STORYMIRROR

Kunda Shamkuwar

Abstract

4  

Kunda Shamkuwar

Abstract

आशियाना

आशियाना

1 min
403

आजकल इन गिलहरियों को न जाने क्या हुआ है जब तब मेरे सेकंड फ्लोर की बॉलकनी में करीने से रखे प्लांट्स में घूमती रहती है तो कभी मेरी तरफ यूँ गर्दन उठाकर झाँकती रहती है....

मैं इतने सालों से इस बड़े शहर में रहते आयी हूँ जिसके चारों तरफ ऊँची ऊँची अट्टालिकाएँ दिखायी देती है। कभी कभी मेरा मन मुझे सवाल भी करने लगता है कि यह शहर कभी सोता भी है? रंगीन नियॉन लाइट्स से चमकती रातें और हर तरफ सर्राटे से भागती हुयी गाडियों का शोर यहाँ आम है....

हाँ, तो बात हो रही थी गिलहरी की... 

कल तो हद ही हुयी जब मैं ऑफिस जाने के लिए सीढ़ी से उतर रही थी और तब मैंने देखा शायद यही गिलहरी सीढ़ी से ऊपर आ रही थी....

मुझे आते देख झट से वह भाग गयी। 

यह गिलहरी क्यों और कैसे मेरे सेकंड फ्लोर वाले घर की सीढ़ियों से ऊपर आ रही थी? यह सवाल मेरे मन मे कुलबुलाने लगा। ऐसा तो नही की हम इंसानों ने कही इन गिलहरियों के आशियानों को तोड़कर इन ऊँची इमारतों को बनाया हो ? इस ख़याल के आते ही अनायास मेरी नज़रे कार के शीशे से बाहर देखने लगी। ऑफिस के रास्ते पर मुझे बस ऊँची ऊँची बिल्डिंग और चौड़े रास्तों पर फर्राटे से भागती गाडियाँ ही नज़र आयी। वहाँ दूर दूर तक पेड़ों का कोई नामोनिशान नहीं था...


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Abstract