यूं ही खयालो में!!
यूं ही खयालो में!!
खयालों में यूं ही आकर,
ऐसे भी सपनों से,
जगाता है, क्या कोई,
ऐसा भी करता है,
अपना क्या कोई,
नींदों में गुदगुदा कर,
नींद से ही ,
उठाता है क्या कोई,
सोई थी,
अपने ही खयालों में,
और सपने भी अच्छे,
देख डाले थे,
अपने ही हमसफर के साथ,
दोबारा हम,
परिणय सूत्र में बंधने वाले थे,
चुपके-चुपके,
खयालों के,
दरवाजे तक आ गया कोई,
होने ही वाली थी,
शादी की सभी रस्में,
पड़ने ही वाली थीं,
बस भावरें
उससे पहले ही,
हमें नींद से,
उठा गया कोई,
नींद खुली तो तन्हाई थी,
पास में वह तो नहीं थे,
बस पड़ी थी एक रजाई।

