यह फूल ज़रूर खिलेंगे
यह फूल ज़रूर खिलेंगे
आज बगावत के जो फूल खिले हैं,
कल आज़ादी का पैगाम बनेंगे,
आज चेहरे पर जो धूल खिली है,
कल स्वाधीनता का सिंदूर बनेगी,
आज चिंगारी जो दिल में लगी है,
कल वीरता की ज्वाला बनेगी,
आज जो फल रूखे सूखे,
गिरे है धैर्य के वृक्षों से,
कल नए समय में फूटेंगे,
उम्मीद की कलियाँ बन के,
आज जो दामन में अश्रु छलके हैं,
कल संघर्ष की नदी बनेंगे,
आज माथे पर जो बाल बिखरे हैं,
कल हौसले की चुनर बनेंगे,
यह फूल ज़रूर खिलेंगे,
यह फूल ज़रूर खिलेंगे,
महकाएंगे धरती का आँचल,
फिर भँवरे पीकर यह वीर रस,
भिड़ेंगे उन जंजालों से,
श्मशान से एक आंधी उठेगी,
जो बलिदान का सैलाब बनेगी,
कल उन वीर आत्माओं का गुण गान ज़रूर होगा,
फिर दीपक ज्योति प्रेम के
- आराधना का प्रतीक बनेंगे,
यह फूल ज़रूर खिलेंगे,
यह फूल ज़रूर खिलेंगे,
दमन से उठकर क्रूरता तक,
उनके हाथ भी उठेंगे,
छाती लहू लुहान होकर,
मिट्टी का रंग बदलेगी,
कुछ सर कटेंगे, कुछ सर झुकेंगे,
कुछ हाथ फैलेंगे, कुछ छलनी होंगे,
अंधेर सी आंधी अँधा करने छाएगी हर और,
फिर हाथ मिलेंगे, सर उठेंगे
अश्रु शत्रु के बहेंगे,
हो जायेगी अमर यह यात्रा प्रतिशोध की,
यह ज़ख्म जीत की विभूति से,
क्षण में ही भरेंगे,
यह छाले छाती पांव के,
विजय के स्तम्भ बनेंगे,
यह फूल ज़रूर खिलेंगे,
यह फूल ज़रूर खिलेंगे,
यह जीवन की पंक्ति है,
इसे कविता बनाना है,
एक बेहतर कल बनाना है,
पृथ्वी का दामन सजाना है,
मानवता का गीत गाना है,
एक दूसरे से हाथ मिलाना है,
यह आशा के पत्र जो खिले है आँखों में,
कल सत्य की छाँव बनेंगे,
यह फूल ज़रूर खिलेंगे,
यह फूल ज़रूर खिलेंगे।