ज़रूरतें
ज़रूरतें
अगर स्याही से लिखी जाने वाली
हर कहानी पूरी होती
तो यादों की ज़रूरत ही क्या होती।
अगर ज़िंदगी हर बोझ
खुद ही संभाल लेती।
तो थामने के लिए
हाथों की ज़रूरत ही क्या होती।
अगर ज़िंदगी अकेले जी जा सकती
तो हमें आपकी ज़रूरत ही क्या होती।
अगर स्याही से लिखी जाने वाली
हर कहानी पूरी होती
तो यादों की ज़रूरत ही क्या होती।
अगर ज़िंदगी हर बोझ
खुद ही संभाल लेती।
तो थामने के लिए
हाथों की ज़रूरत ही क्या होती।
अगर ज़िंदगी अकेले जी जा सकती
तो हमें आपकी ज़रूरत ही क्या होती।