ज़हन में प्यार
ज़हन में प्यार
सिवा तुम्हारे ज़हन में नाम
कोई आता ही नहीं
इक तू है कि हमें ग़म में
बुलाता ही नहीं
सारे रिश्तो को तो
आज़मा कर बैठा है
फिर भी तुझे ग़म मेरा
सताता ही नहीं
बैठे रहेंगे ग़ुरूर को लेकर वो
राह सीधी उन्हें कोई दिखलाता
ही नहीं
ख़ुशी से मेरी उन्हें सरोकार ही नहीं
क्या आएगा वक़्त पर काम
जो आता ही नहीं
भुलाने वाले मुझे
ज़रा तू भी सुन ले
उलझे रिश्तो से कोई
हाथ बढ़ाता ही नहीं
सुकून पाने की हसरत में
ज़िन्दा हूंँ अब तक
मेरी अर्थी को कोई कांधा
लगाता ही नहीं
माना कि जिंदा हूंँ अब तक
मुझे ज़िन्दा का ख्याल भर भी
आता ही नहीं
प्यार में मैं भी हद से गुज़र जाता
मगर ऐसा कोई शख़्स नज़र
आता ही नहीं
मौत से पहले वह घर
में आ जाए
छोड़ चुके शख़्स को कुछ याद
आता ही नहीं
सिवा तुम्हारे ज़हन मे नाम कोई
कोई आता ही नहीं।

