Bharti Suryavanshi

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अजिंक्य - Chapter 2 - एक अजनबी

अजिंक्य - Chapter 2 - एक अजनबी

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वर्तमान समय

एक घना जंगल, चाँद की रोशनी भी जहाँ झलकियाँ दे रही थी। ऐसे घने विकराल जंगल में एक लड़की तेज़ी से नंगे पैर दौड़ रही थी उसके बाल हवा में लहरा रहे थे- काले रंग का गाउन, जिसमें से दौड़ते वक़्त उसकी छनकती हुई पायल नज़र आ रही थी। चाँद की रोशनी में ख़ूबसूरत सा वो चेहरा जिसे देख कोई भी अपने होश खो दे, गुलाबी होंठ दूध में केसर हो ऐसा रंग और काली कजरारी आँखे, देखने में बिलकुल अप्सरा। उसके के चेहरे पर इस वक़्त घबराहट थी, डर के मारे वो तेज़ी से भाग रही थी उसके पीछे एक खूंखार जानवर जो पूरी तरह से werewoolf (इंसानी भेड़िया) कहा जा सकता था उसके पीछे भाग रहा था, उस भेड़िये के मुँह से लार टपक रही थी और उसकी रफ़्तार का तो कोई जवाब नहीं था। ल-भागते पीछे मुड़कर देखा, वो और भी करीब आने लगा था और तब ही अचानक उसके पैरों के नीचे से ज़मीन गायब हो गयी और वो गिर पड़ी, एक आवाज़ आफलक अरे ओ फलक उठ न यार देर हो रही है सुबह के 6:00 बज गए” फलक का सपना टूट गया। उसके चेहरे पर डर देख उसकी दोस्त निशा समझ गई।

निशा ने पूछा “क्या हुआ? तूने फिर वही सपना देखा क्या?" फलक इसी तरह से कई बार यह सपना देखती और डर जाती मानो जैसे वो सपना एक हक़ीकत ही है। निशा ने उसे सपने से बाहर लाने के लिए याद दिलाया रोज़ सुबह की तरह आज भी तुम्हें उठने में देर हो गई” उसका डरना कोई नयी बात नहीं थी कुछ चीजों की समय के साथ ऐसी आदत हो जाती है, जिसे चाहकर भी नहीं बदल सकते इसलिए सपने का डर भुलाकर फलक वास्तविक दुनिया में आ गयी और एक हँसी के साथ तैयार होने चली गई। फलक और निशा दोनों ही St. Mary's College में आर्कियोलॉजी पढ़ रही थी, यह उनका आख़री साल था।फलक के मामा पंडित विश्वनाथ को निशा 3 साल की उम्र में मंदिर में मिली थी उस वक़्त निशा को न तो अपना घर सही से याद था न माता-पिता का नाम।

उसकी दशा देख कर यही लगता था के उसे जानबूझकर छोड़ दिया गया ह। खैर, अपनों ने त्याग कर दिया पर पंडितजी ने अपनाया और अपने घर ले आये। दोनों बचपन से एक दूसरे को जानती थी साथ ही पली-बड़ी थी । फलक का हाल भी कुछ निशा जैसा ही था लगभग 5 साल की थी तब पिता की एक हादसे में मौत हो गई जिसके बाद उसकी माँ ने भी अपना दिमागी संतुलन खो दिया और कुछ महीनों में वह भी फलक को इस दुनिया में अकेला छोड़ गई। इस हादसे के बाद पंडितजी अपनी एकलौती भांजी को अपने पास कलकत्ता ले आए। पंडित विश्वनाथ कलकत्ता के नामी पंडितों में से एक थे। दोनों बच्चियों को उन्होंने अकेले ही बड़े प्यार से पाला था। उनके ज्योतिष ज्ञान के कारण दूरदूर से लोग उन्हें मिलने आते थे, उनका शायद ही ऐसा कोई अनुमान होगा जो सच न हुआ हो।

पंडितजी स्वाभाव से थोड़े कड़क मिज़ाज़ के थे इसलिए फलक और निशा उन्हें सारी बातें नहीं बताया करती थी पर उन दोनों के बीच कभी कोई राज़ नहीं था। निशा स्वाभाव से थोड़ी चंचल पर सब कुछ सोच समझकर करती और फलक जैसे कोई बादल कब बरस जाए कोई नहीं जानता, एक पल में खुश हो जाती और दूसरे पर में नाराज़, पर दिल की सच्ची थी। दोनों ज़िंदगी के हर एक मोड़ पर एक दूसरे को संभाल लेती थी। मास्टर्स की पढ़ाई के लिए पहली बार दोनों को पंडितजी ने अपने से दूर शिमला भेजा था लेकिन ख्याल रखना वो बखूबी जानते थे। दूर तो भेजा पर अपने ही दोस्त फादर लुइस के कॉलेज में जहाँ दोनों को कोई तकलीफ़ न हो।

कॉलेज और चर्च एक ही कै थे पर हॉस्टल थोड़ा दूर था। निशा और फलक चर्च जाने को हॉस्टल से निकली, रास्ते में निशा कैंडल्स लेने रुकी। फलक वहींरुकी थी तब ही उसका ध्यान रोड क्रॉस करने वाले एक छोटे से कुत्ते के बच्चे पर पड़ा जो ठीक से रोड क्रॉस नहीं कर पा रहा था। फलक उसकी मदद करने गई उसने उस प्यारे से puppy को उठाया और रोड क्रॉस कर उसे दूसरी साइड में छोड़ने ले गयी पर वह इतना प्यारा था कि उसका ध्यान उस पर ही लगा रहा। वह उसे हाथ में लेकर सहलाती रही और उसे पता ही नहीं चला कि वो सड़क पर खड़ी है तभी उसका हाथ पकड़कर तेजी से किसी ने अपनी तरफ खींचा और चिल्लाया “Are you mad? This is not a garden. ध्यान कहाँ है आपका?” अचानक जो हुआ उससे फलक को कुछ समझ न आया वो उसे देख कर देखती ही रही, एक अजीब सी कशिश का एहसास उसे को हुआ। उसकी गहरी काली आँखे, रंग गोरा सा चेहरे पर गुस्सा, भूरे रंग की जैकेट और उस पर स्कार्फ़ उसने पहन रखा था। वो क्या कह रहा था, क्या नहीं शायद फलक ने ध्यान ही नहीं दिया।

वह उसे पागल कहकर निकल गया तभी निशा आयी और उसने पूछा “कौन था?” फलक ने जवाब दिया “पता नहीं कुछ कह रहा था पर क्या मालूम नहीं।” निशा ने कहा “खैर जाने दे तू चल।"प्रार्थना बस शुरू होने ही वाली थी... सभी प्रार्थना के लिए तैयार हुए तभी फलक का ध्यान एक व्यक्ति पर गया, वो वही था जिससे वह अभी चर्च के  पास मिली थी। फलक निशा को उसके बारे में बताने जा ही रही थी कि फिर से वो ओझल हो गया। प्रार्थना पूरी होने के बाद फ़ादर ने फलक को बुलाकर कहा “My Dear, तुमसे एक जरूरी काम है मुझसे आकर के ऑफिस में मिलो।”

फलक जब कॉलेज पहुंची प्रिंसिपल फादर लुइस के ऑफिस में पहले से ही कोई मौजूद था इसीलिए फलक दरवाज़े के पास ही रुक गई फ़ादर ने उसे देखा और बुलाया “come my child. I need your help. Hostel is already full. जैसा  कि...”

फलक ने बीच में ही फादर को रोका और कहा “फादर, Not again. मुझे घर rent पर नहीं देना जो भी है उसे आप कहीं और भेज दीजिए।”

फलक जा ही रही थी कि उसे एक आवाज़ ने रोका “सुनिए... मेरा नाम अजिंक्य है” पीछे मुड़ जब उसने देखा तो यह वही था, जिससे सुबह मिली थी उसने आगे कहा “देखिए please कुछ ही महीनों की बात है... मैं इस शहर में नया हूँ, किसी को जानता भी नहीं। आपका घर कॉलेज से पास है please help करदीजिए।”

फलक को उसने सुबह बचाया था इसलिए सोच रही थी कि मदद करूं या नहीं कोई और होता तो सीधे ना कह देती। पर किस्मत एहसान चुकाने का एक मौका दे रही थी।

फादर ने भी फलक से request की “पुरानी बातें भुला दो मेरा बच्चा…! और इसे घर रहने को दे दो। दोनों का इससे भला ही होगा। (अजिंक्य की तरफ बड़े प्यार से देखते हुए) देश में नया है और देखो कितना genuine है मान जाओ।”दोनों के ऐसे चहरे देखकर आख़रीकार फलक मान गयी उसने कहा “उफ्फ़… ok father, मैं इसे घर Rent पर दे दूंगी पर सिर्फ़ तब तक के लिए जब तक study ख़त्म नहीं हो जाती सिर्फ़ 8 महीने के लिए। और मेरे rules तुम्हे मानने होंगे अगर वो follow नहीं हुए तो उसी वक्त घर से निकाल दूंगी, all right!” फलक ने चेतावनी दे दी थी जिसे अजिंक्य ने ‘हाँ’ कह कर मान लिया।

Father- “good girl, जाओ इसे घर दिखा दो।”

अजिंक्य - “Thank You Father.”

 “अभी से आ जाओगे, फलक ने मुंह बनाते हुए कहा “ok, चलो।”


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