कवि जनाब
कवि जनाब
स्याही से लिखे कागज पे जो बोल थे।
हर पल थे वो यही सोचते।
बंजारों की इस बस्ती में।
ये भला कैसी हस्ती है।
जिसकी चेहरे पर तो सुस्ती है।
पर आँखों में मस्ती सी है।
कौन जाने कैसी ये आत्मा है।
जिसका अपना अलग ही रास्ता है।
होठो से भले कुछ न कहता है।
पर कागज पर भर में सब लिख देता है।