बेबसी

बेबसी

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रिया एक कॉरपोरेट कंपनी में मैनेजर है ।इस पद पर पहुंचने में कई सीढि़यां चढ़नी पड़ीं ।कई पड़ाव आए जहां फिसलन थी ।लोग उससे जिस्म की मांग करते पर उसने अपने आपको संस्कारों के पिंजरे में खुद कैद कर रखा था।अपनी योग्यता और मेहनत पर उसे पूरा भरोसा था।आज जब उसे आए हुए पदाधिकारी को नए भवन का निरीक्षण करवाने ले गई तो उसकी जबरदस्ती से खुद को ना बचा सकी खिड़की से झांक कर देखा तो खाली इमारत में कुछ कबूतर उड़ रहे हैं भावशून्य होकर पंछी से बोली काश ! में भी एक पंछी होती ! वो दरिंदा मुझे छूता तो मै उड़ जाती पर सब बेकार! तुम लाख स्वच्छंद उड़ते हो पर मेरी तरह तुम्हें भी ऐसे बहेलियों का पिंजरा कैद कर ही लेता है।कुछ पिंजरे हम मर्जी से चुनते हैं, कुछ पिंजरे हमें फंसा लेते हैं।विचारों की बेबसी में आंसू भी  कुछ नहीं कर पाते हैं।



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