यह राज चांद को भी जो नहीं पता
यह राज चांद को भी जो नहीं पता
हर सुबह के बाद
दोपहर आती है
दोपहर के बाद सांझ और
हर शाम के बाद
एक रात आती है
रात को
अपने घर की खिड़की से
रोज देखती हूं मैं
चांद को
किसी रात दिखता है तो
किसी रात नहीं भी दिखता
चांद को नहीं पता
मेरे दिल के हालात
उसे नहीं मालूम कि
जब वह नहीं दिखता तो
मेरा मन कितना तड़पता है
मेरा उससे है
एक रिश्ता
एक नाता
यह किस्सा है
एक तरफा प्यार का
आसमान में और
वह भी रात के
घुप अंधेरे में तो
वह कुछ देख भी नहीं पाता
जमीन की तरफ
निगाह झुकाकर देखे भी
तो कैसे
एक टुकड़ा रोशनी उसकी
फिर गिर जो नहीं
जायेगी मेरे आंगन में
वह तो बस डबडबाई आंखों
से
देखता रहता
अपने चारों तरफ फैले
अंधेरों के जाल से
उससे बाहर निकलना नहीं
तकदीर में उसकी
जैसे उसे पाना नहीं
किस्मत मेरी
कभी कभी सोचती
चांद दूर से सही पर
यह भी कुछ कम नहीं कि
मुझे हर रात
अधिकतर दिख जाता है
एक तरफा प्यार सही
लेकिन मेरा समय तो
हंसी खुशी इसके साथ
व्यतीत हो जाता है
मेरा दिल धड़कता रहता है
उसमें प्यार का कीड़ा
पलता रहता है
एक प्यार का जादू
मेरी नस नस में चलता
रहता है
वह कभी मुझे मिलेगा
नहीं
कभी होगा नहीं मेरा
लेकिन मैं तो हमेशा
से थी उसकी
उसकी हूं और
रहूंगी उसकी
यह राज चांद को भी जो
नहीं पता तो
इसमें भी प्यार करने का मजा
घटता नहीं बल्कि
कई गुना बढ़ जाता है।