अकेलेपन में उत्सव
अकेलेपन में उत्सव
सरिता दस बजे तैयार होकर कार निकालने गैरेज में गई तो ध्यान आया कि कल तो विद्यालय में उसके लिए विदाई समारोह आयोजित किया गया था आज से उसे स्कूल नहीं जाना है, अंदर आकर सोचने लगी अब तो स्कूल भी नहीं जाना है। कैसे दिन कटेगा इतने बड़े घर में वह अकेले क्या करेगी ?सरिता को लग रहा था यही सच्चाई है एक समय के बाद इंसान अकेला रह जाता है आज से 30 साल पहले यह घर गुलजार हुआ करता था उसके पति राकेश ,सास -ससुर और तीन बच्चे बीच-बीच में ननद, देवर ,भाई-बहन और रिश्तेदारों का आना जाना लगा रहता था।
जीवन के सफर में सब अपने एक-एक करके साथ छोडकर चले गए, सबसे पहले सास,फिर राकेश उसके बाद ससुर इन विकट परिस्थितियों में भी सरिता ने धैर्य से अपना कर्तव्य निभाया और बच्चों को अच्छी शिक्षा दी। बड़ा लड़का मल्टीनैशनल कंपनी में मैनेजर, दूसरा लड़का बीएसएनएल में अभियंता और बेटी छुटकी साइंटिस्ट थी तीनों की शादी अच्छे परिवारों में हुई।अब घर मे अकेली रह गई तो सरिता! तीनों बच्चे माँ को नौकरी छोड़कर अपने साथ चलने को कहते पर सरिता का इस घर से ऐसा रिश्ता था कि वह महीने भर से ज्यादा के लिए इसे छोड़ नहीं पाती थी।रिटायर होने पर बड़े बेटे ने प्यार से कहा मां अब तो हमारे साथ चलिए बीच-बीच में हफ्ते दो हफ्ते के लिए यहां आ जाया करिएगा।
सरिता ने एक बार फिर ईपीएफ ,पेंशन,ग्रेजुएटी आदि का बहाना बना दिया । दरवाजे की घंटी से उसके सोचने का क्रम टूट गया। इस समय कौन आया होगा सोचते हुए दरवाजा खोली तो सामने माली के साथ उसका 14 -15 साल का बेटा भी था।सरिता ने माली से पूछा यह स्कूल क्यों नहीं गया । माली ने बताया स्कूल 12:00 बजे से है 1 घंटे काम में मेरी मदद करेगा फिर स्कूल चला जाएगा । सरिता को अकेलेपन का इलाज मिल गया वह माली के बेटे से बोली तुम कभी भी पढ़ाई में कुछ अड़चन हो तो मेरे से पूछ लेना रोज सवेरे मैं तुम्हें पढ़ा दिया करूंगी। उसके बाद तो कामवाली मेहरी ,दूधवाले ,प्रेसवाले सभी के बच्चों को सरिता निशुल्क पढ़ाने लगी साथ ही उन्हें उनकी रूचि के अनुसार काम भी करवाती। सवेरे आठ बजे से इन बच्चों से सरिता का घर गुलजार हो जाता बच्चे पढ़ाई के साथ चाय- नाश्ता, खाना बनाने में सरिता की मदद करते ।सरिता अपने बच्चों की तरह मन लगाकर इन बच्चों को पढ़ाती और जरूरत पड़ने पर इनकी फीस भी भर देती पढ़ाई के अलावा वह स्कूल के अन्य गतिविधियों में भाग लेने के लिए बच्चों को प्रोत्साहित करती और उसकी तैयारी भी कराती उसकी कोशिश रहती पढ़ाई के अलावा जो भी प्रतिभा बच्चों में है वह सामने आए। सरिता के यहां पढ़ने वाले बच्चे स्कूल में वाद-विवाद ,भाषण, रंगोली पेंटिंग एनएसएस एनसीसी सभी गतिविधियों में भाग लेते और कोई ना कोई पुरस्कार उन्हें जरूर मिलता धीरे-धीरे 10 बच्चों से शुरू हुआ सरिता का यह मैत्री पाठशाला 100 बच्चों का परिवार बन गया। आज छुटकी का फोन आया मां आप अकेले बोर हो जाती होंगी थोड़े दिन के लिए मेरे पास आ जाइए सरिता ने मुस्कुराते हुए कहा अकेलापन कहां यह घर तो 100 लोगों से गुलजार है। तुम्हें छुट्टी मिले तो जल्दी आओ परिवार के सभी सदस्यों से तुम्हें मिलने आऊंगी सरिता ने मैत्री पाठशाला के माध्यम से अपने अकेलेपन को उत्सव में बदल लिया था और जीवन के दूसरे पड़ाव को बेहतरीन तरीके से जी रही थी।