आतिथ्य

आतिथ्य

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सुबह आठ बजे नहाकर बाल काढ़ते हुए दीपक ने आवाज लगाई....माँ ...

जल्दी से टिफिन दे दो। देर हो रही है....

फिर कमरे से बाहर निकलकर बैठक में शहर घूमने को तैयार गांव से मेहमानों को संबोधित करते हुए बोला .... देखिए सत्य भैया.... मैं प्राइवेट कंपनी में काम करता हूँ...

छुट्टी लेने से मेरे पैसे कटते हैं. .इसी वजह से मैं आप सभी को कहीं घुमाने नहीं ले जा सकता हूँ।

पर आप सब परेशान न हों, हर समस्या का समाधान है। घर से बाहर निकलने पर आपको टैक्सी मिल जाएगी...जहाँ के लिए भी जाना चाहेंगे...वहां वह आपको ले जाएगी।

यह टूरिस्ट गाइड की किताब मैं आपको दिए देता हूँ।

सब दर्ज है इसमें, माँ भी जबसे गांव से यहाँ आई है.... मैं उन्हें भी मुबंई नहीं दिखा पाया हूँ । आप उन्हें भी अपने साथ ले लीजिए।

जहाँ जाना चाहें....मजे से घूमिए। पूरे मुबंई में.. होटल... रेस्ट्रां की कमी नहीं है। कहीं भी दोपहर का भोजन कर लीजिएगा। रात का भी खाना खाकर ही आइएगा।

माँ भी तो थक जाऐंगी...आपके साथ घूमते-घूमते... बहुत बड़ा शहर है मुबंई....दो-तीन ऐसा ही कार्यक्रम बनाने से ही पूरा घूम पाऐंगे।

तब तक माँ ने टिफिन हाथ में थमा दिया...माँ आप भी तैयार हो कर इनके साथ मुबंई दर्शन कर आइए। रात के खाने की टेंशन नहीं लेना....

रात में मैं भी बाहर से डिनर करके ही आ जाऊँगा।

लाल-लाल घूरती आंखों की परवाह किए बिना जाते-जाते पूरे मुबंइया स्टाइल में बोला....टेंशन नहीं लेने का.....


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