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Gita Parihar

Tragedy

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Gita Parihar

Tragedy

आप की स्मृति में अंकित हो ऐसा

आप की स्मृति में अंकित हो ऐसा

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जब वर्ल्ड वाइड फंड फोर नेचर द्वारा जारी एक विज्ञप्ति को मेरे मित्र ने खत द्वारा मुझे सूचित किया कि गंगा, विश्व की सबसे अधिक संकटग्रस्त नदियों में से एक है और कि लगभग सभी दूसरी भारतीय नदियों की तरह गंगा में लगातार पहले बाढ़ और फिर सूखे की स्थिति पैदा हो रही है। तब मुझे वह दिन याद आए जब हम ऋषिकेश और हरिद्वार छुट्टियां मनाने गए थे और दोनों जगह गंगा पवित्र जल से लबालब भरी हुई थी।

आज गंगा ऋषिकेश से ही प्रदूषित हो रही है। कारण क्या है ? कारण है, गंगा के किनारे लगातार बसायी जा रही बस्तियां चन्द्रभागा, मायाकुंड, शीशम झाड़ी जहां शौचालय तक नहीं है, इसलिए यह गंदगी गंगा में मिल रही है।

इसके अलावा पिछले कुछ वर्षों में पर्यटन को बढ़ावा मिलने के कारण पर्यटकों और दर्शनार्थियों की बढ़ी हुई आमद भी पर्यावरण प्रदूषण का एक प्रमुख कारण है। इनके द्वारा अर्पित श्रद्धा सुमन पर्यावरण के लिए विकट समस्या बन गए हैं।

एक अनुमान के अनुसार 800 मिलियन टन फूल जिनमें गुलाब और गेंदे शामिल हैं, प्रतिदिन मंदिरों मस्जिदों और गुरुद्वारों में चढ़ाए जाते हैं। इसके साथ सिंदूर ,प्लास्टिक की अगरबत्ती और प्लास्टिक की चूड़ियां यह सब कचरे के ढेर में बदलता है। यह नदियों के लिए समस्या और ख़तरा बन रहा है। कारखानों के रासायनिक अपशिष्ट भी पर्यावरण के दोषी हैं। 


ऐसे में नदियों की अस्मिता को बढ़ते प्रदूषण से बचाने के लिए किस तरह के प्रयास किये जाएं कि जनजागरण फैले। गर्मियों में जल के लिए मार -पीट होती है, इसे हम न भूलें। नेताओं के सम्मान के लिए पुष्प गुच्छ दिए जाते हैं वह न देकर पौधा दें, तो वृक्षारोपण बढ़ते जल के क्षरण को रोकने के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण में भी सहायक होंगे। सबकी प्रदूषण रोकथाम में सहभागिता सुनिश्चित होनी चाहिए। सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड को स्पष्ट निर्देश जारी करने चाहिए।


नदिया हमारा इतिहास हैं, वर्तमान है और भविष्य भी इन्हीं से है। शुरुआती सभ्यताएं नदियों से ही जुड़ी हैं। नदियों से नहरें खींचकर हमने शहरी सभ्यता को जन्म दिया, परंतु प्राचीन काल में नदियों से ही देश की समृद्धि और उन्नति तय की जाती थी। नदियों ने जहां धर्म, संस्कृति और साहित्य को जन्म दिया, वहीं वे आदिकाल से आर्थिकता का आधार भी रही हैं। 


आदिकाल से हमारे देश में नदियों का सम्मान कई तरह से किया जाता रहा है। अपने देश के कई पर्व जैसे कुंभ, छठ पूजा, गंगा स्नान मुख्यत: नदियों से जुड़े हैं। मान्यताओं के अनुसार मृत्यु के बाद मुक्ति नदियों से ही मिलती है, इसलिए मनुष्य के अंतिम अवशेष नदियों में ही प्रवाहित किए जाते हैं।


जहां स्वच्छता होती है वहां ईश्वर का वास होता है,नदियों में हम माँ देखते हैं, उनकी पूजा करते हैं, ईश्वर रूपी जलनीधियों को कैसे अस्वच्छ रख सकते हैं? इस पत्र ने मुझे जल संरक्षण मुहिम से जोड़ दिया है मेरा हर संभव प्रयास रहता है कि जल का अपव्यय ना हो।





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