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Hansa Shukla

Tragedy

4.3  

Hansa Shukla

Tragedy

आदि

आदि

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आदि अर्थात आरंभ। लेकिन मैं सोचती हूँ कहाँ से शुरू करूं। आदि मेरी सहेली चंचल, नटखट और खुबसुरत, वह स्कूल में मेरे साथ पढ़ती थी। उसके पापा राजमिस्त्री थे बहुत पैसे वाले तो नही लेकिन अच्छा रहन सहन था, आदि कक्षा में पूरे समय शरारत करते रहती कक्षा में टीचर के होने पर काॅपी के पीछे आड़ी-तिरछी लाईन खिंचती, ड्राईंग बनाती, पकड़े जाने पर बड़ी मासूमियत से टीचर से माफी मांग लेती टीचर भी ये अच्छे से समझ गए थे कि आदि शैतान है, पर बदतमीज नही। कक्षा में किसी की सहायता करनी हो या टीचर का कोई काम हो आदि हमेशा आगे रहती। 

सब सहेलियाँ अपने भविष्य की बात करती तो कोई कहती मैं टीचर बनूंगी, कोई बैंक में नौकरी कोई पी.एस.सी. परीक्षा से सरकारी नौकरी तो कोई मल्टीनैशनल कम्पनी में काम करने की इच्छा जाहिर करती, और आदि हाँ आदि, कहती मैं कोई जाॅब नही करूंगी मैं तो मेरे पापा की राजकुमारी हूँ, मैं जो चाहती हूँ मेरे पापा मेरी सभी इच्छाओं को पूरा करते है। मैं ग्रेजुएशन के बाद अच्छे लड़के से शादी कर लूंगी, मिया जी कमाएगें और मैं घर चलाऊँगी और हाँ जब समय मिले तुम सभी लोग से मिलने आया करूंगी तुम्हारे आॅफिस में, मेरे पतिदेव भी आॅफिस चले जाएगें तो मैं दिनभर खाली रहूूंगी मैं अपना ब्यूटीपार्लर खोल लूंगी, तुम लोग भी आ जाए करना कभी-कभी मेरे पार्लर में और सब खिल-खिलाकर हँसते। 

हमारी हँसी तो बरकरार रही लेकिन 'आदि ' की हँसी तो शायद कुछ पल के लिए थी। हम स्कूल में थे कि खबर आई कि उसके पापा की गाड़ी दुर्घटनाग्रस्त हो गई और वो बहुत गंभीर हालत में है, जल्दी अस्पताल जाना है। आदि क्लास से बदहवास सी निकली हम सब भी अस्पताल गए हर आँखें डाॅक्टर के चेहरे पर टिकी हुई थी। डाॅक्टर ने वही जवाब दिया जिसका हम सबको डर था, आदि के पापा को वो नही बचा पाए।

आदि के घर में सब रिश्तेदार जान-पहचान वालों की भीड़ लग गई। आदि घर में सबसे बड़ी थी, इन दस दिनों में उसे आभास हो गया कि अब घर की सारी जिम्मेदारी उसकी है, माँ तो जैसे बीमार हो गई दो छोटी बहनेें और एक भाई सबका ध्यान आदि को ही रखना था। समय निकलता गया महीने भर करीब तो घर का काम चल गया लेकिन धीरे-धीरे घर का नगद और बैंक की जमा राशि खत्म हो गई। ठेकेदारी का काम होने के कारण घर में किसी को पता नहीं था, कहाँ से कितना रूपये लेना या देना है। रूपए देने वाले तो नही आये लेकिन लेने वाले रोज दरवाजे पर खड़े हो जाते थे, आदि की माँ बेबसी से देखती और निरीह सी उनसे याचना करती थोड़ा समय और दे दीजिए भाई साहब हम आपका उधार वापस कर देगें। 

आदि को धीरे-धीरे एहसास हो गया कि अब उसे ही काम करना पड़ेगा, नही तो भूखे रहने की नौबत आ जाएगी। पहले कुछ ऑफिस में काम मांगने गई, वहाँ 9वी पास को कौन काम देता, कुछ आॅफिस में झाड़ू-पोछा और चाय बनाने का काम मिला  लेकिन काम का समय सवेरे 8 बजे से शाम 5 बजे तक और ऑफिस घर से बहुत दूर आदि को लगा इतने दूर आने जाने में तो उसके हाथ पैर टूट जाएगें क्या करें इसी ऊहापोह में घर की तरफ जा रही थी, तभी उसे कुछ याद आया की उसके घर से थोड़ी दूर पर बड़ी-बड़ी बिल्डिंग है शायद वहाँ काम मिल जाए। शाम को घर पहुंचती तो माँ कहती कुछ नहीं लेकिन उनकी आँखों में एक ही सवाल होता काम मिला क्या? आदि दूसरे ही दिन बड़ी बिल्डिंग पहुंच गई, एक अधेड़ उम्र की औरत ने पूछा क्या हुआ कैसे आई हो? घबराते हुए आदि ने कहा काम मांगने, औरत थोड़ी सख्त थी बोली कपड़े साफ करोगी आदि ने कहा जी। वह आदि को अपने घर ले गई कपड़े दिखाकर आदि को हिदायत देने लगी और कठोर आवाज में बोली महीने के तीन सौ दूँगी। पैसे कुछ कम तो लगे लेकिन काम की जरूरत थी सोचकर धीरे से बोली आंटी चार सौ देंगी क्या? महिला ने तेज आवाज में कहा तेरे को कौन सा घर चलाना है? आदि ने हिम्मत कर कहा "घर ही तोे चलाना है", और अपने घर की पूरी कहानी उस अधेड़ महि

ला को बताई। अचानक कठोर सी लग रही महिला एकदम नरम सी पड़ गई। वह आदि को प्यार से बोली "मैं तुम्हे पाँच सौ महीने के दूँगी स्कूल में पढ़ाती हूँ, छोटे भाई बहन को पढ़ने में कोई भी समस्या हो तो बताना। चलो तुम चाय पी लो फिर काम करना। मैं तुम्हे काॅलोनी में दो तीन और अच्छे घर में काम दिला दूँगी।" 

आदि की नई शुरूआत थी कहाॅं वह अपने घर के थोड़े बहुत काम करती थी, उसे अब चार पाँच घर के काम करने होते, शाम को सभी घरों के काम करके अपने घर पहुँचती तो उसे लगता हाथ पैर टूट के गिर रहें है। खाना खाकर सो जाती फिर सुबह से काम पर निकलती। धीरे-धीरे जब काम की आदत हो गई तो आदि ने अपनी पढ़ाई को पूरा करने का निश्चय किया और कपड़े वाली आंटी को यह बात बताई आंटी बहुत खुश हुई, कि आदि जीवन में आगे बढ़ना चाहती है उन्होने आदि को पत्राचार से दसवी की परीक्षा देने की सलाह दी तथा समय मिलने पर वह आदि को नोट्स देती और समझाती आंटी और आदि की मेहनत रंग लाई और आदि ने दसवीं की परीक्षा पत्राचार से पास कर ली। कपड़े वाली आंटी आदि को अपनी माॅ की तरह लगती थी वह हमेशा आदि को आगे बढ़ते देखना चाहती थी आदि मेहनत और लगन देखकर वह यथा संभव आदि की मदद करती आदि भी अब उन्हे मम्मी कहती थी। 

सब कुछ ठीक चल रहा था कि आदि की छोटी बहन जिसकी उम्र मात्र 16 साल थी, उसने अपने से दस-बाहर साल बड़े आदमी  से शादी कर ली तीन-चार दिन तो घर नही आई, फिर पति के साथ घर पहुंची तो माँ और आदि हैरान रह गए, एक तो कच्ची उम्र में शादी वो भी अपने से इतने बड़े आदमी से, माँ और आदि ने बिना कुछ कहे स्वीकार कर लिया और कहा शादी हो गई ठीक है अब दो-तीन साल यही रह जाओ आगे की पढ़ाई कर लो फिर चले जाना बहन के पति ने उसे छोड़ने से साफ इनकार कर दिया और कहा कि ये आपकी बेटी और बहन बाद में है पहले मेरी पत्नी है। मैं उसे यहाँ नही छोड़ूंगा उसे जो भी करना है तो वो मेरे साथ रहकर ही करेगी। आदि और माँ समझ गए की यह आदमी चालाक है यह जानता है कि लड़की नाबालिग है, इसलिए इसे नही छोड़ रहा है। आदि और माँ ने बहन को अकेले में समझाने की फिर से कोशिश की लेकिन कोई फायदा नही हुआ। बहन के जाने के बाद आदि ने माँ से कहा माँ हम लोग पुलिस में रिपोर्ट कर दे तो शायद मीना को वह आदमी छोड़ दे। माँ ने आदि को समझाया बेटा वह लड़का नही आदमी है घाट-घाट का पानी पिया है, कहाँ तु अकेले भटकेगी, उसका ख्याल छोड़ दे और अपने काम और पढ़ाई में ध्यान दे। आदि ने भी इस मामले को भगवान के लिए छ़ोड़ दिया और छोटी बहन और भाई पर ध्यान देने लगी। 

 आदि इस साल बारहवी का परीक्षा फार्म भरी थी इसलिए काम के बाद जो थोड़ा समय मिलता तो पढ़ती थी। कपड़े वाली आंटी हमेशा उसका मनोबल बढ़ाती और सहयोग करती। आदि ने बारहवीं की परीक्षा सेकेंड डिवीजन से पास कर ली। आदि को स्कूल की बातें याद आ रहीं थी कि वह शादी के बाद पार्लर चलाना चाहती थी बस फिर क्या आदि ने पार्लर का कोर्स कर लिया और अपने सपने को सच करने के लिए जी तोड़ मेहनत करने लगी, काम पर सवेरे छः बजे ही निकल जाती जल्दी-जल्दी काम निपटा कर वह खाना खा कर अपने पार्लर में आ जाती। जिन घरों में काम करती थी वह आंटी और भाभी कहते अपने पार्लर में ध्यान जरूर दे आदि लेकिन जरूरत से ज्यादा काम करोगी तो बीमार हो जाओगी लेकिन आदि पर एक ही धुन सवार थी पार्लर के लिए जो लोन ही है उसे जल्द चुका दे। दो साल बाद वह दिन भी आया जब आदि ने पार्लर के लिए लिये लोन को व्याज सहित चुका दिया वह आज काम पर चहकते हुए आयी और सभी घरों में खुशखबरी दी तथा कपड़े वाली आंटी को प्रणाम कर बताया कि वह अगले माह  से काम नही करेगी क्योंकि अब पूरा समय अपने पार्लर को देगी और उसे खुब आगे बढ़ाऐगी। कपड़े वाली आंटी आज बहुत खुश थी कि आदि अपने जीवन की एक नई शुरूआत कर रही है, आज सहीं मायने में आदि के जीवन का उसके सपनों का आरंभ हो रहा है। 


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