बदलती सोच
बदलती सोच
आज का युग बदलता परिवेश परिवर्तित होती सोच इस आधुनिक युग में हमें कहाँ ले जा रही है?
कहते है कि जैसी सोच हम रखते है वही हमारे साथ घटने लगता है ।
रोजाना की तरह मैं मंदिर गई वहाँ दो मित्र मंदिर के चबूतरे पर बातें कर रहे थे ।
एक ने कहा मेरी एक पोती है, शादी के लायक है । एक कम्पनी में नौकरी करती है । सुंदर है ।
कोई लड़का नजर में हो तो बताइएगा ।
दूसरे मित्र ने कहा आपकी पोती को किस तरह का परिवार चाहिए।
कुछ खास नहीं, बस लड़का ME /M.TECH किया हो, अपना घर हो, कार हो, घर में एसी हो, अपने बाग बगीचा हो, अच्छा job, अच्छी सैलरी हो पहले मित्र ने कहा। और कुछ, बड़े विस्मयादि भाव से दूसरे मित्र ने कहा। हाँ सबसे जरूरी बात कि वह अकेला होना चाहिए। मां-बाप, भाई-बहन नहीं होने चाहिए ।
वो क्या है लड़ाई झगड़े होते है। पहले मित्र ने कहा ।
दूसरे बुजुर्ग मित्र की आँखें भर आई फिर आँसू पोंछते हुए बोला - मेरे एक दोस्त का पोता है उसके भाई-बहन नहीं है। मां बाप एक दुर्घटना में चल बसे ।अच्छी नौकरी है। लाख सैलरी है, गाड़ी है बंगला है, नौकर-चाकर है ।
पहला मित्र बोला तो करवाओ ना रिश्ता पक्का ।
दूसरा मित्र बड़े ही असहज भाव से बोला मगर उस लड़के की भी यही शर्त है कि लड़की के भी मां-बाप, भाई-बहन या कोई रिश्तेदार ना हो।
कहते कहते उन बुजुर्ग का गला भर आया फिर बोले अगर आपका परिवार आत्महत्या कर ले तो बात बन सकती है। आपकी पोती की शादी उससे हो जाएगी और वो बहुत सुखी रहेगी ।
पहला मित्र बोला ये क्या बकवास है। हमारा परिवार क्यों करे आत्महत्या। कल को उसकी खुशियों में, दुःख में कौन उसके साथ व उसके पास होगा ।
दूसरा मित्र बोला वाह मेरे दोस्त खुद का परिवार, परिवार है और दूसरे का कुछ नहीं । मेरे दोस्त अपने बच्चों को परिवार का महत्व समझाओ। घर के बड़े घर के छोटे सभी अपनो के लिए जरूरी होते है । वरना इंसान खुशियों का और गम का महत्व ही भूल जाएगा । जिंदगी नीरस बन जाएगी।
पहले वाले बुजुर्ग मित्र बेहद शर्मिंदगी के कारण कुछ नहीं बोल पाए ।
परिवार है तो जीवन में हर खुशी, खुशी लगती है । अगर परिवार नहीं तो
किससे अपनी खुशियाँ और गम बांटोगे ।
ऐसी बदलती सोच जो अपनों के लिए कुछ और और दूसरों के लिए कुछ और हो तो ऐसी सोच को बदल देना चाहिए ।