Arun Gode

Inspirational

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Arun Gode

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आपदा में अवसर.

आपदा में अवसर.

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एक साधारण परिवार में चार भाई थे। उसमें से एक भाई कठिन परिस्थितियों का मुकाबला करते हुए किसी गांव के स्कूल में शिक्षक था। ओखली में सिर दिया तो मूसल से क्या डरना, वो ये सोचकर हमेशा मुसिबतों का सामना करते हुए मंजिल की और बढ़ता चला गया था। कुछ दिनों बाद व शहर के स्कूल में शिक्षक बना। कुछ और प्रयासों के बाद उसे भारत सरकार के केंद्रीय विद्यालय में शिक्षक का जॉब मिला था। अभी शादी की उम्र होने के कारण माता –पिता ने उसके सामने शादी के अनेक प्रस्ताव रखे थे। उसने एक पढ़ी-लिखी लड़की से शादी की थी। दोनों कला के स्नातक थे। उनके पास बि.एड. की भी पदवी थी। शादी के बाद, उसके पत्नी को भी किसी स्कूल में उसी शहर में शिक्षिका की नौकरी मिल चुकी थी। दोनों ही बड़े महत्वाकांक्षी थे। उन्हें दो लड़कियां थी। घर में शिक्षा का वातावरण था। माता-पिता का उनके तरफ ध्यान था। 

         पिता अपने लड़की को शुरु से ही पढ़ाते थे। लड़की अंग्रेजी और अन्य विषयों में अच्छी पकड़ रखती थी। लेकिन उसकी विज्ञान, विशेषकर गणित में पकड़ कमजोर थी। उसने दसवीं बोर्ड की परीक्षा सफलता पूर्वक अच्छे गुणवत्ता से उत्तीर्ण कर ली थी। लेकिन गणित और विज्ञान में उसका अन्य विषयों के मुकाबले परिणाम कमजोर ही था। लड़की को अगर इंजीनियर बनना हैं तो उसे विज्ञान शाखा में बारहवीं उत्तीर्ण करके ही इंजीनियरिंग की प्रवेश परीक्षा को बैठ सकती थी। उसे पास करने के बाद ही वह इंजीनियरिंग को जा सकती थी। माता-पिता महत्वाकांक्षी होने के कारण उन्होंने उसे उस क्षेत्र में उतारने का संकल्प किया था। लक्ष्य प्राप्ति के लिए परिवार ने ओखली में अपना सिर दिया था। लड़की ने काफी प्रयास किया था। वह बारहवीं की परीक्षा भी उत्तीर्ण हो चुकी थी। लेकिन जमीन आसमान एक करने के बाद में भी उसका परिणाम विज्ञान और गणित में कमजोर ही था। लेकिन अंग्रेजी भाषा में उसे बोर्ड में अव्वल स्थान मिला था। लड़की ने काफी एड़ियां रगड़ने बाद भी इंजीनियरिंग की प्रवेश परीक्षा में वो औने-पौने अंक प्राप्त कर सकी थी। उसे किसी इंजीनियरिंग कॉलेज में प्रवेश नहीं मिल रहा था। घर के सभी सदस्य अपना सा मुंह लेकर रह गये थे। फिर भी उन्होंने अभी उम्मीद नहीं छोड़ी थी। अपनी पगड़ी अपने हाथ में होती हैं। सभी मित्रगण और रिश्तेदार उन्हें सलाह दे रहे थे कि उनकी बिटिया को इंजीनियरिंग में प्रवेश मिलना असंभव हैं, इंजीनियरिंग में प्रवेश अगर गलती से मिल भी गया तो वो इंजीनियरिंग कर नहीं पाएगी। ऐसा करके परिवार अपने पांव पर आप कुल्हाड़ी मरेंगे। उसे अन्य क्षेत्र में प्रयास करना चाहिए। ऐसी सभी की एक रय थी। जो अटकेगा सो भटकेगा, ये सोचकर माता-पिता अंत तक प्रयास करते रहे। सभी जगहों से नाउम्मीद हो रहे थे।

    सब्र का फल मीठा होता हैं। खुदा मेहरबान तो गधा पहलवान। अंत में एक केमिकल इंजीनियरिंग कॉलेज के कुछ छात्रों ने बेहतर विकल्प मिलने के कारण अपनी अ‍ॅडमिशन निरस्त की थी। अंतिम दौर चल रहा था। उस कॉलेज में स्पॉट अ‍ॅडमिशन में उसे मौका मिला था। फिर भी सभी की राय थी कि उसके मात-पिता अपना झूठा सिक्का बेकार में चलाने का प्रयास कर रहे हैं। वे अपनी लड़की का कैरियर खराब करने जा रहे हैं क्योंकि वो उलटी गंगा पहाड़ चली जैसा कार्य करने निकल पड़ी थी। उसी वक्त उसके पिता की उसी शहर में तबादला हुआ था। अब पूरा परिवार विभक्त हो चुका था। वो लड़की और पिता एक शहर में और माता व दूसरी छोटी लड़की दूसरे शहर में एक दूसरे से काफी अंतराल पर रहने लगे थे। कुछ पाने के लिए कुछ खोना भी पड़ता है। बिना खोये और बिना परिश्रम से किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता।

      बड़ी जद्दोजहद के बाद उसे इंजीनियर बनाने का मौका मिला था। अभी उसे अपनी श्रेष्ठता दिखाने का अवसर प्राप्त हुआ था। जिन लोगों ने उसका और उसके माता-पिता का मजाक उड़ाया था उन्हें मुंह तोड़ जवाब देने की जिम्मेदारी उसकी थी। आपदा में जब अवसर मिलता हैं तभी उस अवसर को सफलता में बदलने का मौका होता हैं। उसे जिस विषय से बहुत एलर्जी थी। वह विषय गणित उसकी शाखा में नगण्य था। उसने जी-जान लगाकर बहुत कड़ी मेहनत की और अच्छे अंको से केमिकल इंजीनियरिंग में स्नातक हुई थी। अंत भला तो सब भला। उसके के आधार पर उसे एम. बी. ए, में अच्छे कॉलेज में दाखिला मिला था। एम.बी.ए. के बाद उसे अच्छी कंपनी में जॉब मिला था। अंग्रेजी पर प्रभुत्व और ऑल-राऊंडर व्यक्तित्व विकसित करने के कारण उसे शीघ्र ही मोटे तनख्वाह वाली शासनात्मक पद कंपनी में मिला था। तभी उसे अनुभव और काबिलीयत के बदौलत किसी भी कंपनी जॉब मिल जाता था।

       उसकी शादी एक बहुत सुंदर सरकारी संस्थान में वैज्ञानिक पद पर कार्यरत लड़के से हुई थी। वो अपने जिंदगी से काफी खुश थी। उसे एक लड़की हुई थी। जो पिता के समान बहुत सुंदर थी। तभी उसके हौसले काफी बुलंद हो चुके थे। वो तब किसी के लिए काम नहीं करना चाहती थी। वो नौकर नहीं मालिक बनना चाहती थी। निकट भविष्य में वो अपनी खुद की कंपनी खड़ी करना चहती थी ताकि वो स्वयं दूसरों को रोजगार दे सके !। अगर वह कुछ करने की जिद छोड़ देती तो आज जिस मंजिल पर वह खड़ी थी या निकट भविष्य में खड़ी होने वाली थी। इसकी कल्पना भी करना नामुमकिन था। उसने आपदा में मिले अवसर को सफलता में तबदील किया था। मेहनत करनेवालों का साथ हमेशा भाग्य देता हैं। लेकिन भाग्य लेकर आनेवाले जरूरी नहीं की वो बिना मेहनत के सफलता हासिल कर सके !।


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