यह शहर तुम्हारा नहीं
यह शहर तुम्हारा नहीं
जला दो इस शहर को,
यह शहर तुम्हारा नहीं।
मिटा दो इन गलियों को
इनमें तुम कभी खेले नहीं।
मार दो अपने बंधु-बांधवों को ही,
उन्होंने प्यार तुमसे कभी किया ही नहीं।
तुम सब माँ भारती के पुत्र,
माँ के भाल को उजाड़ते, झिझकते क्यों नहीं।
क्या से क्या हो गए तुम
हाथ में खंजर, कलम क्यों नहीं।
देश के भविष्य तुम,
दिल, दिमाग को खोलकर सोचते क्यों नहीं।
तोड़ना बहुत आसान बंधु,
जोड़ने का सुकून पाते क्यों नहीं।
मत भूलो नफरतों ने उजाड़ी हैं अनेकों जिंदगियां,
समाज में कड़वाहट घोलना उचित नहीं।
सिसकती, तड़पती उजड़ी जिंदगियों को,
फिर से बसाने का संकल्प लेते क्यों नहीं!!
प्यार के दो पल गुजारो अपनों के संग,
सच कहती है सुधा, द्वेष कहीं रहेगा नहीं!