शीर्षक_"मज़बूरी की नियति"

शीर्षक_"मज़बूरी की नियति"

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राम रतन हाँ यही नाम तो था डब्बे वाले का जो मुंबई के रिहायशी इलाके का मशहूर डब्बे वाला था उसकी 10 साल की नौकरी में मजाल है कि किसी का खाने का डब्बा किसी और के पास पहुँचा हो ।अपने रिक्शे में सैकड़ों डब्बे लटकाकर गुनगुनाते हुए एक ऑफिस से दूसरे ऑफिस जाता।एक दिन का भी नागा नहीं हुआ पर आज पंद्रह दिन होने को आए सभी अटकलें लगाते हुए उसे याद कर रहे थे कि एक कृशकाय बूढ़ी काया रिक्शे में डिब्बे लादकर ऑफिस कैंपस में प्रविष्ट हुई । पता चला मुंबई में हुए बम विस्फोट ने उनके बुढ़ापे का सहारा छीन लिया था।घर में बहू और एक साल का पोता था । वृद्ध पिता बोले बहू ने कहा मै पति का काम संभालती हूं उस बच्ची की हिम्मत देख मैंने कहा बेटा अभी मै ज़िंदा हूं, ये पुरानी मजबूत हड्डियाँ किस दिन काम आयेंगी?ऐसी विपदाओं से भगवान सबकी रक्षा करे !!!!!दुष्टों को सद्बुद्धि मिले.....



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