापा ने उसे 20 लाख रुपये का लालच दिया था, इसलिये उसने शादी की थी ....
कुछ दिनों के बाद ही पियूष दारू के नशे में रात में देर से आने लगे थे ...नशे में बोलते तू तो जूठन है.... तुझे छूने में घिन आती है .... रोज रात को बकना झकना, गाली गलौज सुन कर उनके हाथ के तोते उड़ गये थे ...सुबह उठ कर झाड़ू बर्तन, नाश्ता, खाना बनाना, उनके लिये बहुत मुश्किल था .... सब कुछ करने के बाद भी पियूष की मां चिल्लातीं, ‘अपशकुनी एक को तो खा गई .... क्या... मेरे लाल को भी खायेगी क्या ....’
पियूष अपने साथ उनको मां के घर लेकर जाता और थोड़ी देर में लौटा लाता ....पापा से कह कर उन्होंने एक नौकरानी बुलवाई , तो पियूष के आत्मसम्मान को चोट पहुंची और वह नाराज हो उठे..... क्यों कि उनके मन में चोर था कि यहां की सब बातें नौकरानी के द्वारा मानसी के माता पिता तक पहुंच जायेंगी। इसीलिये पियूष ने उसे तुरंत भगा दिया था .....
पियूष की मां पैरालाइज्ड थीं ...उनको नहलाना, गंदगी साफ करना... जैसा काम उनके लिये बहुत कष्टदाय़ी था परंतु एक साल तक उस नर्क में गुजर करने की कोशिश करती रहीं थीं .....
पियूष ने झूठ बोला था ..... वह बैंक मे नौकरी नहीं करता था ... उसने पापा से दौलत ऐंठने के लिये शादी का ड्रामा रचा था .
नन्हा बकुल पियूष को देखते ही सहम जाता था, एक दिन वह बकुल को पढ़ा रही थी कि नशे में झूमता हुआ वह आ गया और बकुल को गाली देकर उसकी किताब उठा कर हवा में उछाल दी और उसे जोर से धक्का देते हुये गालियों की बौछार कर दी . वह तेजी उठी और पियूष के समने खड़ी होकर बोली, खबरदार यदि मेरे बेटे के साथ बदतमीजी की या उस पर हाथ उठाया तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा ....
वह जाने किस नशे में डूबा हुआ था, उसने उन्हें भी जोर का धक्का दे दिया, ‘मुझसे मुंहजोरी करेगी, तेरी तो ऐसी दशा करूंगा कि सब घमंड चूर हो जायेगा .
उन्होंने दीवाल का सहारा लेकर अपने को गिरने से बचा लिया परंतु उस दिन पियूष की बद्तमीजी और गालियां उनके लिये सहना मुश्किल हो गया था।
बकुल उनकी बांहों के घेरे में डरे सहमे कपोत की तरह घंटों तक सिसकता रहा था..... वह भी कमरा बंद करके आंसू बहाती रही ..
सुबह हमेशा की तरह पियूष उनके पैर पकड़ कर माफी मांगता रहा था ....
लेकिन अब उन्होंने फैसला कर लिया था.... इस नर्क भरी जिंदगी से मुक्त होने का ....अगले दिन मुंह अंधेरे बकुल का सामान एक बैग में रख कर वह भरतपुर से आगरा आने वाली बस में बैठ गई थी ....
उस दिन एक नई मानसी ने जन्म लिया था ....उन्होंने तय कर लिया था कि अब वह अपने जीवन के निर्णय स्वयं किया करेगी ....
वह क्रोध में धधकती हुई अपने घर पहुंची और अपने पापा पर बरस पड़ी ....’ पापा आपने अपने पैसे के घमंड में मेरी जिंदगी को तमाशा बना कर रख दिया है .... एक लालची को आपने 20 लाख रुपयों की गड्डी दिखाई और मेरे जीवन का सौदा कर दिया .....अब किसी दूसरे ने आपसे ज्यादा मोटी नोटों की गड्डी उसके मुंह पर मार दी और बस वह उनके सामने कुत्ते की तरह दुम हिलाने लगा ..... पापा आपने न ही पियूष के बारे में कुछ ठीक से पता लगाया और न ही ढंग से उसका घर देखा भाला .... उसकी चिकनी चुपड़ी बातों में आप फंस गये .... उसने दूसरे के घर को अपना घर बताया .... बस आपने झटपट अपनी बेटी उसे सौंप दी .....आपने अपने पैसे के बलबूते बेटी को उसके हवाले करके उसकी जिंदगी को तमाशा बना कर रख दिया .....
‘बस बहुत हुआ ... अब आगे कोई तमाशा नहीं होगा .....’
‘मैं तो पियूष के बच्चे को जेल की हवा खिलाऊंगा देखती जाओ ..... कमीना कहीं का ...’
‘पापा भइया की शादी होमे वाली है, इसलिये मैं कमला नगर वाले फ्लैट में अकेली रहा करूंगी ....’
उनकी बात सुन कर मम्मी पापा कसमसाये थे लेकिन अब उनकी हिम्मत नहीं थी कि वह बोलें ....
उनकी सहायता के लिये सेविका लक्ष्मी भी आ गई थी ....बकुल 5th में आ गया था, उसको पढ़ा लिखा कर अच्छा इंसान बनाना ही उन्होंने अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया था, परंतु अभी तो नियति को उनकी किस्मत के बहुत सारे पन्ने लिखने बाकी थे ....
उन्होंने एक बुटीक खोल लिया और उसमें मन लगाने लगीं थीं ... बुटीक चल नहीं पा रहा था कभी कोई शिकायत लेकर आ रहा तो कभी किसी का समय पर नहीं बन पाया ... इन्हीं उलझनों में वह परेशान रहती .उनका बुटीक से भी मन उचटता जा रहा था ...
मालती मम्मी जी का मायका आगरा ही था ... वह अक्सर अपनी मां से मिलने के लिये आती रहतीं थीं और उनके जीवन के हर उतार चढाव की जानकारी रखतीं थीं क्योंकि वह अपने मायके में पहले भी महीनों रहा करती थीं .... वह पहले कई बार उन्हें फोन किया करतीं लेकिन वह कभी फोन नहीं उठाया करती और न ही कभी मिलने गई, जबकि वह बार बार उनसे मिलने के लिये आग्रह करतीं रहतीं थीं ....
एक दिन वह बकुल के लिये ढेरों सामान लेकर वह उनके घर आ गईं थीं .... बकुल उनसे चिपट गया और दादी मैं आपके साथ चलूं कहने लगा था ... दादी पोते का मिलन देख उनकी आंखें भी भर आईं .... वह महसूस कर रही थीं कि उनकी वजह से बच्चे का मासूम बचपन छिन गया है .... उसके मन में अपनी दादी बाबा और बुआ लोगों के प्रति प्यार था, कहीं कोने में एक सॉफ्ट सा कॉर्नर था .... जितनी देर दादी रहतीं बकुल बहुत खुश रहता ... वह अपने साथ उसको ले जातीं ....... कभी आइस्क्रीम पार्लर तो कभी डिनर या लंच ... धीरे धीरे उन्होंने उनके साथ भी नजदीकियां बढा लीं .... यहां अकेले रहती हो .... वहां इसके बाबा तो तुम लोगों को देखने के लिये तरस रहे हैं .... आदि आदि वहां अपना बुटीक चल ही रहा है, उसी में काम बढा लेना ....
अनिश्चित सी धारा में जीवन बहे जा रहा था ...बकुल भी बड़ा हो रहा था .... वह उद्दंड और जिद्दी होता जा रहा था ... उनके लिये उसे अकेले संभालना मुश्किल होता जा रहा था ... वह उन्हें ही दोषी मानता था ... दादी का घर आपने क्यों छोड़ा ... वह कहता कि किसी दिन बाबा के पास अकेले ही चला जायेगा ...
वह स्कूल नहीं जाना चाहता था, ट्यूशन नहीं पढ़ना चाहता ...बस मोबाइल या लैपटॉप पर गेम खेलने में मशगूल रहता .... वह तरह तरह से समझाया करतीं यहां तक कि वह साइकेट्रिस्ट के पास भी ले गई थीं ... लॉकडाउन के दिनों में जोमैटो और स्विगी से ऑर्डर करके जंक फूड खा खा कर मोटा होता जा रहा था ....
मम्मी कभी किसी गुरू की ताबीज लाकर पहनातीं तो कभी उनकी भभूत या जल .... उद्दंड बकुल उन्हीं के सामने उठा कर फेंक देता ....उन्हें भी इन चीजों पर कोई विश्वास नहीं था ....
पापा का पैसे का दिखावा बंद ही नहीं होता था ... आज यह गुरू जी आ रहे हैं तो कल अखंड रामायण हो रही है ... बेटी तुम इस मंत्र का जाप करते हुये 11 माला किया करो ... बिटिया तुम्हारा मंगल भारी है इसीलिये वैवाहिक जीवन में संकट आ जाता है .... मंगल का व्रत किया करो ... बाबूजी मैं ऐसी पूजा करूंगा कि बिटिया के जीवन में खुशियाँ लौट आयेंगीं ....
वह क्रोध में धधक पड़ी थी, ‘पापा आप मेरी चिंता बिल्कुल छोड़ दें ..... यदि ये गुरू जी मेरे जीवन में खुशियों की गारंटी लेते हैं तो ये अपना जीवन क्यों नहीं सुधार लेते ...पाखंडी ...ठग कहीं के ... बस लोगों को मूर्ख बना कर पैसा ऐंठना ... यही धंधा है ...’
पापा भी उस दिन उनसे नाराज हो गये थे ....’ ये जनम तो बिगड़ ही रखा है अगला भी बिगाड़ रही है .... जो मन आये वह करो ....’ कह कर चले गये थे . वह तो हर समय उनकी किस्मत को ही कोसते रहते ... इतना पैसा तुम्हारे ऊपर बर्बाद किया लेकिन नतीजा सिफर का सिफर रहा ... पिछले जनम का बुरा कर्म है, तो वह तो भुगतना ही पड़ेगा .... कहते हुये गुस्से में चले गये थे....
मां पापा से उन्हें चिढ हो गई थी ... पापा की जल्दबाजी में ही उनका जीवन बर्बाद हुआ था .. यदि पढ़ लिख कर अपने पैरों पर खड़ी होती तो भला उनके साथ यह सब होता ....
स्वप्निल को दुनिया से विदा हुये 10 वर्ष पूरे हो चुके थे ... पापा जी ने उनकी याद में एक मंदिर बनवाया था .... जिसका उद्घाटन वह बकुल और उनके हाथों से करवाना चाहते थे इसलिये पापा जी खुद उन्हें बुलाने के लिये आये थे .... बकुल तो उनको देखते ही उनसे चिपट गया था और उनके साथ ही लखनऊ जाने के लिये मचल उठा .... और वहां चलने की जिद् करता हुआ खाना पीना छोड़ कर बैठ गया था....
वह बकुल की बढती उद्दंडता, उसका मोटापा, उसकी बद्तमीजी, के कारण परेशान हो चुकी थी. मम्मी पापा उनको लखनऊ भेजने के लिये बिल्कुल भी राजी नहीं थे परंतु जब वन्या दी गाड़ी लेकर खुद आईं तो वह उनको देख कर वह भावुक हो गई और उनके साथ लखनऊ पहुंच गई थी .....वहां सबका लाड़ प्यार पाकर उन्हें खुशी महसूस हुई थी.... एक बार उन्होंने स्त्री धन और बकुल की परवरिश और खर्च की बात उठाई तो पापा जी ने उनके सामने सारे कागजात चाहे एक्सीडेंट के क्लेम, एफ डी ..,प्रापर्टी, लॉकर में उनके गहने सुरक्षित रखे हुये थे ... जब उन्होंने महीने के खर्च की बात करी तो फिर से माहौल गर्म हो गया लेकिन इस बार मम्मी जी ने बीचबचाव करके यह कह दिया कि यदि यहां नहीं रहना चाहती तो गोमती नगर वाले फ्लैट में रह सकती हो .... तुम मेरी बेटी हो, मेरी आंखों के सामने रहोगी और बकुल भी यहां रहेगा तो हम लोगों को खुशी होगी ..... पापा जी भावुक होकर बोले,’ स्वप्निल तो हम लोगों को छोड़ गया .... अब उसकी निशानी हम लोगों से मत दूर करो .... जितना कुछ है सब बकुल के बालिग होने पर मिलने वाला था .... तब तक वह बकुल की कस्टोडियन बनी रहेगी .... ‘
मम्मी जी का बुटीक था , वह उन्हें सौंपने को तैयार थीं ....
एक तरह से सब उनके मनमाफिक बात हो रही थी .... सबसे खास बात तो यह थी कि बकुल उन लोगों के बीच में बहुत खुश था और वहीं रहने की जिद् कर रहा था ....
आप फैसला किया कि बकुल की खुशी के लिये वह यहाँ रुकने को तैयार हैं.....
... सबके चेहरे पर खुशी छा गई थी .... बकुल दादी बाबा के पास आकर बहुत ही खुश था ...
बकुल का एडमिशन सिटी मॉन्टेसरी स्कूल मे पापा ने करवा दिया था ..... घर के कामों के लिये मम्मीजी ने सुरेखा को भेज दिया था ...सब कुछ उनके अनुकूल ही हो रहा था ... बकुल के ट्यूशन के लिये पापा जी ने नीरज को भेज दिया था ....
लगभग 35- 40 का नीरज गेंहुए रंग का सुदर्शन सा युवक था ... वह सहमा सहमा सा रहता, लेकिन पहली नजर में ही उन्हें वह अपना अपना सा लगा था ... वह बकुल को पढाने के साथ साथ इतना लाड़ दुलार करते कि वह उनकी बातों को बहुत ध्यान से सुनता और उनका कहना मानता ....उसके स्वभाव में जल्दी ही परिवर्तन दिखने लगा था .... वह अपने सर का इंतजार करता और उनका दिया हुआ होमवर्क पूरा करके रखता ...
धीरे धीरे नीरज उनसे भी खुलने लगे थे ... उनकी पत्नी भी अपने बेटे को लेकर उन्हें छोड़ कर अपने आशिक के साथ चली गई थी, इसलिये बकुल में उन्हें अपना बेटा सा नजर आता था ....
वह स्वयं भी अपनी परित्यक्ता मां के इकलौते चिराग थे, उसने अपनी मां के संघर्षों को, उनके अकेलेपन को, उनकी मुसीबतों को बहुत नजदीक से देखा और महसूस किया था और अब किसी तरह से पोस्ट ग्रेजुएट होकर एक कॉलेज में लेक्चरर बन गया था, जहां 12000 देकर 40000 पर साइन करवाते थे ...अखिल अंकल उनके पापा के पुराने दोस्त थे, और उन पर उनके बहुत एहसान भी थे , उन्हें पैसे की जरूरत भी थी .... बस वह इस ट्यूशन के लिये तैयार हो गये थे ...
बकुल को देख उन्हें अपने बचपन की दुश्वारियां और अकेलापन याद आने लगता था, इसलिये उन्हें अपना खाली समय उसके साथ बिताना अच्छा लगता था ... वह छुट्टी वाले दिन बकुल को लेकर कभी अंबेडकर पार्क तो कभी जू तो कभी इमामबाड़ा लेकर जाते और दोनों साथ में मस्ती करके खुश होते ...शायद बकुल को नीरज के अंदर अपने पापा की प्रतिमूर्ति दिखने लगी थी ...बकुल के सुधरने की वजह से वह उनकी बहुत एहसानमंद थी।
कभी नीरज अपनी दुख की कहानी सुनाता तो कभी वह अपने जीवन की व्यथा सुनाती ... बस दोनो को एक दूसरे से बातें करना अच्छा लगता .... वह मन ही मन उसे प्यार करने लगी थी ...नीरज के लिये नाश्ता बनाती, उनके आने से पहले वह तैयार हो जाती और उनका इंतजार करती .... जब नीरज के चेहरे पर मुस्कुराहट आती तो उन्हें बहुत अच्छा लगता था, जब वह उनकी बनाई चाय या खाने की तारीफ करता तो वह खुश हो जातीं ... इन्हीं छोटी छोटी खुशियों के लिये तो वह कब से तरस रहीं थीं ... जब वह शर्मा कर कनखियों से उनकी ओर देखता, उनका सर्वांग मुस्कुरा उठता था ....
चाहे उनकी हो या बकुल की हर इच्छा या किसी भी काम को पूरा करने के लिये वह हर समय तैयार रहता ....
उनका बुटीक भी अच्छा चल रहा था .... बकुल को हाईस्कूल में 98 % मार्क्स मिले थे उनके तो पैर ही जमीं पर नहीं पड़ रहे थे ...
मम्मी जी पापा जी उनकी और राज की नजदीकियों से नाराज हो गये थे लेकिन अब उन्हें किसी की परवाह नहीं थी ... बकुल अपने दोस्तों और कोचिंग में बिजी हो गया था परंतु नीरज के साथ वह अपनी सारी बातें शेयर करता ... वह और नीरज शाम को घूमने के लिये जाया करते... कभी गोमती के किनारे बैठ कर बातें करते ...वह डिनर के लिये जाते आइसक्रीम पार्लर जाया करते ..
नीरज को पहली नजर में देखते ही उन्हें एहसास हुआ था कि हां यही प्यार है .... प्यार में कुछ एक्सपेक्टेशन नहीं होता ... बस बिना किसी चाहत के किसी को दिलोजान से चाहो ... शायद इसे ही प्यार में डूब जाना कहते हैं...
राज ने हर कदम पर उनका साथ दिया था यद्यपि कि दोनों के बीच के रिश्ते को कोई नाम नहीं दिया था लेकिन इस अनाम रिश्ते ने उनके जीवन में पूर्णता ला दी थी ...
घंटी की आवाज से उनकी तंद्रा टूटी थी ..... नीरज तैयार होकर आये तो वह अपने पर कंट्रोल नहीं कर सकी थी और वल्लरी की भांति उनकी बांहों में झूल गई .....

