आजादी की वापसी
आजादी की वापसी


अलसायी आंखों से सिटकनी खोल , किवाड़ उड़का कर मैं बाहर आ गया। आज की सुबह कुछअलग थी। पूरब में पुरवई के साथ अठखेलिया करने वाला सूरज अभी से तन को झुलसा रहा था। हौले हौले झूमने वाला सामने का पेड़ अपनी दोनों बाहे नीचे कर किसी गहन पीड़ा को अभिव्यक्त कर रहा था। कचनार के फूल मायूस थे। कनेर की मीठी महक में एक कसैलापन था जो पूरी आबोहवा को कड़वा बना रहा था। प्रात : की संगी साथी उमंग उत्साह जोश खरोश से भरी भाव। भंगिमाएं नदारद थी।
सामने ' पान की दुकान पर चुना लगाता मुहम्मद आज 'रेडियो के - गाने के साथ तेज सुर में अलाप नही लगा रहा था मानो उसकी जुबा पर सौ ताले जड दिए गए हो। गली में मेले सा रहने वाला माहौल असफल मेले के आखिरी दिन सा लग रहा था। कोने की दुकान पर मुन्नू उछल उछल कर चाय समोसा। चाय नही चिल्ला रहा था। शायद उस की अल्हड़ता बैंच के पीहे डर कर कहीं दुबक गयी थी।
दूर कही से उसे ' बूटों की आवाज , सुनाई दे रही थी आवाज के पास आने के साथ। साथ सनसनी वैसे ही बढ़ती जा रही थी जैसे जंगल में लगातार पास आ रहे शेर को देख कर रहगीरो की सांसें धौंकनी सी चलती है। परन्तु वे पूरे प्रयास से उन्हें काबू में रखने की असफल कोशिश करते हैं।
एक बच्चा कही से किसी गली से माँ माँ कहता भागता आता है और कोने की दूसरी गली मे घुस जाता है। वह रुदन क्यों कर रहा था? उस की माँ कहाँ चली गयी थी ? ये प्रश्न ' अनुत्तरित ही रह जाते हैं।
किं कर्तव्य विमूढ सा वह दो सीढी नीचे। उतर सड़क पर आजाता है। सड़ाक। --- - हाय भगवान। एक कदम पीछे न हटता तो झन्नाटा हुआ चाबुक उसकी कनपटी के नीचे अपना निशां छोड़ गया होता। --- वह गिर पड़ता है, उठता है, गिर उठ कर भागता हुआ देहरी तक पहुंचता है। कूदकर दहलीज़ लांघ कर वह घर में दाखिल हो जाता है। खट्ट। से दरवाजे में कुंडी चढा कर धम्म से उसी दरवाजे से टेक लगा नीचे जमीन पर बैठ जाता है।
वह जोर जोरसे हकारे लेकर रोता है फिर डरकर धीरे धीरे अपनी आवाज़ को और धीरा करने की जद्दोजहद में लग जाता है। कानो में गूंजती कोड़ो की आवाज़ उस के दिलो दिमाग को सुन्न कर देती है। वह अपने दोनों हाथो से अपने मुँह को बंद कर अपनी ही आवाज को दबाने की कोशिश में लग जाता है '। आवाज़ धीरे होती जाती है ' रोना सिसकियों व हिचकियों में बदल जाता है। धीरे धीरें उसके भीतर से आती घुटी घुटी आवाज़ उसे ही बडी मुश्किल से सुनाई देती है। उसका बेटा लगातार उसे हि ला कर पूछता है पापा। पापा क्या हुआ ? वह फिर उसे जोर से हिलाता है उसकी आंखें खुल जाती हैं ' भौचक -- -- वह इधर उधर निहारता है ' ओ ह भया न क स्वप्न।. माथे पर छल छला उठी पसीने की बूदों को धीरे से पोंछ कर वह लंबी सांस लेता है।
तभी छोटा बेटा मोनू उससे प्रश्न करता है पापा - कल विद्यालय में पन्द्रहअगस्त ( स्वतंत्रता दिवस) के कार्यक्रम हैं ' वैन नही आएगी 'आप मुझे स्कूल छोड देंगे ?
हाँ ' बेटा। क्यों नहीं चलेंगे। तुम झण्डा। बैच ' सब। ले लेना
रसोईघर से झांकते हुए पली ने मुंह सिकोडा आप तो कह रहे थे एक दिन छुट्टी का मिला है , देर तक सोएगें ?
नहीं, रूपा। आजादी बड़ी। कीमती शह ' होती है इसे सेलीब्रेट जरूर करना चाहिए और हाँ। कल घर में मी ठा जरूर बनाना। उसने एक जोरदार ठहाका लगा कर खुद को सांत्वना दी। उसकी सपने में खोई आजादी की वर्तमान में वापसी हो गयी थी।