Brijlala Rohan

Classics Fantasy Inspirational

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Brijlala Rohan

Classics Fantasy Inspirational

आखिरी प्रयास

आखिरी प्रयास

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अंजलि इस बार भी बहुत कम अंकों की कमी से परीक्षा में असफ़ल हो गई। यह उसका तीसरा प्रयास था । वह बार - बार मिलती असफलताओं से काफी टूट चुकी थी । निराश अकेली बैठकर रोये जा रही थी । कभी अपने मेहनत की कमी को तो कभी अपनी भाग्य को मन - ही - मन कोस रही थी । 

उसका एक दोस्त था जो उसे हर बार टूटने पर अंदर से उसे प्रोत्साहित करता था । वे एक - दूसरे के अच्छे दोस्त थे । एक बात उसमें खास थी कि वह ऐसी प्रेरणादायी बातें बोलता था ,ऐसी असहाय,असफ़ल लोगों की सफलता की उदाहरण सुनाता कि जिसे सुनकर मुर्दा भी उठकर जीने को आतुर हो जाये ! 

उसे इसे इस बात की जानकारी उसकी प्रेमिका आसमां ने बताई जो कि उसकी ( अंजलि) बहन थी ।इसपर वह दौड़ा - दौड़ा उसके पास चला आया । उसे अपने पास आये देखकर पहले तो उसे यकीन नहीं हुआ ,फिर बाद में अपने आँसुओं को छिपाने की कोशिश करते हुए खुद को समान्य दिखाना चाहती । लेकिन उसकी आँखें नजारे साफ बयां कर रही थी । उसने उसके आँसु पोंछे । और पहले तो उसे कुछ अपने साथ लाये हुए सुखे मेवे को खिलाया और तब उसे पानी पिलाकर उससे कहा कि मैं आपके सामने आज एक  भविष्यवाणी करूँगा कि आप अपने आखिरी प्रयास में सफल होंगी कि नहीं । मैंने ज्योतिष शास्त्र की शिक्षा ग्रहण की हुई है । ये सुनकर अंजलि तो पहले हिचकचाई और सोची ये आज क्या बोल रहा है ? दिमाग ठीक है न इसका ! दूसरों को मेहनत करने की सिख देने वाला आज भाग्य- भरोसे है ! लेकिन वो उसकी परम विश्वसनीय मित्र था सो सोची जो भी कहा है आजतक सब मानी ही है ! तो अब इसमें मानने में क्या हर्ज है ! आखिर अपना मित्र है कुछ सोच- समझकर ही कर रहा होगा !

 उसने अंजलि से कहा कि देखो मैं एक सिक्का उछालुँगा यदि सिक्के में तीनों बार हेड ( चित) आया तो तुम आखिरी बार अवश्य सफल होगी ( यह उसकी आखिरी (अटेम्पट) प्रयास था । वह राजी हो गई बोली ' ठीक है ! 

संयोग से तीनों बार चित यानि हेड ही आया अंजलि काफी अंदर से जो टूटी थी ,उसमें एक नई जान आ गई। वह बिना निराश हुए, परिणाम की चिंता रत्तीभर भी न करते हुए सतत् परिश्रम करने में जुट गई।  

फिर कुछ महीने बाद परीक्षा आती है । वह उत्साहपूर्वक सारे पेपर पूरा करती है । 

आज परिणाम भी आ गई, और अंजलि परीक्षा में न सिर्फ सफल होती है बल्कि परीक्षा में अच्छा स्थान भी लाती है । वह सबसे पहले दौड़ी - दौड़ी अपने दोस्त अनुज्जल के पास पहुँचती है और यह सफलता की खुशखबरी सुनाती है । अनुज्जल के आँखों से खुशी के मोती झर पड़ते हैं । वह उसे पोंछते हुए बोलती है कि रो मत पगले ! तेरी दोस्त आज सफल हो गई है ।उस दिन तुम मेरी भविष्यवाणी न करते तो न मैं दोबारा परीक्षा देती न तुम मुझे आज सफल देखते ! वह जेब से सिक्का निकालते हुए बोला कि देखो मैंने रही भविष्यवाणी की थी । वह सिक्के को देखकर हतप्रभ हो गई! बोली इसमें तो दोनों तरफ हेड ही है ! यानि तुमने मुझे उस दिन बेवकूफ बनाया । नहीं ! पगली ! मैं तो तुम्हें यही बताना चाहता था कि तुम्हारा आखिरी प्रयास बाकी था ! तुम्हारी सफलता की स्वर्णिम विजय - गाथा गाना बाकी था !


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