रिश्ता
रिश्ता
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नही
तुम्हारी मोहब्बत मुझसे नहीं,
मेरे ज़िस्म के उन हिस्सों से है,
जिन्हें तुम देखना चाहते हो।
असमंजस में हूं,
मना कर दूं तुम्हें,
या कौतूहल का अनुसरण करूं मैं !
किसी ने कहा भी तो है,
जिंदगी के फैसलों पर ‘डर’ का नहीं,
जिज्ञासाओं का प्रभाव होना चाहिये।
तो चलो यही सही
भले ही रिश्ता ‘वक़्ती’ रहे पर,
दो चार दिनों में भुलाये जाने लायक
‘चर्चित’ बन कर रह जाने के बजाय,
मैं ‘यादगार’ बन कर सदा के लिये
ज़ेहन में बसना चाहूंगी।