अजीब दास्ताँ
अजीब दास्ताँ
आखिर क्या बात है.. मन क्यों इतना परेशान सा है.. कहीं हमने कुछ गलत तो नहीं किया.. जिसके कारण उनका फोन नहीं आया.. कितने अनसुलझे सवालों ने घेर लिया आज इस शांत मन को..
खुद ही सवाल कर रही हूं.. खुद ही ज़वाब तलाश करने का प्रयत्न कर रही हूं..
पहले कभी कभी.. फिर एक दो दिन के अंतराल में.. फिर रोज कुछ देर... ये दिनचर्या कब आदत में तब्दील हो गई पता ही नहीं चला...
एक दिन की बात है... मेरे मोबाइल की रिंग बज उठी करीब दस बजे रात. आँखे बंद करके किन्ही ख्यालों में गुम थी.. और जो भी सोच रही थी उस से बाहर निकलने का प्रयत्न भी कर रही थी.. रिंग से चौंक गई... जैसे ही फोन रिसीव किया दूसरी तरफ से किसी ने बड़े शायराना अंदाज से कोई शेर पढ़ा...
"शायरी समझते हैं हमारे दोस्त जिसे
उन्हीं से तो उनकी शिकायतें करते हैं हम...
अंदाज बड़ा प्यारा था शेर पढ़ने का... दिल को भा गया.. हमारी चुप्पी शायद उन्हें खल गई..
क्या बात है.. यार ऐसा क्या कह दिया जो खामोश हो गया.. अबे कुछ तो बोल... इस से पहले की उनकी भाषा से कुछ ज्यादा प्यार झलकता.. हम ने हैलो बोल दिया..
थोड़ी हकलाहट से भरी आवाज आई दूसरी तरफ से अअअआप????
हैलो ये विशु का नंबर है ना..
नहीं..
तब तक जनाब खुद को सम्भाल चुके थे..
माफ़ कीजिएगा मैंने गलती से शायद गलत नंबर लगा दिया और न जाने क्या क्या कह गया प्लीज़..
होता है जाने दीजिए.. वैसे आपका शायरी पढ़ने का अंदाज शानदार लगा...
अरे वो तो मेरी आदत है... शौक है शायरी तो दोस्तों के साथ मस्ती में बोलता रहता हूं..
अच्छा तो आप शायर हैं..
हाँ कह सकते हैं.. शायर कवि लेखक जो चाहें..
वाह क्या बात है आज मैं एक शायर लेखक कवि से मुखातिब हूँ..
रांग नंबर का सही नाम बताएँ..
रांग नबंर..
जोरदार ठहाका लगाते हुए उन्होंने कहा...
पहली बार सुना है शानदार नाम है..
ओके माफ़ कीजिएगा आपको मेरे कारण परेशानी हुई इतनी रात गए..
अरे कोई बात नहीं...मुझे तो एक शायरी सुनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ..
जोर से हँसते हुए उसने ज़वाब दिया... आभार आपका.. वर्ना मेरे दोस्त तो बस मेरी टांग खींचते है.. चलो अच्छी बात है गलत नंबर पर सही कद्रदान मिला..
मैं भी जोर से हँस दी..
आप क्या करती हैं...
बस आप जैसा ही शौक है.. लिखने पढ़ने का..
सच्ची.. शायद उछल पड़े थे जनाब..
जी बस शौकिया.. आता जाता कुछ नहीं..
अरे आपके तो बोलने के अंदाज में ही शायरी है..
वो गाना सुना होगा आपने..
कौन सा..
गाना मेरे बस की बात नहीं..
ज़ी...
बस ऐसा ही कुछ अंदाज था आपका..
अच्छा शुभ रात्रि.. शायद उन्हें मुझसे ये अपेक्षा नहीं थी..
बड़ा अनमना सा ज़वाब दिया उन्होंने ओके..
और मैंने मोबाइल ऑफ कर दिया..
एक अजनबी के बारे में सोचते सोचते नींद ने कब आगोश में ले लिया पता ही नहीं चला..
लॉक डाउन ने काफी आरामतलब बना दिया था.. अब चूँकि अनलाॅक हो चुका था.. सो अब फिर एक व्यस्त जिंदगी की भागदौड़ शुरू हो गई.. जल्दी जल्दी काम खत्म करके ऑफिस के लिए निकली...
कुछ दिन इतने व्यस्त बीते.. ऐसा लगा चार महीने का पेंडिंग काम चार दिन में खत्म करना है.. खैर काम तो करना ही है..
शनिवार को देर तक जाग लेती हूं क्योंकि दूसरे दिन जल्दी उठने का तनाव नहीं होता.. मोबाइल उठाया.. अचानक ध्यान आया कि शायर साहब का कोई कॉल तो नहीं आया और मैं नया नंबर देखकर शायद रिसीव नहीं कर पाई..
पर पता भी कैसे चलता मैंने सेव नहीं किया था.. उनकी याद आई तो बरबस होंठो में मुस्कान आ गई.. खुद को ही एक चपत लगाई.. पागल..
बहुत से मैसेज पड़े थे.. जो जरूरी लगे पढ़ा.. एक दो को ज़वाब भी दिया.. मैसज करना और ज़वाब देना मुझे बड़ा बोर काम लगता है.. उतनी देर में तो सामने वाले से कितनी सारी बातेँ कर सकते हैं.. पता नहीं लोग कैसे सर झुकाए मोबाइल मे टूक टूक करते रहते हैं..
मेरा बस चले तो दुनिया को अपने जैसी बोर बना दूँ.. मेरे फ्रेंड्स कहते भी हैं.. अच्छे अच्छे बोर इंसान देखे पर तुम सबकी सरदार बन सकती हो.. अचानक मोबाइल ने आवाज लगाई.. नेट ऑन था शायद इसलिए नंबर के साथ साथ नाम भी शो हुआ.. शिव कुमार..
मन खुश हुआ.. अजी नंबर देखकर नहीं.. नाम देखकर.. माफ़ कीजिएगा उसकी वजह नहीं बताएंगे
वैसे नाम और नंबर दोनों अनजान थे.. फिर भी बेहद नम्रता के साथ मैंने हैलो कहा.....
हैलो..
जी बोलिए..
रांग नंबर से बात हो सकती है...
मैं खिलखिला कर हँस दी.... उनकी आवाज और लहजा इतना शानदार लगा कि उनसे बातेँ करने के लालच
से खुद को रोक नहीं सकी..
जी हो सकती है..
कैसी है आप??... अच्छी हूँ आप कैसे हैं.
अजी हम ठहरे शायर.. मस्तमौला रहते हैं... हाँ कुछ दिन बिजी रहे.. आज फ्री हुए तो सोचा कि रांग नंबर लगा कर देखें कि सही लगता है कि नहीं.. पर देखिए सही नबंर लगा ही दिया..
आप भले ही रांग नंबर हों पर हम अपना नाम बता ही देते हैं....
वैसे मैंने नाम देख लिया था फिर भी चुप रही...
नाचीज़ को शिव कुमार कहते हैं...
कमाल करते हैं आप.... इतने शानदार नाम के आगे नाचीज़ लगा कर उसकी गरिमा को कम क्यों कर रहे हैं..
अरे मोहतरमा नाम तो महान है.. हम इंसान नाचीज़ हैं..
बडे हाजिर ज़वाब हैं आप.. सोचा बोलू.. पर चुप रही..
और आगे सुनिए,,,
नहीं नहीं बस काफी है,,, क्यों हम अपना पूरा परिचय दे रहे हैं..
जी नहीं.. इतना काफी है,,, ओह समझ गए
क्या समझ गए... यहि की हम भी आपसे कुछ न पूछें,, पर यकीन मानिये हम कभी नहीं पूछते कुछ जब तक आप बताती नहीं..
शिव की ये बात मुझे बेहद अच्छी लगी.. मेरी आदत है मैं किसी की पर्सनल लाइफ में झाँकना बिल्कुल पसन्द नहीं करती जब तक कि बेहद जरूरी ना हो.. और अपने लिए भी यही उम्मीद करती हूं.. बातों बातों में यदि जरूरी लगा तो कुछ बताने में हर्ज नहीं.. पर पहली ही बार में किसी के सामने परिचय के नाम पर सब कुछ बताना मुझे कुछ खास पसन्द नहीं रहा...
पर सिर्फ एक बात तो बता सकती हैं आप???
वो क्या,,, बस अपना नाम बता दीजिए..
मीना...
धन्यवाद अब रांग नंबर की जगह मीना लिख देता हूं..
मुझे हँसी आ गई..
आपने कहा था आप भी लिखती हैं..
जी बस ऐसे ही साधारण.. महारथ हासिल नहीं है.
अरे मीना जी लिखना कभी साधारण काम नहीं होता बहुत बड़ी उपलब्धि होती है ये तो..
कहां लिखती हैं.. मतलब मैग्ज़ीन या न्यूज पेपर या अन्य कहीं..
अरे नहीं शिव जी,,
एक मिनिट मीना जी.. मुझे ऐसा लगा जैसे कोई भक्त भगवान से बात कर रहा है.. प्लीज़ शिव बोलिए..
हँसते हुए मैंने कहा ओके शिव,, अभी तक तो मेरी रचना मेरी डायरी की शोभा बढ़ा रही है..
क्या मैं आपको पढ़ सकता हूं.. कुछ भेजिए न आपका लिखा हुआ...
ओके..
ख़्वाहिशें अपनी जगह, मजबूरीयां अपनी जगह
आरज़ू किसको नहीं, मुट्ठी में भर ले चाँद को..
क्या बात है मीना जी.. ज़वाब नहीं आपका..
मैं कुछ बोलू..
जी जरूर
अभी तो खैर मैं चुप हूं.. मगर वादा रहा मेरा..
वबा से बच गए . तो फिर नई दुनिया बसाएंगे..
शिव से बात करके मन बड़ा शांत लगा.. अब ये नाम का असर था या उनकी शायरी का या उनके लहजे का ये तय करना मुश्किल था..
अब मुझे शिव के मैसेज का इंतजार रहने लगा..
जो काम मुझे पसन्द नहीं था वो मैं कर रही थी.. और क्यों??? ये मुझे भी नहीं पता..
शेरों शायरी का दौर शुरू हुआ पर मैं हार जाती.. ज़वाब ही नहीं दे पाती.. अच्छी खासी दोस्ती पनप रही थी हमारे बीच.
जैसा कि मैंने बताया समय के साथ हमारा परिचय बढ़ा.. पर वो भी बेहद कम..
उनका भरा पूरा संसार था.. सभी कुछ शानदार था उनकी जिंदगी में.. बेहद जिंदादिल और खुशमिजाज इंसान लगे मुझे..
मैंने भी जितनी जरूरी लगी उतनी जानकारी दी..
हम ने समय बना लिया कि कितनी देर बात करेंगे..
उनमे जो सबसे अच्छी बात मुझे लगी वो थी उनकी साफ़गोई... इतनी पारदर्शिता मुझे बेहद पसन्द आई...
जितना उनसे बात करती उनका व्यक्तित्व मुझे उनकी ओर और आकर्षित करता..
उनकी कविताएं.. उनकी शायरी लाजवाब होती..
थोड़ी नोकझोंक भी शुरू हो गई...
मेरी आदत हो गई.. सवेरे उठकर सबसे पहले ये देखती की आज उन्होंने क्या लिखा..
अब उनकी रचनाओं में कहीं कहीं मुझे प्यार नजर आने लगा... या शायद मैं ही देखने लगी.. कहते हैं न इंसान वही देखता है, जो वो देखना चाहता है....
मेरी जिंदगी बदल रही थी.. उनके व्यक्तित्व की चमक से मेरी जिंदगी रोशन हो रही थी.. मेरी ब्लैक एंड व्हाइट जिंदगी अब कलर फुल हो रही थी... शायद उन्होंने मेरी मनोदशा समझ ली थी..
एक दिन यूं ही उन्होंने पूछा.. मीना आप अकेली हैं ना..
बहुत हल्के ढंग और मजाकिया लहजे से मैंने कह दिया... आप जो हैं...
मैं तो हूं पर कोई साथी होना जरूरी है..
अब जरूरत महसूस नहीं होती शिव.. मुझे जो मिलना था.. जितना मिलना था मिल चुका...
आपके ज़वाब कभी कभी मेरी बोलती बंद कर देते हैं.. हँसते हुए कहा शिव ने
दिन पंख लगाकर उड़ने लगे..
शिव रोज एक कविता भेजते... और मैं झूम उठती..
तू शायर है.. मैं तेरी शायरी.. कुछ इस तरह..
अभी तक उन्होंने ऐसा कुछ नहीं बोला था जिस से मुझे ये लगता कि उन्हें भी मैं भा गई.. और मुझे इंतजार भी नहीं था.. मैं तो मगन थी..
हँसने लगी थी खुश रहने लगी थी.. पर अकेले में.. लोगों के सामने मैं वही थी खड़ूस.. मेरे बदलाव को मैंने अपने लिए रख लिया.. किसी अनमोल खजाने की तरह..
शिव ही सत्य है.. शिव ही सुन्दर... मेरा उनके प्रति लगाव,, प्रेम कम पूजा ज्यादा थी.. वो पास नहीं थे.. पर साथ थे..
शिव तक मेरी दीवानगी पहुंच चुकी थी.. जाहिर भी था.. मैं भी अपनी भावनाएं शायरी की या ग़ज़ल के रूप में उन तक पहुंचाने लगी थी.. पर बिना प्रतिउत्तर की चाह लिए...
मैं किसी भी तरह अपनी तरफ से उनकी परेशानी का सबब नहीं बनना चाहती थी.. क्यों कि वो जो मुझे दे रहे थे वो सिर्फ और सिर्फ मेरे लिए था.. अपनी व्यस्त सी जिंदगी से बचाकर कुछ वक़्त..
हम कभी नहीं मिल सकते थे... शायद चाहते ही नहीं थे.. ये दूरियों का साथ.. ये अपनापन.. दो अजनबी लोगों के बीच का ये सेतु ना जाने कौन से रूहानी रिश्ते को जोड़ रखे था...
एक दिन शिव ने पूछा.. मीना मिलना चाहोगी कभी??
नहीं शिव...
क्यों...
मैं लालची नहीं होना चाहती....
इसमे लालच कैसा...
बताऊंगी कभी... ओके जैसा आप चाहें..
ना जाने मुझे क्यों ये लगने लगा कि शिव भी मुझे महसूस करने लगे हैं...
उनकी रचनाओं में थोड़ी तड़प थोड़ी कसक का एहसास हुआ.. बिना बोले हम शायद एक दूसरे के करीब आ रहे थे..
हम दोनों एक अनछुए एहसास में बँध चुके थे... ये चाहत ये लगाव हमे बहा ले जा रहा था..
एक दिन मैंने अपने दिल की बात टाइप कर ही दी..
शिव मुझे नहीं पता आप कब मेरी चाहत बन गए... आपने नहीं दिया पर मैंने आपसे वो सब पा लिया जिसकी मुझे तलाश थी... आपने मुझे जीना सिखाया... मैं जानती हूं आप का प्यारा सा घर संसार है.. इसलिए ये कभी नहीं चाहती कि आपको मुझे लेकर कोई धर्म संकट हो... मैं कुछ नहीं चाहती आपकी मरज़ी के बिना आपका वक़्त भी नहीं चाहती.. आपने मुझे जो दिया.. या आपसे मैंने जो लिया वो मेरी जिंदगी बन चुकी है.. शायद आज शब्दों का अभाव हो रहा है. दिल में बहुत कुछ है.. पर लिख नहीं पा रही... बस इतना कहना चाहती हूं... आपको चाहती हूं बेहद चाहती हूं.. पर आपसे कुछ नहीं चाहती...
धड़कते दिल से मैसज पोस्ट किया..
एग्जाम के बाद रिज़ल्ट भी इतना बेचैन नहीं किया जितना आज मैसेज के ज़वाब के इंतजार ने किया.. सारा दिन बेचैनी में गुजरा.. रात भी गूजर गई.. इस परेशानी का जिक्र मैंने कहानी के शुरू में किया था..
3 दिन हो गए.. पागलों सी हालत हो गई... कहीं हमने अपनी चाहत में एक अच्छे साथी को तो नहीं खो दिया...
इसी चिंता में थे कि उनका मैसेज आया... बेतरतीब सी धड़कनों को बमुश्किल नियंत्रण में रख मैसेज पढ़ा.. माफ़ कीजिएगा मीना कुछ कामों में अत्याधिक उलझे थे.. कल आपको कॉल करेंगे.. एक बार फिर माफी चाहेंगे..
वक़्त काटना अब और भारी... ये सोचकर कि ना जाने क्या कहेंगे.. खुद को एक चपत लगाई की दिल की बात दिल में नहीं रख सकी... खैर..
नियत समय में उनका कॉल आया.. पहले तो मन किया खूब खरी खोटी सुना दें.. पर हम उस जगह नहीं पहुंचे थे कि उनसे नाराजगी भी जाहिर करते.. हैलो मीना.... कैसी हैं आप???
ठीक....
नाराज हो,,,,, नहीं तो..
कुछ कहें मीना,,,, जी कहिये...
हम बिजी नहीं थे मीना.. बस आपको क्या ज़वाब दें ये सोच रहे थे... आप कहीं न कहीं हमारे दिल में समा चुकीं.. आपको याद करते हैं.. आपकी बातेँ याद करते हैं.. हर वक़्त जेहन में आपको ही पाने लगे थे.. दिमाग कहता है हम गलत कर रहे हैं.. क्योंकि हम पहले से किसी से तन मन से जुड़े हुए हैं.. पर दिल का क्या करें.. मीना हम कुछ भी तो नहीं दे सकते आपको... कुछ बोलिए भी.. चुप क्यों हैं..
कह दिया आपने जो कहना था..... जी.
आपको इतना परेशान करने का हमारा कोई इरादा नहीं था शिव ना कभी होगा.. हो सके तो हम पर विश्वास करिए.. हमे कुछ भी नहीं चाहिए आपसे... कुछ भी नहीं... हम आपको चाहते हैं बस.. अपने मन में कोई बोझ मत रखिए..
आपको हम से जुड़े रहने में भी कोई समस्या है तो हम दूर भी हो जाएंगे... बस हमे लेकर आप परेशान मत रहिए...
मीना... आपको क्या मिल रहा है इस चाहत से..
काश बता पाते शिव..
और इस तरह एक खूबसूरत रिश्ते की शुरूवात हमारे बीच हो गई.. कोई शर्त नहीं कोई चाहत नहीं.. ना पाने की लालसा न खोने का डर... बरसों इस रिश्ते को जी लेंगे इसी तरह.. मुझे लगता है रिश्ते निभाना बहुत आसान और सरल होता है... बस आपसी सामंजस्य सही हो... प्यार तो आबाद ही करता है... ना जाने लोग इसे बर्बादी क्यों कहते हैं...

