ये मुआ मास्क
ये मुआ मास्क
हे प्रियतम !
यह कैसा वक्त,
आया आज है,
खुलकर बात भी,
नहीं कर पाते,
जो एक विषाणु, का,
मौसम गहराया आज है,
मुंह पर बंध गया,
यह मुंआ मास्क आज है,
पता है तुम्हें,
आज बाजार मै,
लिपस्टिक के,
नए रंगों की श्रंखला,
आ रही आज है,
हे प्रियतम !
यह हम, पर,
हो रहा कैसा अत्याचार,
आज है,
अधर रागिंंनी भी,
लगा कर दिखा नहीं सकते,
यह हम लड़कियों पर हुआ,
वक्त का प्रहार,
कैसा आज है?
ऐ प्रियतम !
गोलगप्पे खाए तो,
जमाना हो गया ,
गोलगप्पे के साथ गप्पे भी,
संग वह ले गया,
वह खट्टा मीठा सा,
स्वाद जीवन का भी गया,
संग अपने,
जीवन का,
खुशनुमा रंगीन हसीन,
वक्त भी ले गया,
ऐ प्रियतम !
कैसे मैं लगा कर,
यह अधर रगींनी,
तुम्हें दिखाऊं,
जिसको बाजार से जाकर,
रंग सारे आज लाई हूं,
कैसे हंसू,
कैसे तुम्हें रंग दिखाऊ,
मुंह पर तो चड गया,
यह मुंह का मास्क,
आज है।
ए प्रियतम !
कब होगा खत्म,
यह विषाणु कीटाणु का अंश,
जिसका हर तरफ,
छाया हुआ,
आतंक आज है,
जिसने छीन लिए,
जीवन की खुशियों के रंग,
ना खुल कर मुस्कुरा पाते हैं,
ना कहीं जा पाते ही हैं,
हम आज !
ए प्रियतम !
अब तो,
सिर्फ तुम्हारी आंखें ही,
देख पाती हूं,
तुम मुस्कुराते हो,
या,
मेरी बात पर,
मुंह फुला जाते हो,
अब तो, हम,
कुछ भी नहीं देख,
और समझ पाते,
जब से आया,
यह मुँह मास्क है
यह मुआ मास्क लगाया है,
जब से,
लगता है,
हम तुमको नहीं समझ पाते,
जब से चढ़ गया मुंह पर,
यह मुआ मास्क,
आज है,
ऐ प्रियतम !
पर कुछ दिन की ही बात है,
यह मास्क भी हट जाएगा,
हम फिर से खेलेंगे,
हंसकर मुस्कुराएंगे,
साथ-साथ,
ना फिर कोरोना का,
डर रह जाएगा आज,
फिर हमारे बीच में,
नहीं आएगा
ये मुंआ मास्क !