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SUNIL JI GARG

Drama Horror Thriller

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SUNIL JI GARG

Drama Horror Thriller

ज़िन्दगी का खेल

ज़िन्दगी का खेल

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ज़िन्दगी खेल है सुना है कई बार 

अंपायर है ईश्वर, देख लिया इस बार 


बात उस रात की जब जाना पड़ा अकेले 

रस्ते में मैंने खुद ही जाने कितने पापड़ बेले 


पिताजी बीमार हैं, खबर मिली हॉस्टल में 

रात की गाड़ी लूँगा सोच लिया एक पल में


ट्रेन तो मिल गयी पर थोड़ी दूर ही जा पाई 

तभी अचानक कहीं से डाकूओं की फौज आई


जिसके पास जो मिला उन्होनें लूट लिया 

एक सज्जन को मेरे सामने ही शूट लिया 


बड़ा भयावह था मंजर, क्या करें समझा नहीं 

मैंने खुद ही ले जाकर, पर्स, घड़ी दे दी वहीँ 


तभी दिखे बाबा जी, भगवा कपडे थे उनके

जाने, क्यों उन्हें देख के डाकू भी थोड़ा रुके 


किसी ने बताया, बाबा हैं ये नीम करोली के 

डाकूओं ने तुरंत ही समान निकाले झोली के 


ऐसा मंजर था किसी ने सोचा नहीं ये होगा 

डाकुओं का सरदार बाबा को साष्टांग करेगा 


खैर मुझे भी अपना सामान मिल गया सारा 

मनाता हूँ जिंदगी में न हो ऐसा फिर दोबारा।


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