अधूरा सच
अधूरा सच
उत्कृष्ट लेखन के सम्मान से सम्मानित राजीव अपने संबोधन में सभी का आभार मान ही रहा था कि एक श्रोता ने जिज्ञासावश उससे पूछा "आखिर आप इतना मार्मिक सटीक व पाठको के दिलो को छू जाने वाले लेख लिख कैसे लेते हैं ।" उसका यह प्रश्न सुनते ही एक पल तो राजीव ने प्रश्नकर्ता की और निहारा।प्रश्न के उत्तर में उसके दिल ने कहा कि ,जब जिंदगी के चहरे पर दुख की सिलवटे बड़ी गहरी पड़ी हो और निराशा के अंधेरे में,मन के इस अनंत भटकाव को कहीं कोई ठौर न मिले बस तभी मन की ये अंतर्वेदना दवात बन कागज पर बरस जाती है।पर अपने मन के दिए इस उत्तर को शब्दों का चोला पहनाए बगैर राजीव खुद को संभालते हुए,फिर मंच से वही रटा रटाया अधूरा सच बताने लगा।जो लेखन जगत में शोहरत मिलने के बाद उसके कथाकथित मार्गदर्शक ने उसे समझाया था।
