।।ज़िन्दगी।।
।।ज़िन्दगी।।
थक गया हूँ ज़िन्दगी, अब हाथ फिर से थाम ले,
बहुत हुआ कोहराम है, कुछ तो जरा आराम ले,
यूं फिसलती जा रही तू, ज्यों रेत मुट्ठी से फिसलती,
फूलती सी सांस है,ये धूप अब जाने क्यों न ढलती।।
चल आज मिल कर फिर लड़ें, बदले हुए हालात से,
आशाओं का सूरज उगे , इस काली अंधेरी रात से,
तू मुझे दे हौसला, ज़ज़्बा ,फिर से जीने की ललक,
मैं भी कर प्रण हुंकार दूँ, छू लूँ जरा फिर से फलक।।
इम्तेहां चाहे कितने भी ले तू, साथ बस ना छोड़ना,
जो हाथ थामा है ये तूने, इस हाथ को मत छोड़ना,
राह की दुश्वारियों से मैं, ना थका हूँ ना ही थकूंगा,
तू बस मंज़िल तलक, ये बंधन न अपना तोड़ना।।
