Prafulla Kumar Tripathi

Abstract

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Prafulla Kumar Tripathi

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आघात..समय के !

आघात..समय के !

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      मुम्बई की फिल्मी दुनियां के चल रहे भाई भतीजावाद , ड्रग , डबल मर्डर मिस्त्री आदि जैसे घमासान के बीच प्रोड्यूसर माही को दूरदर्शन से मालगुडी डेज़ नामक एक सीरियल बनाने का ऑफर मिल गया | उसे उन्होंने अपनी एक छोटी टीम के हवाले किया और अब वे अपने मुख्य प्रोजेक्ट बायोपिक फीचर फिल्म "लव , गेम , और मर्डर " पर अपना ध्यान देने लगे हैं |     किसी ने क्या खूब कहा है कि सूर्योदय और सूर्यास्त हमें बताता है कि जीवन में कुछ भी स्थाई नहीं है, इसलिये हमेशा खुश रहें एवं जीवन की यात्रा का भरपूर आनंद लें...!     इन दिनों फिल्म की स्क्रिप्ट का काम फाइनल स्टेज पर है | प्रोड्यूसर ,स्क्रिप्ट राइटर,डाइरेक्टर,कैमरामैन आदि की टीम की मीटिंग के दौर चल रहे हैं | फिल्म की शुरुआत में टाइटिल आदि के साथ एक भारी भरकम किन्तु आकृष्ट करने वाली आवाज़ गूंजती है..." मोदी जैसा दोस्त और बेहतरीन शख्स मिलना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन भी है ...देश ने आज से लगभग 32 साल पहले खो दिया था ये अनमोल हीरा...और मैनें ?....मैंने , एक... एक हर दिल अज़ीज़ दोस्त ! "इसके साथ साथ स्क्रीन पर 32 साल पहले की घटना दिखाई जायेगी .. 28 जुलाई 1988 .....लखनऊ के के.डी. सिंह बाबू स्टेडियम के पास की एक दुकान पर सैय्यद मोदी एक मशहूर बैडमिंटन खिलाड़ी पर चल रही ताबड़तोड़ गोलियां .. घटनास्थल पर ही उसकी मौत..पुलिस की सायरन बजाती जीप..अफ़रातफ़री..

     अब नेताजी सुभाष नेशनल इंस्टीटयूट ऑफ स्पोट्र्स (एन.आइ.एस.) पटियाला पर फोकस हो रहा कैमरा....सैयद मोदी के दोस्त आनंद का मन शाम के बाद काफी बैचेन है .....उसको ..उसको यह  समझ नहीं आ रहा था कि ऐसा क्यों है ? डिनर के बाद वह सभी के साथ सोने चला जाता है । लेकिन रात को करीब तीन बजे किसी ने जोर से हास्टल के कमरे का दरवाजा खड़खड़ाया तो उसकी अनहोनी की आशंका ने फिर सिर उठा लिया । उसने दरवाजा खोला तो सामने पुलिस खड़ी ! कुछ देर तक तो माजरा समझ में नहीं आया ! पंजाब पुलिस के एक अधिकारी उससे पूछते हैं कि क्या आप ही आनंद खरे हैं ?उसने जवाब हां में दिया तो उन्होंने जो वाक़या बताया वो वाकई स्तब्ध करने वाला था। उन्होंने बताया कि लखनऊ में शाम को के.डी .सिंह बाबू स्टेडियम के गेट पर मशहूर बैडमिंटन खिलाड़ी सैयद मोदी की गोली मार कर हत्या कर दी गई है ।

     अगले दिन एन.आइ.एस. पटियाला में प्रतिदिन सुबह छह बजे होने वाली होने वाली एसेंबली के बाद आनंद को बताया जाता है कि उसको शीघ्र लखनऊ जाना होगा जहां उससे भी पूछताछ की जाएगी। " लेकिन.... लेकिन मैं ... मैं तो आज ही गोरखपुर सैयद मोदी के अंतिम संस्कार में शामिल होने जा रहा हूं.... उसके बाद ही मैं किसी भी तरह की जांच में सहयोग दे सकूंगा..... "वह मन ही मन बोल उठता है |      दृश्य बदलता है और कैमरा गोरखपुर की राप्ती नदी से होता हुआ रेलवे स्टेडियम पर फोकस हो रहा है जहां आनंद अपने दोस्त ,अपने जिगर के टुकड़े सैयद मोदी को कफन में लिपटा देखकर फफक कर रो रहा है ..उसके शव से चिपक रहा है उसे अब भी यह यकीन कर पाना मुश्किल हो रहा है कि उसका दोस्त नहीं रहा.....।..उसके साथ कितनी - कितनी तो यादें जुड़ी थीं उसकी ... सैयद मोदी 1982 में गोरखपुर से लखनऊ आए तो वह बतौर जूनियर खिलाड़ी वहीं पर अभ्यास करता था ।वह बेहद खुश था कि उसे इतने बड़े खिलाड़ी के साथ अभ्यास करने का मौका मिलेगा । वह जल्दी ही सबके साथ घुल- मिल गए । आनंद के साथ तो उनका लगाव इतना ज्यादा हो गया था कि या तो वह उनके घर पर होता था या वह उसके घर . रात में सात-आठ घंटे की नींद के अलावा उन दोनों का ज्यादातर समय साथ गुजरता था ।      

अब आगे कैमरा जूम करते हुए एक स्कूटर यू.एम.आर . 2616 पर जाता है .." .हां,हां यही तो है वो स्कूटर जिसे मैंने खरीदवाया था...... जिस पर वो हादसे वाले दिन स्टेडियम से अपने घर वापस जा रहे थे...... ये स्कूटर और और उसका नंबर मुझे आज भी याद है.....ग्रे कलर का यही तो था वो स्कूटर !" आनंद मन ही मन बुदबुदा उठता है !        

शायद इसीलिए इस घटना के बाद जब खोज हुई कि आखिर उनके दोस्तों में कौन सबसे करीबी हैं तो सबने उसी का नाम लिया था । यू.पी.पुलिस को सैयद मोदी की हत्या के पीछे का 'मोटिव ' समझ में नहीं आ रहा था । उसे लग रहा था कि शायद किसी करीबी से कोई ऐसा सिरा मिल जाए जिससे केस की कड़ियां सुलझतीं जाएं । सभी तो चिंता में हैं कि आखिर सैयद मोदी की किससे दुश्मनी हो सकती है ?...किससे?       

कैमरा फ्लैश बैक में ... 1982 कॉमनवेल्थ गेम्स में स्वर्ण पदक जीतने की घोषणा के बाद उपस्थित दर्शकों के तालियों की करतल ध्वनि.. स्टेडियम में लहरा रहा तिरंगा.. ...और उसी साल एशियन गेम्स में सैयद मोदी के कांस्य पदक के भी विजेता होने की घोषणा.... 1980 से लेकर उसका लगातार आठ बार नेशनल चैंपियन भी बनना..बनते ही रहना...      आनंद सैयद मोदी की हत्या के समय एन.आइ.एस. पटियाला में कोचिंग का कोर्स कर रहे थे और उन्हें बेसब्री से प्रतीक्षा थी 18 अगस्त की जिस दिन से वहीं तीन माह लंबा नेशनल कैंप लगने वाला था, जिसमें सैयद मोदी को भी आना था..... सैयद मोदी ने उससे कहा था कि वो कैंप में आएंगे तो फिर साथ साथ रहेंगे..... लेकिन वो दिन तो आया नहीं आया.      कहानी का सिरा आगे बढ़ता है ....लखनऊ.. सैयद मोदी की हत्या का मामला सुलझाने के लिए केस पुलिस से सी.बी.आई. को ट्रांसफर हो जाता है और फिर सी.बी.आई .की जांच पड़ताल के दौरान आनंद से पूछताछ और उसका जांच एजेंसी को अपने दोनों की तमाम तस्वीरें और कैसेट सौंपना.. आनंद का एक डायलॉग..." मुझे उनका एक वादा अभी तक याद है जो मेरे कोचिंग का कोर्स करने के लिए पटियाला जाने से पहले उन्होंने किया था...कि वह (सैयद मोदी) और मैं अपने खिलाड़ी जीवन गुजारने के बाद लखनऊ में एक बैडमिंटन अकादमी खोलेंगे और बच्चों को तैयार करेंगे...... मैं कोच तो बन गया, लेकिन हमारा एक साथ अकादमी चलाने का सपना पूरा नहीं हो सका"...कैमरा फिर से दृश्य बदलता है...सैयद मोदी का अपने परिवार के खिलाफ जाकर दूसरे धर्म की अमिता से शादी की थी।...1984 में इस शादी का हाशिये पर आ जाना कारण ,  उसी साल अमिता की मुलाकात अमेठी के राजा और विधायक संजय सिंह से होना ..अजीब बात है अपनी पराकाष्ठा पर थी अमीता और शीर्ष पर थे सैयद...दोनों जिस तेज़ी से पास आये , उतनी ही जल्दी दूर होने में है ...दोनों की शादी को काफी वक्त बीत चुका था, लेकिन करियर बनाने के चक्कर में अमिता ने मां बनने से इनकार कर दिया था..उधर फेमिली फ्रेंड बन चुके संजय सिंह से मुलाकात के बाद सैयद मोदी को यह शक होने लगा कि उनका अमिता के साथ अफेयर चल रहा है।....अपने पति को और जलाने के लिए अमिता एक डायरी में संजय सिंह के साथ रोमांस की डिटेल्स भी तो लिखा करती थी।..और जब वो घर से बाहर होती, तो मोदी चुपके से उसकी डायरी पढ़ते और दुखी होते।....1987 में अमिता ने सैयद मोदी को बताया कि वो मां बनने वाली है। आमतौर पर यह बात जानकर आदमी खुश होते हैं, लेकिन मोदी के चेहरे पर उदासी थी।उदासी ही नहीं ...सैयद मोदी को शक था कि अमिता उनसे नहीं, बल्कि संजय सिंह से प्रेग्नेंट है। और ...  28 जुलाई 1988 का दिन सैयद मोदी की जिंदगी का आखिरी दिन साबित हुआ।तब मोदी का करियर पीक पर था।....राइजिंग स्पोर्ट्स स्टार सैयद मोदी  मर्डर के पीछे उनकी वाइफ और संजय सिंह का हाथ होने का शक पैदा हुआ तो हुआ ,कोर्ट कचहरी मामला गया तो गया ...आखिर सबूत पक्ष अपना आरोप सिद्ध कर पाए तब तो ? ...अंततः यह आरोप साबित नहीं हो पाया और ..और सैयद मोदी की प्रेमिका पत्नी ने ,  अमिता ने पहले से शादीशुदा रहे संजय सिंह से ही शादी कर ली ।पर्दे पर एक बार फिर यह डायलाग फेड इन होता हुआ ..."तुम से बिछड कर भी तुम्हे भूलना आसान न था,तुम्ही को याद किया, तुमको भूलने के लिए।"और अब म्यूजिक डाइरेक्टर और सांग राइटर नीरज जी के इस गीत पर विचार करने में व्यस्त हो गए हैं;


"हम तो मस्त फकीर, हमारा कोई नहीं ठिकाना रे।जैसा अपना आना प्यारे, वैसा अपना जाना रे।रामघाट पर सुबह गुजारी,प्रेमघाट पर रात कटी |बिना छावनी बिना छपरिया,अपनी हर बरसात कटी|देखे कितने महल दुमहले, उनमें ठहरा तो समझा,कोई घर हो, भीतर से तो हर घर है वीराना रे।|औरों का धन सोना चांदी,अपना धन तो प्यार रहा|दिल से जो दिल का होता है,वो अपना व्यापार रहा|हानि लाभ की वो सोचें, जिनकी मंजिल धन दौलत हो!हमें सुबह की ओस सरीखा लगा नफ़ा-नुकसाना रे।|कांटे फूल मिले जितने भी,स्वीकारे पूरे मन से |मान और अपमान हमें सब,दौर लगे पागलपन के|कौन गरीबा कौन अमीरा हमने सोचा नहीं कभी,सबका एक ठिकान लेकिन अलग अलग है जाना रे।|सबसे पीछे रहकर भी हम,सबसे आगे रहे सदा|बड़े बड़े आघात समय के,बड़े मजे से सहे सदा!दुनियाँ की चालों से बिल्कुल, उलटी अपनी चाल रही,जो सबका सिरहाना है रे! वो अपना पैताना रे! !"--------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------



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