Yashwant Rathore

Drama Romance Classics

4.3  

Yashwant Rathore

Drama Romance Classics

अधूरी आश

अधूरी आश

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फ्लैट की खिड़की से सुबह की धूप में ये फूलों की क्यारियां कितनी अच्छी लग रही है . रोड से लगातार गाड़ियों की आवाज फ्लैट तक आती ही रहती हैं. पर अच्छा भी है, इससे मन लगा रहता है.

जब राजदीप (किरण के पति) ऑफिस चले जाते हैं तब ये गाड़ियां अकेलापन महसूस नहीं होने देती है ;ऐसा लगता है अकेली नहीं हूं बहुत सारे लोगों के बीच हूं।

चाय का सिप लेते हुए किरण यही सोच रहे थी।

हम हैं भी तो दो ही जने यहां, जयपुर जो आ गए राजदीप ।   

मां बाबूजी ,इनके छोटे भाई सब बनारस ही हैं।

यह शहर भी बड़ा सुन्दर है बस यहां गंगा नहीं बहती ।

तभी राजदीप स्नान करके बाहर आए, ऑफिस के लिए तैयार होने लगे।

किरण - आप की चाय टेबल पर रख दूं।

राजदीप - हां

राजदीप अखबार के पन्ने पलटते हुवे , बड़ी जल्दी में अखबार पढ़ते हुवे,

राजदीप ने अपनी चाय उठाई ओर किरण की तरफ देखते हुवे बोला।

राजदीप- आज काफी खुश लग रही हो.

किरण - हां , आज बड़ा अच्छा सा लग रहा है, ऐसा मन कर रहा है अपनी पसंद के गाने सुनू, बहुत दिनों बाद ऐसा लग रहा है.

राजदीप - मुस्कुराते हुवे, अच्छी बात है, तुम्हारा मन तो लगा, मुझे तो  डर था अनजान शहर में तुम्हारा मन केसे लगेगा।

राजदीप - अच्छा में अब निकलता हूं, बैग उठाते हुवे। अपना ध्यान रखना, कुछ बात हो तो कॉल कर लेना।

किरण - हां, ध्यान से जाना।

राजदीप - हां, मुस्कुराते हुवे।

किरण ने दरवाजा लगा दिया। ओर बेडरूम में चली गई थी।

घर का काम आज किरण ने जल्दी कर दिया था ओर तैयार भी जल्दी हो गई थी. 

किरण आइने के सामने बैठी हुई, एक खुशी एक उमंग अपने मन में महसूस कर रही थी।

किरण धीरे धीरे गुनगुनाते हुवे -

' जाना पिया के देश, मोहे जाना पिया के देश

मनवा , बदले है कितने भेष..जाना पीया के देश।

शादी को 3 साल हो गए, राजदीप ने हमेशा सम्मान व प्यार दिया पर आज भी दीपांशु का चेहरा आंखो के सामने रहता है।

उसकी वो हसीं, मीठी मीठी बातें, उसकी बरोनी, मासूम सा चेहरा, उसके कान भी बड़े सुन्दर लगते थे मुझे।

मेरे भाई का दोस्त था वो, अगली गली में ही रहता था, पर, कभी उसके घर के आगे से निकलने की हिम्मत ना हुई मेरी।

घरवाले कहीं जाने ही नहीं देते थे,वो पड़ोस के गुड्डी दीदी ने भाग के क्या शादी कर ली, सब घरवाले को लगता था कि सब लड़किया ही भाग जाएगी।

में तो थी भी अकेली लड़की पूरे परिवार में.

ना बाबा ना अपने बस का नहीं ,कहीं भागना, मुझे तो बड़ा डर लगता था, ये सब सोचते हुवे भी।

बी. ए. करने के बाद मैने ताऊजी का एनजीओ यूंही जॉइन कर लिया था, वहां दीपांशु भी काम करता था. पहले पहल में कितना डरती थी , हिचकिचाती थी उससे बात करते हुवे.

पर वो बातूनी बातें करवा ही लेता था. उसके ख्वाब भी कितने बड़े थे, बिजनेस करूंगा बस एक दो साल में कुछ पैसे इक्कठे कर लूं ,ऐसा कहता था. आज वो बिजनेस करता भी हैं ,कुछ तो बात हैं उसमें।

कैसे मैरा मन चुरा ले गया. उसने तो पूछा भी था भागना है क्या ? पर ये सब मेरे बस की बात कहां थी, आज तो फिर भी कुछ जानती हूं पहले तो बस कोरी थी, कुछ भी तो नहीं पता था, बी. ए. करके भी ऐसा लगता था अनपढ़ ही हूं ,कुछ भी तो नहीं जानती थी. लोग केसे भागने की हिम्मत कर लेते है.

पापा का नाम खराब हो जाता, भाई कभी भी मुझसे बात ना करता, मां तो मर ही जाती, उस वक़्त मुझसे ये सब ना हुआ.

पापा ने राजदीप से शादी करवा दी, कहा -'जानता हूं इस परिवार को अच्छा घर हैं, लड़का भी अच्छा है ओर तू खुश रहेगी'।

राजदीप सच में अच्छे इंसान है, मैने भी उन्हें अपना ही लिया पर कहीं ना कहीं एक अधूरापन, एक टीश सी हैं।

अगर में दीपांशु के साथ होती, उस वक़्त हिम्मत कर लेती तो क्या जिंदगी कुछ ओर ही होती।

दीपांशु ने भी तो शादी के बाद बात करना बंद कर दिया था, बहुत कम ही बात करता है, सामने आ भी जाए तो बस हां हूं ही करता है।

वो नाराज़ था, शादी से पहले वो मेरे साथ आगे बढ़ना चाहता था अगर उस दिन अपने मन को काबू में करके, नहीं भागती तो क्या से क्या हो जाता. कहां मुझमें इतनी हिम्मत थी ये सब करने की.

अब सोचती हूं क्या वो होने देना चाहिए था ?

नहीं नहीं वो तो गलत ही होता।

उसके बाद से ही दीपांशु नाराज़ रहने लग गया था, फिर तो मेरी शादी ही हो गई थी. अब फिर भी जनाब( दीपांशु) कभी कभी बात कर लेते हैं.

मैने राजदीप को बताया भी था कि दीपांशु मेरा अच्छा दोस्त है ओर वो काफी अच्छा लड़का है.

आज दीपांशु जयपुर आया हुआ है, मुझसे मिलने भी आ रहा है। मैने राजदीप को बताया कि दीपांशु जयपुर है, हो सकता है मिलने आए, पर पक्का भी नहीं है।

मैने राजदीप से क्यूं छुपाया, पर दीपांशु ने भी तो कहा था की वो अकेले में ही मिलना चाहता है, उसे कुछ जरूरी बात करनी है.

कहीं वो कुछ बदमाशी तो नहीं करेगा ?

पर में उसको संभाल सकती हूं।

अरे नहीं नहीं ,ये भी मैं क्या सोच रही हूं, अब तो उसकी शादी को भी २ साल हो गए.

किरण का मन ऐसे ही बातें सोच सोच के हिलोरे ले रहा था.

तभी घंटी बजी ।..

किरण भागती सी दरवाजे पे गई। दरवाजा खोला

संभल कर बोली - आओ दीपांशु, केसे हो.

दीपांशु- हल्का मुस्कुराते हुवे, ठीक हूं किरण, तुम केसी हो.

किरण - बैठो पानी लाती हूं, चाय पियोगे ना.

दीपांशु - चाय नहीं, मैं, जल्दी निकलूंगा।

किरण - क्या.. , अभी तो आए हो, अभी से जाने की बाते, बैठो.

दीपांशु - पर चाय नहीं सिर्फ पानी.

किरण - ठीक है.

दीपांशु का चेहरा मुरझाया सा था, उदासी परेशानी चेहरे पर थी.

किरण दीपांशु को देखते हुवे ,नजर भी तो नहीं मिला रहा है, कभी घर को देख रहा ओर कभी फर्श को.

किरण - क्या हुआ, थके से लग रहे हो

दीपांशु - नहीं सब ठीक है, ओर सब केसे है, राजदीप जी ओर सब घर में

किरण - सब बढ़िया है, तुम सुनाओ रमा ( दीपांशु की पत्नी) कैसी है ओर अंकल आंटी

दीपांशु - सब बढ़िया हैं

किरण पानी का ग्लास पकड़ाते हुवे ओर दीपांशु से आंखें मिलाते हुवे

किरण - तुमने तो भुला ही दिया दीपांशु।

दीपांशु - नहीं ऐसी..

किरण बीच में ही बात काटते हुवे

किरण- कभी बात नहीं, कितने फोन मिलाएं थे मैने, सामने भी आ जाते तो बस इग्नोर करके निकल जाते। मैने बताया था ना तुम्हे ये भागना वागना मेरे बस का नहीं। तुम थे कि गुस्सा पकड़ के बैठे थे। अरे शादी नहीं हुई तो क्या दोस्ती का रिश्ता भी नहीं रख सकते थे क्या.

दीपांशु - चौंकते हुवे, तुम इतनी बेबाक कब से हो गई.

किरण - संभलते हुवे, मुस्कुराने लगी. हां नहीं तो क्या. पहले मन की बात नहीं कह पाती थी पर अब कह तो देती हूं, अच्छा लगे या बुरा, कोई परवाह नहीं

दीपांशु - अच्छी बात हैं

किरण - में तुम्हे कभी भुला नहीं पाई दीपांशु, तुम्हारा चेहरा ,बातें ,हरदम मेरे साथ रहती हैं, जब भी अकेली होती हूं, तुम मेरे साथ होते हो. ऐसा प्यार तो मेरा राजदीप के लिए भी नहीं है.

वो इतने अच्छे इंसान हैं,

क्या मैने उनके ओर अपने साथ गलत किया?

क्या में तुम्हारे साथ भाग जाती तो सही होता..?

दीपांशु - टोकते हुवे, रुको रुको किरण, मेरी बात सुनो

किरण - हां

दीपांशु - तुम्हारा प्यार सच्चा है किरण, में जानता हूं, इन तीन सालों में भी ,मैं

वो देख पा रहा था ओर वो ही मुझे डरा भी रहा था.

किरण - डरा रहा था? समझी नहीं..

दीपांशु - किरण मेरी बात ध्यान से सुन ना, एक कहानी समझ कर, वादा करो इसे दिल पे नहीं लगाओगी तो में बोलु, नहीं तो में चला जाता हूं।

किरण - क्या बात है

दीपांशु - पहले वादा करो, तुम ध्यान से सुनोगी ओर समझोगी

किरण - ठीक है

दीपांशु - किरण तुम्हे याद होगा जब हम पहली बार एनजीओ में मिले थे.

किरण - हां

दीपांशु - बोलो मत सिर्फ सुनो.

किरण - सिर हिलाते हुवे

दीपांशु - मैने जब तुम्हे पहली बार देखा, तुम मुझे पसन्द नहीं थी. पर उम्र कहो या बेईमानी में तुम्हे अपना बनाना चाहता था, मुझे सिर्फ शरीर पाना था, जो और लड़के भी करते थे, मेरे दोस्त लोगो के भी किस्से थे, में भी ऐसा ही कुछ करना चाहता था.

किरण - हं...

दीपांशु - सिर्फ सुनो अभी, पर जब तुमसे बातें करने लगा , तुम्हे समझने लगा, मुझे तुमसे कुछ और मिलने लगा , ओर शरीर की भूख कहीं खो गई. पर प्यार में तुमसे तब भी नहीं करता था.

किरण के गालों पर आसुं बहने लगे.

दीपांशु - अभी सुनो किरण

किरण - हम्म।.. आसुं हटाते हुवे

दीपांशु - जितना समय में तुम्हारे साथ रहा,मैने जिंदगी को अलग नजरिए से जाना.

एक दिन तुम्हे याद होगा मैने आगे बढ़ने की भी कोशिश की पर तुम्हारे ना कहने पर आगे नहीं बढ़ पाया. वो ठहराव भी मैने तुमसे पाया.

पर जब तुम्हारी शादी की बात हुई तो में खुश भी था कि ये सही घर चली जाएगी ओर जो जूठ मैने प्यार के नाम पे बुना था उससे में आजाद हो जाऊंगा.

तुम्हारी शादी के बाद मैने इसीलिए तुम से दूरी बना ली की अब सब ठीक हो गया है.

किरण - तो अब क्यूं बता रहे हो.

दीपांशु - तुम जब भी मुझसे टकराई हो ,तुम्हारी आंखों में मैने वो कशिश देखी हैं, वो टिस देखी है, वो काश देखा है जो मेरे जैसे आदमी के लिए ठीक नहीं था.

कुछ पाप दिखते नहीं है किसीको , पर पापी को तो पता होता है ना उसने क्या किया है.

दीपांशु भावुक होते हुवे व संभलते हुवे.

पर अब में खुद को रोक नहीं पाया, मुझे तुमसे कहना ही था.

ये बात तुम्हे चोट पहुंचा सकती थी, तोड़ सकती थी, सो फोन पे नहीं बताना चाहता था. बनारस में कहना भी मुश्किल था, बस इसी काम से जयपुर आया था सिर्फ तुमसे मिलने.

किरण - अपने आसुं साफ करते हुवे.

दीपांशु - मुझे माफ़ करदो किरण

किरण - कोई बात नहीं.. रोते हुवे

दीपांशु - अगर तुम मुझे दोबारा कॉल करोगी तो अब एक सच्चा दोस्त तुमसे बात करेगा, कोई बहरूपिया नहीं.

नहीं भी करोगी ,तो भी कोई बात नहीं , पर में तुमपे भरोसा करता हूं कि तुम कोई गलत काम नहीं करोगी, तुम्हे में जितना जानता हूं तुम बहुत हिम्मत वाली लड़की हो.

अब में चलता हूं. दोबारा बुलाओगी तो तब मिलने आऊंगा जब राजदीप जी घर में होंगे.

दीपांशु उठ कर जाते हुवे, एक बार को रुकता है ओर पूछता है

दीपांशु - कुछ कहना चाहती हो किरण..

किरण खड़ी होके, आसुं साफ करते हुवे

किरण - कुछ नहीं, हल्का मुस्कुराते हुवे, तुम एक अच्छे इंसान हो दीपांशु

दीपांशु एक पल किरण को देखता है ओर बिना कुछ बोले निकल जाता हैं

किरण जाके सोफे पर बैठती है, एक लम्बी सांस लेती हैं, पानी का ग्लास उठाती ,पानी पीती हैं, फिर एक लम्बी सांस लेती हैं, फिर कुछ सोचती हैं ओर मुस्कुराती है.

किरण गुनगुनाते लगती है

जाना पिया के देश, मोहे जाना पिया के देश

मनवा बदले है कितने भेष..जाना पीया के देश।

किरण रसोई की तरफ जाती हैं

किरण - आज में गूंजे बनाऊंगी , राजदीप को गूंजे बड़े पसंद है, किरण के सामने राजदीप का चेहरा आ जाता है ओर वो हसने लगती हैं फिर गुनगुनाती हैं

जाना पिया के देश, मोहे जाना पिया के देश

मनवा बदले है कितने भेष..जाना पीया के देश।


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