अमीर दिल
अमीर दिल
चुनाव की ड्यूटी राम गढ़ के छोटे से सुदूर गाँव में लगी थी।सर,से बोल कर जाने का आग्रह किया था ,मैंने | पिताजी चिंतित और माँ व्यथित थी। माँ ने तो जब से सुना था ,हल्ला मचा रखा था, “तू नहीं जाएगी बस, छुट्टी ले ले।”ज़माना ख़राब है ‘,दो दिन रहना होगा “खाने पीने,सोने रहने का बेहद ख़राब इंतज़ाम होता है”- मैंने सुना है |तेरे पिताजी भी एक बार चुनाव कराने गए थे ,बहुत ज़िम्मेदारी होती है ;कुछ उंच-नीच हो जाएगी तो नौकरी जा सकती है |’माँ ,ने कोई कोर -कसर नहीं रखी थी ,’मुझे डराने में ;पर मैं बहुत उत्सुक थी रामगढ़ जाने के लिए |सरकार बनाने में मेरी भी कुछ भागीदारी होगी ये ही बड़ी बात है |जो होगा देखा जाएगा |महिला हूँ ,माँ ‘“इसका मतलब ये थोड़े ही है की मैं कमज़ोर हूँ |“अपने कर्तव्यों के बीच मैं कोई भेदभाव नहीं रखना चाहती ,”तुम चिंता मत करो -माँ |”मैं अपनी ज़िद पर अड़ गई थी |
आज बरसों बाद संदूक खोला तो सामने नीली साड़ी मुस्कुरा रही थी |जिसपर रूपहले धागों की कढाई ,तारों की तरह झिलमिल चमक रहे थे ,जो साड़ी की ख़ूबसूरती पर चार चाँद लगा रहे थे। मैं सात साल पीछे यादों में खो गई - चुनाव सम्पन्न कराने की ज़िम्मेदारी का निर्वहन करने मैं गाँव पहुँच गई थी, लेकिन छोटे से उस विद्यालय में मूलभूत सुविधाओं के अभाव, लू के थपेड़ों के कारण मेरी तबीयत आधी रात को बिगाड़ गई थी।
उस रात ,स्कूल के चौकिदार ने,कोई साधन न मिलने के कारण खाट पर डाल कर गाँव के कुछ लोगों के मदद से मुझे अस्पताल पहुँचाया था। दौड़-भाग कर अपनी पत्नी को मेरी सेवा में लगाकर रात भर मेरी देखभाल की थी। दूसरे दिन, कुछ ठीक होने पर मुझे अपने घर ले गए थे |चौकिदार का समर्पण ,आत्मीयता ने मन मोह लिया ,गाँव वालों से ही पता चला कि उनकी अपनी कोई संतान नहीं है |घर में चार बच्चियां थी वो उनकी संतान नहीं ,अनाथ थी |आस पास के गाँव के लोग ऐसी लड़कियों को इनके घर छोड़ जाते हैं|कई बच्चियों का कन्या दान कर चुके है |मेरे घर पर ख़बर करवाया पिताजी मुझे लेने आए थे |उनके आने पर सपत्नी मुझे ट्रेन में बिठाने आये थे और मेरे हाँथ में एक थैला थमाते हुए कहा था ,’बेटी हमारी तरफ़ से स्वीकार करो।”
उस समय अस्वस्थता के कारण मैं कुछ नहीं कह पाई थी ;लेकिन आज सात साल मेरी शादी को होने को थे और मेरी गोद सूनी थी ;उस नीली साड़ी ने राह दिखाया |मैने नीरज को अपनी चाहत के बारे में बताया तो नीरज ने कहा-मैं तुमसे कहना चाह रहा था ,ऐसा करने लेकिन सोचा कहीं तुम बुरा मान जाओगी |वहीं नीली साड़ी पहन कर जब मैं उस ‘एक दिन के फ़रिश्ते’ से मिलने नीरज और माँ के साथ फिर से कुछ माँगने जा रही थी ,तो मन कर रहा था कि जल्दी से उड़कर पहुँच जाऊॅं उस ढयोड़ी पर, जहाँ नि:स्वार्थ प्रेम, भोलापन और दिल के अमीर रहते है। उस रात के अजनबी को गले से लगाने को बेचैन मैं ,नीरज और माँ के साथ रामगढ़ की ट्रेन में बैठ बेहद उत्साहित थी |
|चुनाव ने मुझे रामगढ़ से हमेशा के लिए जोड़ दिया था ,जहां मैं हर साल जाना चाहूँगी ...गोद लिए मेरी बेटी के नाना-नानी से मिलने |