"आवाज़ की कशिश"

"आवाज़ की कशिश"

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एफएम रेडियो पर सुबह का पहला प्रोग्राम लेकर उसका आना और अपनी मद भरी आवाज मे एक शायरी से आगाज करना बरबस ही प्रिया को टीवी के करीब ले आता ।यह तो अब रोज का सिलसिला हो गया फरमाइशी गाने की मांग करने फोन लगाया तो आरजे की आवाज़ सुनकर निशब्द हो गई। उसे लगा जैसे वह उसे जन्मों से जानती है फिर अचानक वह आवाज़ आना बंद हो गई। उसकी जगह किसी और उद्घोषक ने ले ली। प्रिया की तो जैसे जान ही निकल गई आज भी उसी आवाज़ के इंतजार में है । उस चैनल पर गाने सुनकर सोचती है ये प्रिया के लिए बज रहा है। कभी-कभी किसी अनजान से अनदेखे,अनछुए ऐसी डोर बंध जाती है कि मानो"तेरा मुझसे है पहले का नाता कोई"।


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