मातृत्व की चाह

मातृत्व की चाह

2 mins
304


शैलजा और मंजुजी पार्क में इवनिंग वॉक कर रही थीं। सामने कॉलोनी में एक निर्माणाधीन भवन में  एक गर्भवती महिला मजदूर को देखकर बोलीं,!!!! देखो तो इस हालत में भी कितना ईंटों का वजन ढ़ो रही है? मुझे तो बड़ी दया आ रही है बातचीत करते करते वे उस भवन के नजदीक पहुंची बोलीं अरे ऐसी हालत में ज्यादा वजन मत उठाया करो।पास बैठी मजदूर महिला बोल उठी अरे मैडम!!! हमने भी ऐसे ही काम करते करते अपने बच्चे पैदा किए हैं हम लोग आपके जैसे थोड़ी पैसे वाले हैं काम नहीं करेंगे तो गुजारा कैसे होगा? ऊपरवाला पेट देता है तो इंतजाम भी वही करता है आप लोगों के यहां तो बच्चा पेट में आते ही बिस्तर पर आराम बता दिया जाता है।

तभी तो ऑपरेशन से बच्चे पैदा होते हैं हम तो डिलीवरी के दिन तक काम करते हैं।पास ही वॉक कर रही महिला डॉक्टर ने उनका वार्तालाप सुना तो पास में आ गई और बोली "तुम सही कह रही हो पर आजकल का वातावरण और खानपान ऐसा हो गया है कि बच्चे के पैदा होने में बहुत सी दिक्कतें आती हैं, कुछ कॉम्प्लिकेशन होते हैं इसलिए उन्हें बेड रेस्ट बताया जाता है"। हां ये सही है कि चलते फिरते, काम करते रहने से प्रसव आसान हो जाता है।

वैसे क्या तुम्हें "जननी सुरक्षा योजना" के बारे में पता है ? महिलाओं की डिलीवरी और नवजात शिशुओं के पालन पोषण की पर्याप्त व्यवस्था के लिए सरकार से छह हजार रुपए महिला के बैंक अकाउंट में जाते हैं और जच्चा की सभी जांचें और डिलीवरी मुफ्त करवाई जाती है।कल अस्पताल आ जाना फॉर्म भरवा दूंगी...

 पार्क की बेंच पर बैठकर शैलजाजी जी और मंजूजी कहने लगी हम भी ये योजना सबको बताएंगे। उधर इन सब बातों से बेखबर ईंट ढ़ोती मजदूर गर्भवती महिला को देखकर कहने लगीं " मातृत्व सुख की चाह में किसी भी तरह का बोझ उठा लेती हैं स्त्रियां"। आर्थिक,मानसिकऔरशारीरिक बोझ इस बोझ से ज्यादा भारी होते हैं.…..

जैसे एक एक ईंट जोड़कर घर की नींव को मजबूत करती है वैसे ही अपने खून से कतरे कतरे से सींचकर एक जीव का सृजन करती हैं।"


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Inspirational