ज़माना न देगा भीख
ज़माना न देगा भीख
यूँ मत चिल्ला,यूँ मत चीख
ज़माना न देगा तुझे भीख।
कर कर्म ऐसे हो तेरी जीत
रोने-धोने से न मिलेगी प्रीत
गिड़गिड़ाने से न मिलेंगे मीत
सब साधते हैं,खुद का हित
यूँ मत चिल्ला,यूँ मत चीख
ज़माना न देगा तुझे भीख।
जो गाता रहता श्रम गीत
उन्हें सफलता मिलती नित
वर्तमान की बनते जो रीत
वो पाते मंजिल निर्भीक
बुरा वक्त जाता उनका बीत
जो करते कर्म रमणीक
यूँ मत चिल्ला,यूँ मत चीख
ज़माना न देगा तुझे भीख।
खुद के कदमों से चलने पे,
होगा हरकाम जो है,विपरीत
हर पत्थर पे निशानी होगी,
तू करता चल कर्म परहित
फ़लक मे न हो,पर हृदय में,
लोग जगह देंगे तुझे असीम।