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Ravikant Raut

Romance

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Ravikant Raut

Romance

हमारी पहली दिवाली

हमारी पहली दिवाली

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कुछ चीज़े वक़्त के साथ कभी न बदले तो कितना अच्छा

जैसे हमारी पहली दिवाली

सुबह बैग उठाये मेरा घर आना

मेंहदी लगे हाथों में थामे मिट्टी के

कोरे दीयों को पानी भरी बाल्टी में

भिगोने की तेरी तैयारी होना


झपट कर तेरे हाथों को

बाल्टी के पानी में ही कस के थाम

तुझ पर झुक जाना

मेरी मंशा को भांप आंखे तरेरकर

तेरा झूठ-मूठ का इन्कार दिखाना


फिर भीगते दीयों की सोंधी गंध और

फूटते सैकड़ों बुलबुलों की सुरसुराहट में

तेरी सिसकारियों का घुल जाना

थरथराते पानी में एक दूसरे को निहारते

हमारी देहों का लयबद्ध संचालन और

अचानक हमारी प्रकम्पित देहों का थरथरा कर

एक झटके से जैसे

हरसिंगार के सैकड़ों सफेद फूलों का

अपनी डालियों से छूट पड़ना


वहीं कहीं पास रखी पूजा की थाली का

चुपके से मुस्कुरा पड़ना

कुछ चीजें वक़्त के साथ

कभी न बदले तो कितना अच्छा


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