ज़िंदगी की शाम में
ज़िंदगी की शाम में
ज़िंदगी की शाम में
यूँ ही कभी अचानक
जब मेरी याद आ जाए तुम्हें
याद आ जायें वो हसीन लम्हें
जिसे बचपन से यौवन तक
साथ-साथ गुजारे थे हमने
कभी एक दूसरे को छेड़ते
कभी लड़ते-झगड़ते
कभी मान-मनुहार कभी तक़रार
कभी रूठना कभी मनाना
कभी वादा
कभी न बिछड़ने का वो पक्का इरादा
वो दिल ए बेकरार
वो पार्क की हरी घास पर
करना मेरा इंतज़ार
वो मेरे लिए लाना गुलाब के फूल
बींधते हैं आज भी मुझे उसके शूल
आज भी मेरी डायरी में रखी हैं
उसकी मुरझाई पंखुड़ियां
वो तुम्हारी दी हुई प्यारी सी गुड़िया
सब हैं आज भी मेरे पास
बस एक तुम ही नहीं हो मेरे साथ
पर जब भी तुम करोगे मुझे याद
पाओगे आज भी मुझे अपने करीब
जब चाहो आजमा लेना
क्यों कि तुम्हारे नसीब से
जुड़ा है मेरा नसीब
फिर कभी तुम दूर न जाना
सुबह के भूले घर आ जाना।