अजिंक्य - Chapter - 1.1
अजिंक्य - Chapter - 1.1
मणि का रहस्य
शरीर मरता है पर आत्मा अमर होती है जैसे कि विज्ञान कहता है ऊर्जा केवल एक रूप से दसरा रूप बदलती है कभी खत्म नहीं होती। आत्मा भी ऊर्जा का ही एक स्वरुप है। इस पूरे ब्रह्माण्ड में दो तरह की ऊर्जा यानि शक्ति का सबसे ज़्यादा प्रभाव पड़ता है - एक सकारात्मक और दसूरी नकारात्मक। सकारात्मकता का स्वरुप है देव और नकारत्मकता का दैत्य। इन दोनों से ही विश्व का संतलु न और अस्तित्व है किन्तु दानवों की प्रवतिृ ही रही है हमेशा साथ रहने की जगह केवल अकेले राज करना, हर बात का विरोध करना, वह हमेशा अपने स्वार्थ को पूरा करने के लिए गलत रास्ततों का चुनाव करते हैं। दैत्यों के राजा ने भी देव के आधिपत्य को कम करने के लिए दैत्य संगठन के एक ज्ञानी कारीगर से ऐसी मणि बनवायी जो उसे सर्वशक्तिमान बना दे, जिसकी सबसे पहली वफ़ादारी दैत्यराज की ओर रहे। इस मणि की सुंदरता इतनी भव्य थी कि इसे देखने वाला इसे पाए बिना रह नहीं सकता था। उस कारीगर ने भी जब मणि को बना लिया तो वह उसे आकर्षित करने लगी, गद्दारी का भाव उसके मन में आ चूका था पर वह जानता था के राजा की नज़रों से कुछ छुपा नहीं। इस मणि की पहली वफ़ादारी इसके दैत्यराज की तरफ है इसलिए वह मणि को लेकर ऐसी जगह चला गया जहाँ से उसे ढूंढने में सालों बीत गए।
एक गुफा के अंदर छोटे से बहते झरने के पास यह थी, जिसके पास ही उस कारीगर का कंकाल था जो ज़मीन पर गिरा हुआ मणि की ओर हाथ बढ़ा रहा था
- शायद वो इसे अपनी आख़री सांस तक पा नहीं सका था। यह दिखने में तो एक हल्के नीले रंग का पत्थर था लेकीन जब कोई इसे पाने की इच्छा से छूता तो इसमें
जान आ जाती, जब वह इसके पास गया तब उसके छू ते ही मणि धीरे-धीरे घमू ने लगी और उसमें से नीले रंग की रोशनी निकलने लगी, जिनमें छोटे छोटे जुगनू जैसा
कुछ चमक रहा था और उसी रोशनी के अंदर एक सुन्दर स्त्री नज़र आयी, जिसकी नीली आँखें थी शरीर पर वस्त्र के स्थान पर हीरे थे सुनहरे रंग के बाल और इतनी प्यारी मुस्कान के एक पल कोई भी व्यक्ति सब भूल जाए! उसने एजेक्स से अपनी अनमोल ताकत देने के बदले में वफ़ादारी मांगी जिसे साबित करना था उसकी बलि
देकर जिसे आप सबसे ज्यादा चाहते हैं। जब उसकी बलि दे दी जाए जिसे आप चाहते हो तो कोई बचता ही नहीं मणि और उसके मालि क के बीच में। एजेक्स मणि को हासिल करना चाहता था पर एमा की बली देना उसे मंज़ूर नहीं था। उसका इंकार सुन मणि उसकी ओर हवा में लहराती हुई आगे बढ़ी वो एजेक्स को वश में करके उसे
मारना चहती थी पर एजेक्स मणि को खत्म करने का राज़ जानता था इसलिये जब उसने मणि की गर्दन दबोची तो मणि ज़ोर से चिखी। गुफा की दीवारें कंपन से हिलने
लगी और एक विस्फोट के साथ उस मणि ने खुद को नष्ट कर 5 टुकड़ों में वि भाजित कर लिया। उसके अंदर राजा की आधी शक्तियाँ थी वह भी नष्ट हो गयी पर खत्म नहीं। अब वह के वल एक मामूली पत्थर था जो अमूल्य नहीं था समय बीतता गया और मणि का स्व रूप भी समय के साथ-साथ बदलता गया कि सी देश के राजा ने
उसे अपने मुकुट में जड़वाया, कि सी ने उसे अंगूठी का ताज बनाया, कहीं वह भेंट में दी गयी, तो कहीं सि ंहासन में जड़वाई गयी। यह मणि जिन-जिन लोगों को मिली उन
सब के साथ कुछ न कुछ बुरा होता रहा और मणि उन मालिकों को मारकर अपनी शक्तियाँ बढ़ाने लगी। दैत्यराज को एहसास हुआ कि मणि अपने वास्तव क स्वरूप में आ रही है, पर वह कमजोर थे इसलिए मणि की खोज में राजा के सैनिक उसे हर जगह ढूंढने लगे जिसमें से मणि के तीन हिस्से उनके हाथ लगे अब सिर्फ 2 की
तलाश थी पर राजा इस बात से अंजान थे के इन सब से कहीं दूर और एक कहानी जन्म ले चुकी है जो राजा के रास्ते की रुकावट बनने वाली थी।
(आगे पढ़िए अध्याय -२ - एक अजनबी। जिसमे आप मिलेंगे अजिंक्य और फलक से इनकी अनोखी कहानी की एक नयी दास्तान से। )
