"अधूरी मोहब्बत"
"अधूरी मोहब्बत"
चन्द्रमुखी सिर्फ नाम ही नहीं था उसका वो अपने नाम की तरह ही शांत और शीतल,ख़ुबसूरत इतनी की हाथ लगा दो तो मैली हो जाए ऐसी धवल काया नज़ाकत ऐसी की पानी भी पीए तो दिखता है निगलते हुए!चंचलता ऐसी की जिस महफ़िल में आ जाए जान डाल दे हंसमुख, अल्हड़ता कूट-कूट भरी थी कॉलेज गई तो लड़कों की सांसें ही अटक गई!
सुधीर और मधु की जान थी "चन्द्रमुखी" संयुक्त परिवार में दादा -दादी और चाचा-चाची की लडली थी ! उसकी माँ मधु को रिश्तेदार कहते थे भाभी आपको भगवान ने राजकुमारी दी है !मगर चन्द्रमुखी अपने बचपन के साथी से प्यार करती है !वो राज परिवार का लड़का रहता है .....लोकेन्द्र सिंह !
विदेश से पढ़कर आता है !गाड़ी लेकर रायबरेली चन्द्रमुखी से मिलने आता है !चन्द्रमुखी क़दम ज़मी पर नहीं पड़ते अपनी माँ और दादी सब को अपने ख़ुशी बताती है "लोकेन्द्र" लौट आया है!
लोकेन्द्र के घर में उसके दादा जी जोधपुर राजघराने की "राजकुमारी शुभ्रा" से लोकेन्द्र की शादी तय कर देतें है ! लोकेन्द्र माँ से बहुत रिक्वेस्ट करता है! मैं ये शादी नहीं करुंगा ! मुझे चन्द्रमुखी से कोई जुदा नहीं कर सकता!
दादा जी "दिग्विजय सिंह" के सामने किसी की हिम्मत नहीं होती शादी हो जाती है!चन्द्रमुखी बहुत उदास रहने लगती है! कुछ सालों बाद वो अपनी पढ़ाई पूरी करके मुम्बई में जॉब करने चली जाती है ! चन्द्रमुखी से माँ कहती है,अब तुम शादी कर लो !चन्द्रमुखी मना कर देती है !मुम्बई में जॉब करते हुए !माँ मेरे नसीब में "अधूरी मोहब्बत" लिखी है!मीरा जैसे गिरधर गोपाल को अपना पति मानती है वैसे ही मैनें भी "लोकेन्द्र सिंह" को अपना सब कुछ मन लिया है!
समाजसेवी संस्था के लिए काम करने लगती है!वही उसकी ज़िन्दगी का मक़सद बना लेती है!वो झुग्गियों के बच्चों के लिए रात की स्कूल की स्थापना करती है अनाथ आश्रम खोलती है...!