Dr. Chanchal Chauhan

Action Inspirational Children

3.5  

Dr. Chanchal Chauhan

Action Inspirational Children

आगे की होड़ में वजूद ना खो जाय

आगे की होड़ में वजूद ना खो जाय

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प्रतिस्पर्धा में आए पर अपना वजूद ना खो जाए। 

यह लेख उन अभिभावकों को समर्पित है जो सिर्फ़ बच्चों में अत्यधिक दौड़ को रोप रहे है।


आज के दौर में आगे निकलने की दौड़ में कई लोग अपना वजूद खो देते हैं जो उनके पास है उसे स्वीकार ही नहीं कर पाते । प्रतिस्पर्धा की दौड़ में सिर्फ आगे और आगे । हर माता-पिता अपने बच्चे को ही प्रथम लाना चाहते हैं ।सभी बच्चों में कौशल होता है प्रतिभा होती है ।यह अलग बात है कि उनमें प्रतिभा अलग-अलग होती है जैसे कि कोई नृत्य में तो कोई गायन में तो कोई पढ़ने में तो कोई खेल में तो कोई चित्रकारी में तो कोई गृह के कार्यों में प्रखर होता है कुशल होता है। हर अभिभावक चाहता हैं कि उनका बच्चा हर काम हर प्रतिभा में प्रथम आए।

प्रतिभाओं का बीजारोपण कर उन्हें विकसित होते देखे व उन्हें तराशे ।


वास्तव में हमें अपने बच्चे की प्रतिभा को देखना चाहिए कि वह किस क्षेत्र में अच्छा है उसकी प्रशंसा करनी चाहिए। ना कि उस पर इतना दबाव बनाएं या उसको एक बोझ दें कि वह अवसाद में चला जाए ।पहले तो अवसाद का किसी को पता ही नहीं था पर आज आज इसने इतना विकराल रूप धारण कर लिया है कि चाहे शहरों में हो या ग्रामीण क्षेत्र में हो बच्चे इससे अछूते नहीं रह पा रहे हैं ।शहरों में तो अधिकांश एक दूसरे से प्रतिस्पर्धा रखते हैं वह चाहे नौकरी में हो या कारोबार में हो या व्यवहार में हो । आगे निकलना तो अच्छी बात है लेकिन इसको अपने आप पर हावी ना होने दें ।अपनी हैसियत को देखकर ही कार्य करें ।जैसे कहा जाता है कि जितनी चादर उतने ही पांव पसारने चाहिए।

एक दूसरे की देखा देखी ना करें प्रतिभा सब में होती है यह अलग बात है कि कोई पहचान लेता है कोई नहीं पहचान पाता और कोई सिर्फ दौड़ में ही लग जाता है यह दौड़ अभी खत्म नहीं होती ।यही अवसाद का रूप धारण कर लेती है और यह कब हमारे लिए समस्या बन जाती है हमें इसका पता ही नहीं चलता ।और हम कब इस भाग दौड़ में शामिल हो जाते हैं ।जिसमें हम अपना समय पैसा और सुख चैन खो देते हैं। यह हमें सब तब समझ में आता है जब हम इस अवसाद से ग्रस्त हो घिर जाते हैं। बहुत लोग दिन रात मेहनत करते हैं ।कई तो अपने घर वालों के लिए भी समय नहीं निकाल पाते उनके पास परिवार के लिए भी बात करने का एक दूसरे से मिलने का भी समय नहीं होता है ।हमको कई वर्ष लग जाते हैं मंजिल तक पहुंचने में। कई बार तो हम सफल हो जाते हैं तो कई बार असफल भी हो जाते हैं ।और कब असफल हो जाते हैं तो हमें पता ही नहीं चलता । वास्तव में ऐसे लोग इस जमाने में प्रतिस्पर्धा की दौड़ में होते हैं। इसलिए जरूरत से ज्यादा सोचते रहते हैं। अत्याधिक सोचना ही उन्हें अवसाद की तरफ ले जाता है ।ऐसे लोग जिन्हें दूसरों से ज्यादा कमाना होता है । कमाए पर अपने जीवन पर उसे हावी ना होने दें आखिर हमे जो मिला है हम उस में खुश क्यों नहीं रहते ???

विचार जरूर कीजिएगा।



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