ये जंजीरें
ये जंजीरें
इन जंजीरों को तोङकर
रूख थोड़ा मोड़कर
बढा रहें कदम कदम
चल रहा हर कदम
दिखती है मंजिल आसपास
रखकर अलग हर भ्रम
लग रहा दम भर दम।।
तिमिर संशय का है नहीं
इन जंजीरों ने जो खनकाना चाहा
लगा जोर अपना सारा
पथ सहज,उससे भटकाना चाहा
पर परवाज भरने की चाहत
और छू लें आसमां तब राहत
भर रहा उड़ान हो मस्त मन
फैला डैने है जितना खम।।
झकझोर रही ये जंजीरे
हर पग पर ठोकर रचा सजा
जिक्र इसी का क्यूँ कर हो
जब पंख ख्वाहिशों का है मिला
हर कठोर ठोकर होगा पार
विवेक जब कर दे कस कर वार
कदम तले तब मंजिल-ए-मुकद्दर
चोट इन जंजीरों की होगी कम।।