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Bharti Suryavanshi

Others

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Bharti Suryavanshi

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केज्ड माइंड

केज्ड माइंड

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घोर अँधेरा छाया हुआ है और किसी के रोने की सिसकिया सुनाई पड़ रही है। पूजा अपने बिस्तर से उठी और उस आवाज़ की और चल पड़ी. 

"इतनी रात गए कौन रो रहा हे भला?"

पूजा को अपना घर अपना नहीं लग रहा था जाने कैसी जगह थी - गन्दी सी दीवाले थी खाली सा कमरा और अंधेरो के बिच टिमटिमाती कुछ रोशनी। आगे बढ़ते हुए उसने रास्ते में एक लड़की को बैठी देखा जो काले रंग के कपडे पहने मुँह छिपाये रो रही थी। 

"कौन हो तुम ? और क्यों रो रही हो ?" पूजा ने पूछा 

"परेशां हो गयी हु मैं। थक चुकी हूँ कोशिशे करते करते। "

"किस बात से परेशान हो ?"

"रिश्तो में धोका खाने से। दोस्ती का रिश्ता किसे नहीं पसंद लेकिन फिर दोस्ती की आड़ में प्यार जैसे पाक रिश्ते को लाते हे और धोका देते है। मैं ही पागल हूँ जो हर बार अपना दिल तोड़ने के लिए दुसरो के हाथ में दे देती हूँ। थोड़े से प्यार, लगाव और हमदर्दी की भूखी हु न क्या करू। 


पूजा पल भर को सोचने लगी फिर कहा " हाँ मैं समझ सकती हूँ। पर क्या होता हे मालुम तुम खुद एक नेकदिल इंसान हो इसलिए धोकेबाज लोग भी तुम्हे अच्छे नज़र आते है। ऐसा नहीं है कि तुम उनकी चालाकी समझ नहीं पाती सच ये है की तुम अपने रिश्ते पर उन के किये छल से भी ज़्यादा विशवास करती हो। और किसी पर भरोसा करना गलत नहीं, गलत वो है जो धोका देते हैं। तुम्हे तो भगवान् का शुक्र मनाना चाहिए कि गलत लोगो को वो तुम्हारी ज़िन्दगी में रहने नहीं देते। देखो, जिसने तुम्हे इस शरीर में भेजा है उस परमात्मा को तुमसे कितना लगाव है..!

ये सुन वो रोती हुयी लड़की थोड़ा मुस्कुरा दी। फिर पूजा का ध्यान एक दूसरी आवाज पर गया जो ज़ोर-ज़ोर से चीख-चीख कर किसी से बात कर रही थी। वो उस आवाज का पीछा करते आगे बढ़ी.... उसने देखा एक लड़की जिसके गुलाबी बाल है, चेहरा सफ़ेद है और होठो में लाल लिपस्टिक (बड़ी ही भड़काऊ) वो ज़ोर ज़ोर से बात कर रही थी पर आसपास कोई दूसरा न था। 

पूजा ने उसे रोका और कहा "इतनी रात को चिल्ला क्यों रही हो... सब जाग जायेंगे मेरे घर में और वैसे तुम हो कौन ?"

 

"मैं , मैं जो भी हूँ लेकिन मैं अपनी बाते अपने जज़्बात लोगो को कह ही नहीं पाती। चाहे वो मेरी माँ हो , पिताजी भाई - बहिन या दोस्त। मुझे लगता है अपने अंदर के इन जज़्बातो को मैंने उनके सामने खोल के रख दिया तो पता नहीं क्या सोचेंगे। सारा दिन में यही दिखाती हूँ की मैं स्ट्रांग हु आगे बढ़ चुकी हूँ और चाहे ज़िन्दगी में कुछ भी हो मैं खुश हु...! लेकिन जब रात में सन्नाटा छाता है तो मेरे अंदर की आवाजे चुप नहीं रह पाती इसलिए चिल्ला रही हूँ। तुम्हे कोई परेशानी हे?

"ह.. हाँ है। तभी तो तुम्हे रोक रही हूँ ये सब इतना बचकाना बर्ताव शोभा नहीं देता। "

"तो क्या अंदर ही अंदर मरते रहना शोभा देता है। हम हर रोज़ यही सोचते हैं कि कोई दूसरा क्या सोचेगा पर सच ये है कि हर दूसरा इंसान भी यही सोचता है। मैंने या किसी और ने अगर खुल कर एक दूसरे से बात करने की कोशिश की होती तो मैं आज यंहा अकेले पागलो की तरह बड़बड़ा ना रही होती। यहाँ आसपास इतनी गंध ना होती। खिलते फूल और प्यारा घर होता।"

"तो यहाँ प्यारा घर और खुशबु क्यों नहीं है ?" पूजा ने उदास हो कहा 

"क्युकी ये तुम हो... तुम ही ने ये सब बनाया है। 

और ये कह वो लड़की गायब हो गयी। 

 पूजा खड़ी सोच रही थी और आसपास देख रही थी - सफ़ेद दिवलो पर काले दाग, टूटी सी सड़क, कहीं पड़ी ज़ंजीरें और उनमे बंधे कुछ अजीब जानवर! वो चलते हुआ थोड़ा आगे गयी बहार उसने देखा सड़क पर बोहत तेज़ी से वाहन आ जा रहे थे, किनारो पर बड़ी ऊँची इमारते थी, इतने शोर में भी छाया मन में एक सन्नाटा था। 

अचानक किसी ने उसके कंधे पर हाथ रखा और कहा - कहाँ गुम हो ?

पूजा - इस शहर को देख रही हूँ ऐसा लगता सब जीने को दौड़े जा रहे हैं पर.. हर पल के साथ तो ज़िन्दगी ख़त्म हो रही होती है। तो फिर वो ऐसे क्यों जीते हैं जैसे मरेंगे नहीं और मर ऐसे जाते हैं जैसे जिए ही नहीं। मानती हूँ ज़िम्मेदारिया, ख्वाहिशे, रिश्ते, पैसा सब ज़रूरी हैं लेकिन इन सब के बिच कहीं हम उन छोटी-छोटी खुशियों को जीना तो नहीं भूल जाते। 

ज़िन्दगी बड़ी ख्वाहिशो से नहीं अपने मन के खुश होने से सफल होती है। चाहे कुछ भी हो हमें किसी रिश्ते को खोने का डर हो, किसी मकसद या सपने को या फिर ये सोच कर रुक जाने का की लोग मुझे कैसे देखेंगे, क्या सोचेंगे। इतने डर लेकर तो पैदा नहीं होते न हम फिर क्यों उम्मीदों को बांध कर उनकी आशाओं के टूटने पर इतना दुखी हो जाते हैं कि जीने की आस ही नहीं बचती ? क्यों ? 

पूजा के सवालों को सुन उस लड़की ने मुस्कुरा कर कहा - "क्युकी हम ये नहीं समझ पाते कि दुखी होना जरुरी है, दुखी रहना नहीं। हम आज जो भी हैं जैसे भी हैं अपने वजूद के साथ हैं और यही हैं जो है आज में है वार्ना तो कोई ये भी नहीं जानता कि आज सोकर कल उठेगा या नहीं। इसलिए याद रखो इन सारी ख्वाहिशों, सपनो, दोस्तों, उम्मीदों के साथ यही जीवन मिला है। इसे छोड़ कर आनेवाला कल अच्छा होगा या बुरा ये तो नहीं जानते तो बेहतर है कि इसे ही बेहतर बनाये। 

उसने जाते जाते अपना हाथ पूजा के हाथ में दे कहा - डर होगा दर्द भी होगा लेकिन खुशिया भी होंगी... जो भी होगा सिर्फ तेरा होगा। तुम्हारे फैसले तुम्हारे कल का निर्माण करते हैं लेकिन कल के लिए आज को नहीं भुला जाता - एक बच्चे की मुस्कराहट में मिलने वाला सुकून, किसी को मदद कर होनेवाली ख़ुशी, ये सब छोटी बाते हैं पर इनके एहसास आत्मा को सुकून देते हैं। मैं आशा करती हु जब भी तुम आओगी सुकून के साथ आओगी। यही तो मकसद हैं। 

इतना कह सब गायब हो गया और पूजा की आँख खुली। आज आँखे बंद कर उसने अपने मन से वो संवाद किये जो खुद से भी वो ना कह पायी पर आज मन को थोड़ा समझ वो खुश थी। 



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