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Vijay Erry

Abstract Fantasy Others

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Vijay Erry

Abstract Fantasy Others

अधूरा किस्सा

अधूरा किस्सा

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अधूरा किस्सा 

लेखक: विजय शर्मा एरी

शहर की भीड़भाड़ वाली सड़कों से दूर, एक पुराना सा मोहल्ला था, जहाँ समय जैसे रुक सा गया हो। लाल ईंटों की दीवारें, टूटे-फूटे फुटपाथ, और हर गली के मोड़ पर चाय की टपरी। इसी मोहल्ले में रहती थी अनन्या। उम्र कोई छब्बीस-सत्ताईस। लंबे काले बाल, जो हमेशा खुल्लम-खुल्ला रहते, और आँखें इतनी गहरी कि देखने वाला डूब जाए। लोग कहते, अनन्या बहुत ख़ामोश है। बात कम करती है, पर जब करती है तो लगता है सालों से जानती हो।

उसके सामने वाली पुरानी हवेली में रहता था आरव। तीस के करीब। कभी दिल्ली में बड़ा पत्रकार था। दो किताबें लिख चुका था। फिर अचानक सब छोड़कर यहाँ आ गया। कहता था, “शहर मुझे खा गया था। यहाँ कम से कम साँस तो ले सकता हूँ।”

दोनों के बीच कोई दोस्ती नहीं थी। बस कभी-कभी बालकनी में चाय पीते हुए नज़रें मिल जातीं। अनन्या मुस्कुरा देती। आरव सिर हिला लेता। इतना भर।

एक शाम बारिश हो रही थी। तेज़। जैसे सावन ने सारा पानी एक साथ उड़ेल दिया हो। अनन्या छत पर कपड़े उतार रही थी कि उसकी चप्पल फिसल गई। सीढ़ियों से लुढ़कते हुए नीचे पहुँची। पैर में गहरी चोट। खून बह रहा था। उसने आवाज़ लगाई, पर मोहल्ले में कोई नहीं था। सब अपने घरों में दुबके थे।

आरव छत पर खड़ा सिगरेट पी रहा था। आवाज़ सुनकर दौड़ा। उसे गोद में उठाया और ऑटो पकड़कर अस्पताल ले गया। रास्ते में अनन्या ने पहली बार उससे लंबी बात की।

“तुम यहाँ क्यों आए?” उसने पूछा।

“क्योंकि यहाँ कोई सवाल नहीं पूछता।” आरव ने कहा।

“मैं पूछ रही हूँ।”

आरव चुप रहा।

अस्पताल में टाँके लगे। आरव ने दवाई ली और उसे वापस लाया। उस रात अनन्या पहली बार उसके घर गई। पुरानी हवेली थी। अंदर किताबों का ढेर। दीवार पर काले-सफेद तस्वीरें। एक कोने में टूटी हुई टाइप राइटर।

“कॉफ़ी लोगी?” आरव ने पूछा।

अनन्या ने सिर हिलाया।

कॉफ़ी पीते-पीते अनन्या की नज़र एक डायरी पर पड़ी। मोटी सी, चमड़े की बाइंडिंग। उस पर लिखा था – “अधूरी कहानियाँ”।

“ये क्या है?” उसने पूछा।

आरव ने मुस्कुराते हुए कहा, “मेरी ज़िंदगी की सारी कहानियाँ। जो ख़त्म नहीं हुईं।”

“दिखाओ।”

“नहीं। ये बहुत निजी हैं।”

पर अनन्या ज़िद्दी थी। उसने डायरी छीन ली और पलटने लगी। पहले पन्ने पर लिखा था:

“वो औरत जिससे मैं सबसे ज़्यादा प्यार करता था, उसने मुझे छोड़ दिया क्योंकि मैं सच लिखता था।”

अनन्या ने सिर उठाया। आरव चुप था।

“ये तुम्हारी कहानी है?”

“हाँ। और अभी अधूरी है।”

उस रात अनन्या देर तक रुकी। डायरी पढ़ती रही। हर पन्ने पर कोई न कोई औरत। कोई नाम नहीं। सिर्फ़ शुरुआत और फिर ख़ामोशी। जैसे हर बार प्यार शुरू हुआ और कहीं खो गया।

अगले कुछ दिन दोनों करीब आए। अनन्या रोज़ शाम को उसके घर आने लगी। कभी चाय, कभी शराब। कभी ख़ामोशी। आरव लिखता रहता। अनन्या पढ़ती।

एक शाम अनन्या ने पूछा, “तुम कभी किसी को पूरा प्यार नहीं कर पाए?”

आरव ने कहा, “प्यार पूरा तभी होता है जब दोनों एक ही कहानी लिख रहे हों। मैं अकेला लिखता रहा।”

अनन्या चुप हो गई।

धीरे-धीरे मोहल्ले में बातें होने लगीं। लोग कहते, “वो लड़की आरव के घर जाती है।” कोई कहता, “शायद उसकी नई कहानी है।”

एक दिन अनन्या ने आरव से कहा, “मुझे अपनी कहानी में लिखो। पूरी।”

आरव ने कहा, “अगर मैंने लिख दिया तो वो ख़त्म हो जाएगी। मैं नहीं चाहता।”

“तो फिर मुझे अधूरी ही रखोगे?”

“शायद।”

उसके बाद कुछ दिन अनन्या नहीं आई। आरव बेचैन रहने लगा। रात भर छत पर टहलता। सिगरेट पर सिगरेट।

फिर एक शाम अनन्या आई। हाथ में एक फाइल थी। उसने आरव के सामने रखी।

“ये पढ़ो।”

आरव ने खोला। उसमें लिखा था –

“वो लड़का जिससे मैं सबसे ज़्यादा प्यार करने वाली थी, उसने मुझे कभी अपनी कहानी में जगह नहीं दी। वो हमेशा अधूरी कहानियाँ लिखता रहा। मैं उसकी आखिरी कहानी बनना चाहती थी। पर वो डरता था कि अगर पूरी लिखेगा तो मैं भी चली जाऊँगी, जैसे बाकी सब गई थीं।”

आरव की आँखें नम हो गईं।

“तुम ये कब लिखी?”

“जब तुमने कहा था कि तुम मुझे अधूरी ही रखोगे।”

फिर ख़ामोशी। लंबी ख़ामोशी।

आरव ने डायरी उठाई। नया पन्ना खोला। लिखना शुरू किया।

“उस शाम उसने मुझे अपनी कहानी सौंप दी। मैंने तय किया कि अब मैं कोई अधूरी कहानी नहीं लिखूँगा।”

पर अगले ही दिन अनन्या ग़ायब हो गई।

सुबह जब आरव उसके घर गया तो ताला लगा था। मोहल्ले वालों ने बताया कि रात में एक टैक्सी आई थी। अनन्या सामान लेकर चली गई। किसी ने पूछा तो कहा, “मुझे अपनी कहानी पूरी करनी है। कहीं और।”

आरव हवेली में अकेला रह गया। डायरी खोलता तो आखिरी पन्ने पर अनन्या का लिखा हुआ एक कागज़ चिपका मिला:

“अगर तुम मुझे ढूँढोगे तो मैं मिल जाऊँगी।

पर तब तक मैं तुम्हारी कहानी में नहीं, अपनी कहानी में हूँ।

शायद एक दिन हमारी कहानियाँ एक ही पन्ने पर आकर मिलें।

तब तक… ये कहानी अधूरी रहेगी।”

आरव आज भी छत पर खड़ा रहता है। सिगरेट पीता है। कभी-कभी दूर कहीं कोई छाया दिखती है। लंबे बाल। खुल्लम-खुल्ला। वो दौड़ता है। पर जब तक पहुँचता है, छाया ग़ायब हो चुकी होती है।

और डायरी में आखिरी लाइन अब भी वही है:

“मैंने तय किया था कि अब कोई अधूरी कहानी नहीं लिखूँगा।

पर वो चली गई।

फिर भी ये कहानी अभी भी…

अधूरी है।”

(कहानी यहाँ ख़त्म नहीं होती।

शायद कभी पूरी हो।

शायद नहीं।)


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