अधूरी दास्तां
अधूरी दास्तां
रात्रि की कालिमा के सन्नाटे को चीरती हुई घायल कराहते सैनिकों की आवाजें, अमावस के अंधेरे मे डूब रही थी। वहीं शहीदों के बीच में, जख्मी अर्ध चेतन अवस्था में मेजर राघवेंद्र भी पड़े हुए थे। उनके हाथों में लाल रंग की चूड़ियां थी। जिन्हें अभी-अभी उन्होंने जबरन हाथ से घसीटते हुए जेब से निकाली थी। सांसो में कमी हो रही थी, पर मन में कुछ उफन सा रहा था। एक अनकही अजीब सी उलझन, बेचैनी, जो मौन के तटबंध तोड़कर बह जाना चाहती थी। उनके जेहन में पत्नी का चुलबुलाता, खिलखिलता चेहरा कौध गया।
बीते सुनहरे पलों ने दस्तक देनी शुरू कर दी थी। शादी के तुरंत बाद मधुचंद्र मनाने के लिए गाड़ी में तुम आकर बैठी ही थी।तुम्हारा वो उल्लासित चेहरा, जिसे छिपाने की नाकामयाब कोशिशों के बावजूद, छलक रहा था। अपनी तरफ मुझे ताकते देख, झट दोनों हाथों से तुमने अपने चेहरे को छुपा लिया था। एकबारगी तो ऐसा लगा कि बालों ने सघन छांह की ओट कर तुम्हें मुझसे चुरा ही लिया।
हम फिरोजाबाद से हनीमून के लिऐ निकल ही रहे थे कि ठेले पर रंग बिरंगी चूड़ियां देखकर कैसे तुम अपने नवविवाहिता रूप को भूलकर बच्चे के समान चूड़ियां खरीदने के लिए मचल उठी थी। "अपनी फ्लाइट मिस हो गई तो वापस घर लौटना पड़ेगा। मुझे छुट्टी भी तो ज्यादा नहीं मिली फिर पता नहीं कब आने को मिले।" इससे पहले कि मैं कुछ कह पाऊं तुम तो इन सबसे परे उर्जा सी छलकती नदी, नदी जो अभी-अभी पर्वत से उतरी हो, बहते हुए ठेले तक जा पहुंची। उस चिलचिलाती धूप में दो घंटे से ज्यादा तुमने चूड़ियां देखने, लेने में बिताए। मन में एक ही सोच चल रही थी कैसी पागल लड़की है। कोई अपने सुनहरे यादगार पलों को, जीवन की सबसे हसीन पलों की पोटली को, भला कैसे छोड़ सकता है? वह भी केवल चूड़ियों के लिए ?और फिर चूड़ियां तो कभी भी खरीदी जा सकती थी। हम इसी शहर मे तो रहते हैं।
बेहद नाराजगी के कारण तुम्हारे जज्बातों को भूल कर मैं तुम पर बरस पड़ा। शायद ना जा पाने का मलाल था। पर तुम ठिठक गई, बजाय रूठने के, तुम्हारे मनाने की अदा ने इतराते हुए मुझे मना ही लिया। बापस तुम चूड़ियां देखने में इतनी मशगूल हो गई थी मानो सारा जहां मिल गया हो। इतनी उत्सुकता, इतना जुनून, इतना सुकून मैंने तो पहले कभी नहीं देखा था।
मन उदास था पर जैसे ही चूड़ियां तुमने अपने हाथों में पहनी मुझे भी भाने लगी, तुम पर बेहद फब जो रही थी। खुले लहलहाते बालों को जब तुम अपने हाथों से सँवारती, तो उनकी खनखनाहट हवा में शहद सी घुल जाती। रास्ते में चलते वक्त जब थक कर तुम मेरा हाथ थामती तो गोरे गोरे हाथों में लाल लाल चूड़ियां मुझे गुलाबी कर देती थीं।
भीगी भीगी भोर में नेह गीत में झूमते, मुस्काते चांद और तारों की चादर ताने समय कब बीत गया पता नहीं चला। मेरे आने के दिन करीब आते देख कर तुम ने चूड़ियों को उतारकर, डब्बे में बंद कर अलमारी में रख दींं। मेरे बहुत पूछने पर बोझिल मन बहने लगा"" जब तुम वापस आओगे तभी इनको पहनूंगी"।
तुम्हें सुनकर हँसी आयेगी आजकल मैं यहां
बहुत ही चर्चित हूं।दोस्त लोग मुझे हंसाने की कोशिश मे चुहलबाजी करते कहते है
सदाबहार, हंसी की फुलझड़ी छोड़ने वाले मेजर राघवेंद्र जब से बेसकैंप लौटे, खोए खोए से रहने लगे हैं।। उन्हें देखकर ऐसा लगता है। जैसे उनकी कोई अमूल्य वस्तु खोई हो जिसे उनकी आंखें तलाशती रहती हैं। दिन तो निकल जाता पर रात हमेशा करवटें बदलते ही निकलती। हमारे ज्यादा पूछने पर मुस्काते हुए कहते ""यारों हमेशा दिन ही रहे तो कितना अच्छा हो।यह बिरहन रात आती ही क्यों है "?
दोस्त लोग हंसते एक बहादुर सिपाही भला रात से ही डरने लगा युद्ध में अपने पांव कैसे जमायेगा ?
बस ऐसे ही समय यादों के सहारे जैसेतैसे कट रहा था।पर बक्त नेअब हालात ही बदल दिये पता नहीं कल क्या होगा?। तुम्हारा चेहरा धुंधला होता जा रहा है सच कहूँ तुम शरमाओ मत अभी जी भरकर तुम्हें निहार ही कंहा पाया।अच्छा छोड़ो ये सब ःःः तुमने मुंह क्यों फेर लिया मैं तुम्हारी आंखें देख कर ही समझ गया था कि तुम रो रही हो। क्या फौजी अफसर की बीवी को रोना अच्छा लगता है ? नही न
अच्छा सुनो तम्हें कुछ बताना चाहता हूं।सुन रही हो मेरे मन की बात, मैंने तुमसे एक बात छुपाई थी पर अब मेरे पास समय नहीं है। सांसें थम रही हैं।
उन्हीं दिनों जब मैं बापस लौटने बाला था।दीदी मुझसे मिलने आई थीं। तुम्हें याद आ रहा है ना। कोतहूलवश उन्होंने तुम्हारी अलमीरा मे चूड़ियों का डब्बा देखा, खोलते ही उन्हें भी वे चूड़ियां अच्छी लगी। उन्हें लालायित होता देखकर कितनी सरलता से तुमने वह चूड़ियां दी को सौंप दी यह कहकर कि "आपके लिए ही तो लाई थी।" पर मुझे बड़ी तकलीफ हुई थी। तुमने हम दोनों के "प्यार के इस अंकुर "को कैसे अपने से दूर कर दिया ?
आने वाले दिन तुम्हारा सदा झरने से छलछलाते, वीणा के तारों जैसा झंकारते मुख को मलिन देखकर, मन बेबस हो गया था। तुमको बिना बताये ही, मैंने दी को अपने पृथम प्यार का इजहार करवा दिया और अपनी उस अमानत को लेकर अपने पास रख लीं थीं। सोचा था जब वापस आऊंगा तब तुम्हें पहना कर तुम्हारे चेहरे पर चूड़ियो सी लालिमा भरी शर्माहट को देखूंगा। एकटक देखता रहूंगा ताकि वह छवि मन में बस जाए। इतनी दूर सरहद पर यही तो एकमात्र सहारा है ,मनोबल है।
पर मुझे क्या पता था ? ये चूड़ियां मैं तुम्हें कभी नहीं पहना पाऊंगा। काश इनका रंग अब मेरे कफन जैसा सफेद हो जाए और जब मुझे अपने घर तुम्हारे पास लाया जाए। तब तुम मेरे हाथों से अपने हाथों में पहनलो। इनके सहारे मैं सदा के लिए तुम्हारे दिल में बसा रहूंगा।
अनुराग के गीत अंतस के जज्बात वेदना में ढलने लगे थे। आकाश रक्तिम हो गया था प्रातः काल के पल बार बार मेघ से ढक रहे थे। वेदना भरा था मेघ का रुदन, वह भी मेजर की शहादत पर अपने मोती बरसा रहा था आकाश मे उड़ते पखेरू विस्मित, बदहवास से इस दृश्य को देख रहे थे।
अब ना नींद का डर, ना ख्वाब का खौफ बस मेजर राघवेंद्र के हाथों में रह गयी, उमड़ती उमंगों को लुहुलुहान करती लाल लाल चूड़ियां।