आग- लघुकथा
पूरे घर में उत्सव का माहौल था। केशव के शादी के पूरे छ: माह बाद पहली होली पर घर आने से सब में दुगुना उत्साह था।
केशव के घर में प्रवेश करते ही, उसकी माताजी ने खुशी से उसकी बलैय्या लेते हुए कहा - "बेटा तैय्यार होकर बहू के साथ होलिका दहन की पूजा पूरी कर, प्रसाद ग्रहण करना।
"हाँ, माँ!" कहकर केशव अपनी पत्नि के साथ पूजा स्थल पर पहुँचकर, पूजा संपन्न कर ही रहा था, कि केशव के पिता ने भारी मन से सूचना दी- "केशव तुम्हारा आर्मी कैंप से फोन आया है। तुम्हे तुरंत बुलाया है।"
किसे पता था, कि केशव के आने की खुशी को जीने से पहले ही उसकी विदाई का दुःख दस्तक देगा।
होलिका दहन के सामने शांति से पूजा करता हुआ केशव अभी तक बुराई पर अच्छाई की विजय की कामना कर रहा था, कि अचानक अशांत भाव से धधक उठा, मानो आग उसे बाहर से अधिक अंदर महसूस हो रही हो, जो उसे सीमा पर दुश्मनों के छक्के छुड़ाने के लिए बेचैन कर रही हो।
केशव ने अभी तक सूटकेस भी नहीं खोला था, सबसे अच्छे से मिला तक नहीं था और बस चल दिया अपना सामन बाँधकर भारत माँ की पुकार पर अपनी माँ का आशीर्वाद लेकर।