27 जून 2021:
27 जून 2021:
बिरजीस आंटी अनुष्का को लेकर आयीं। शहला भी साथ थी। उसका व्यवहार भी बदला हुआ था। उसके मिलने में पहली वाली तपाक नहीं थी। वह सीधे सीमा के पास चली गई। अनुष्का बहुत रोई होगी। बड़ी बड़ी खूबसूरत आँखों के नीचे गड्ढे पड़े हुए हैं। बिरजीस आंटी थोड़ी देर बैठ कर भाभी के पास चली गयीं। वह हम लोगों को अकेला छोड़ना चाहती थीं।
अनुष्का ने मेरे बिस्तर पर बैठते हुए पूछा, "अभी भी नाराज़ हैं?"
मैंने रूखेपन से जवाब दिया, "नहीं।"
"आपकी ज़बान आपके मन का साथ नहीं दे रही है। आप अभी भी नाराज़ हैं। अच्छा मुझे माफ़ कर दीजिए। भविष्य में ध्यान रखूंगी।
"तो तुम अपनी ग़लती स्वीकार करती हो।"
"आप यही समझिये। पुरानी बातों को ना दुहराइए। अच्छी अच्छी बातें कीजिए।"
मैं बात नहीं करना चाहता था, इस लिए मैंने कहा, "चलो सब के साथ चल कर बैठते हैं।"
रविवार का दिन है इस लिए भय्या घर पर ही थे। सब लोग बरामदे में बैठे थे। कोई भी खुश नहीं था। हम लोगों के आते ही सीमा शहला को लेकर दूसरे कमरे में चली गई। कोई कुछ कह नहीं रहा था। लेकिन सब के मन में अनुभव की चिंता थी। आज चौथा दिन है उसका कोई पता नहीं है। राहत से मैं लगातार संपर्क में हूँ। उसने अनुभव को ढूँढने में अपनी पूरी शक्ति लगा रक्खी है। दुर्घटना या आत्महत्या की आशंका वाली हर लाश की सूचना राहत को दी जा रही थी। वह स्वयं जाकर लाश की शिनाख़्त करता है।
मैं सब से अधिक चिंतित था क्योंकि मुझसे बात करने के बाद ही वह लापता हुआ था। यदि राहत पुलिस में ना होता तो संभव है पुलिस सब से पहले मुझी से पूछताछ करती।
रात को दस बजे अनुष्का मेरे पास आई। वह मेरे व्यवहार से संतुष्ट नहीं थी किन्तु फिर भी संबंधों को सामान्य बनाने की कोशिश कर रही थी। उसने मेरे गाल छूए। मेरे शरीर को प्यार किया। मेरी एक महीने की दबी हुई भूख हिचकोले मारने लगी। मैंने उसे गले लगा लिया। किन्तु उसके और अनुभव के शारीरिक संबंधों की का। कल्पना का ज़हर दिल से नहीं निकल रहा था। इस समय वह ना ही मेरी सीमा थी, ना ही मेरी प्रेयसी थी, और ना ही मेरी पत्नी थी। वह बस स्त्री के रूप में एक वस्तु थी जिसकी मुझे क्षणिक आवश्यकता थी, खुशबूदार पेपर टिशू की भांति। मुझे छूते छूते उसका हाथ ई.डी.डी. पर चला गया। पहली बार उसने डिवाइस देखी थी। बोली, "मैं कहती थी नया कि ईश्वर की ओर से निराश नहीं होना चाहिए। उसने इस डिवाइस के रूप में चमत्कार कर दिखाया है। अब आप सामान्य जीवन जी सकेंगे, आप को किसी पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा।"
मेरे मन का ज़हर मेरी ज़बान पर ही गया। मैंने व्यंग करते हुए कहा, "हाँ अब तुमको भी किसी पर निर्भर नहीं होना पड़ेगा।"
मेरी बात सुनकर उसका चेहरा ग़ुस्से से लाल हो गया। वह झटके से हटी और बोली, "आप कहना क्या चाहते हैं? मैं अब तक समझती थी कि आप मेरे और अनुभव के बीच केवल भावनात्मक संबंध समझते हैं और उसी पर नाराज़ हैं किन्तु आप शंका और अविश्वास की सारी हदें हीं पार कर रहे हैं।"
मैंने सीमा को कभी क्रोधित होते नहीं देखा था।
मेरे मन में जो आया, मैंने उगल दिया, "यदि तुम इसी घर में रह कर अनुभव से शारीरिक रूप से निकट आ सकती हो तो बाहर की तो बात ही क्या है?"
"ऐसा कब हुआ है?"
"स्टोर में तुम अनुभव से उसी प्रकार नहीं मिली थीं जिस प्रकार शादी के दो तीन दिनों बाद हम लोग मिले थे?"
"कब मिली हूँ?"
"बहुत अनजान ना बनो। कुछ दिनों पहले तुम अनुभव को दरवाज़े तक छोड़ने गयीं थीं। जब तुम गयीं थीं तो तुम्हारे बालों में हेयर-बैंड था और जब लौटी थीं तो तुम्हारे बालों में हेयर-बैंड नहीं था, तुम्हें लौटने में देर भी लगी थी, तुम्हारे बाल बिखरे हुए थे और अगले दिन हेयर-बैंड वहीं मिला था। यह बात सबको पता है। तुम्हारी कितनी बदनामी हुई है इसका तुम्हें कुछ आभास है। सीमा भाभी, भय्या से लेकर राहत और सौरभ के घर वालों तक, सब को यह बात पता है।"
"अब समझ में आया की आप उस दिन हेयर-बैंड की बात क्यों कर रहे थे।"
"तुम क्या कह सकती हो कि तुम स्टोर में नहीं गई थीं?"
"मैं गई थी लेकिन अनुभव...."
मैं जानता था कि अब वह अनुभव को बचाने की कोशिश करेगी इस लिए मैंने उसकी बात काटने हुए कहा, "बस इतना काफ़ी है। अब मुझे इसके आगे और कुछ नहीं सुनना है।" अनुभव को लापता हुए आज चौथा दिन है। अगर पुलिस ने लास्ट कालस् चेक करना शुरू कीं तो सब से पहले तुम्हीं से पूछताछ होगी। तुम्हें थाने भी जाना पड़ सकता है। यहाँ से लेकर कानपुर तक जो तुम्हारी और तुम्हारे कारण हम लोगों की बदनामी होगी उसके लिए तुम ही ज़िम्मेदार होगी, और यह समझ लो कि ऐसे में मैं तुम्हारी कोई सहायता नहीं करूंगा।"
अनुष्का का क्रोध पता नहीं कहाँ चल गया, उसका रूप और भी मुरझा गया, उसकी आंखे भर आईं और वह यह कहती हुई कमरे से बाहर निकल गई कि ऐसा कभी नहीं होगा।