ये मध्यमवर्गीय
ये मध्यमवर्गीय
ये विवादास्पद मामलों में,
चुप्पी ओढ़ लेने वाले,
उबाऊ शिष्टाचार को,
स्वभाव बना लेने वाले,
अनावश्यक चीज़ों को,
खरीदने के आदी,
हो चुके,
ये मध्यम-वर्गीय,
झूठे सुख की तलाश में,
एक नये ही नशे में ग़ाफ़िल हैं।
ये सिर्फ़ दिखावे के लिये,
बेमक़सद की यात्राएँ करते हैं,
कोई नहीं पूछता इनसे पर,
ये बताने को आतुर रहते हैं कि,
कितनी रोमांचक, रंगीन और
मांसल रहती हैं इनकी छुट्टियाँ।
लोगों का हुज़ूम उमड़ते देखते हैं,
चींटियों की फ़ौज़ की मानिंद, तो-
इन्हें भी यक़ीन होने लगता है कि,
खारे पानी के समंदरों के किनारे,
शहद से भीगे होते हैं।
सब कुछ होता है इनकी,
हरक़तों में सिवाय सच्चाई के,
वरना ऐसा क्यों होता है कि,
इतना सब करने के बाद भी,
अक्सर पड़ जाते हैं ये अकेले,
बिस्तर पर निढाल,
सीढियों पर पड़े,
मुरझाये कुत्ते की तरह,
इस क़दर चुप लगाते हुये कि,
खुद से भी बात करने की,
हिम्मत नहीं पड़ती।